18 August 2013

भारत में इस्लामिक बैंकिंग कितना सही ?

भारत में इस्लामिक बैंक खोलने कि मांग एक बार फिर से जोरों पर है। हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने राज्य में पहला इस्लामी बैंक खोले जाने की अनुमति दी है। इस्लामी बैंक को केरल स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन की मदद से खोला जाना है। केरल में इस्लामीकरण की आँधी तेजी से बढ़ रही है। इस इस्लामीकरण की आंधी में वामपंथी और कांग्रेस दोनों दल अल्पसंख्यक वोट के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं। यही कारण है कि केरल में इसकी सुरूआत सबसे पहले हुआ है। आने वाले समय में इसे पूरे देश भर में लागू करने कि योजना बनाई गई है।

“इस्लामिक बैंकिंग” शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया गया एक बैंक है, जिसके नियमों के अनुसार यह बगैर ब्याज पर काम करने वाली वित्तीय संस्था है, यानी इनके अनुसार इस्लामिक बैंक शून्य ब्याज दर पर लोन देता है और बचत राशि पर भी कोई ब्याज नहीं देता। जानकारों का मानना है कि इससे आतंकवादियों को “वैध” तरीके से फण्डिंग उपलब्ध करवाने में आसानी होगी। साथ ही दुबई के हवाला ऑपरेटरों को इससे बढ़ावा मिलेगा। तो सवाल उठता है कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में इस्लामीक बैंक को लागू करना किसी साजि़स का हिस्सा है या फिर वोट बैंक की राजनीति?

भारत में खोली जाने वाली इस्लामिक बैंक कई प्रकार की कानूनों और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है। फिर भी इसे खोलने के लिए सरकार जी जान से लगी हुई है। शरीयत के मुताबिक इस्लामिक बैंक सिनेमा, होटल, अन्य मनोरंजन उद्योग आदि के व्यापार के लिये भी ऋण  नहीं दे सकती, जो कि संविधान की धारा 14 का भी उल्लंघन करती है। ये धारा प्रत्येक नागरिक को बराबरी का अधिकार प्रदान करती है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव पहले ही कह चुके है कि इस्लामिक बैंक भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देष में लागू करना संभव नहीं है। 

ऐसे में सवाल सरकार की आर्थिक नीति को लेकर खड़ा होता है कि आखिर सरकार किस नियम कानून के तहद इसे लागू करने कि बात कर रही है। इस्लामी कट्टरता ने बहुत से लोगों की नींद पहले से ही उड़ा रखी है, तो यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या इस्लामी बैंकिंग किसी खतरे को जन्म देगी? इस्लामिक बैंक का ज्यादातर कारोबार अचल सम्पत्ति पर ही निर्भर है। यदि भारत में इस्लामिक बैंक शुरू होते हैं तो यहां भी वे दुकान, मकान और अन्य भूखंडों को खरीदकर अपने पास रखेंगे। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की भारत में इस्लामिक बैंक कितना सही ?
 
इस्लामिक बैंक गैरकानूनी ?

पार्टनरशिप एक्ट 1932 का उल्लंघन। इसके अनुसार अधिकतम 20 पार्टनर हो सकते हैं। भारतीय संविदा कानून 1872 की धारा 30, इसके अनुसार “शर्तों” का उल्लंघन। बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के सेक्शन 5 (इ), (ब), 9 और 21 का उल्लंघन। इसके अनुसार किसी भी लाभ-हानि के सौदे, खरीद-बिक्री अथवा सम्पत्ति के विक्रय पर ब्याज लेने पर प्रतिबन्ध। आरबीआई कानून 1934 का उल्लंघन। नेगोशियेबल इंस्ट्रूमेण्ट एक्ट 1881 का उल्लंघन। को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1961 का उल्लंघन। संविधान की धारा 14 का उल्लंघन।

क्या है इस्लामिक बैंकिंग ?

यह शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया गया एक बैंक होता है, जो अपने ग्राहकों के जमा पैसे पर न तो ब्याज देता है और न ही ग्राहकों को दिए गए किसी कर्ज पर ब्याज लेता है, इस्लामिक बैंक पिछले दरवाजे से सूद लेते हैं। इस्लामिक बैंक अपने यहां जमा धन से अचल सम्पत्ति खरीदते हैं। मकान, दुकान, घर बनाने वाले भूखंडों आदि पर निवेश करते हैं। इस निवेश से मुनाफा है।

भारत में कैसे उठी मांग ?

भारत में इस्लामिक बैंक की सुगबुगाहट रघुराम राजन समिति की एक सिफारिश से हुई। इस समिति ने अगस्त 2008 में सिफारिश की थी कि वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए ब्याज मुक्त बैंकिंग व्यवस्था लागू की जाए। इसके बाद तो अनेक मुस्लिम नेता इस्लामिक बैंक की पैरवी करने लगे।

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