15 February 2013

क्या आज के दौर में प्यार की पारिभाष बदल गयी है ?

21 साल की अंजली हाथो में गुलाब का ये फूल लिए अपने प्रेमी के आने के इंतजार कर रही है। ये सब बेलेंटाइन का ही नतीजा है। उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस इंतजारी के मायने इस दौर में क्या हैं ? आज जहाँ इजहार और इकरार करने के तौर तरीके बदल गए हैं वही इंटरनेट के इस दौर में प्यार भी बाजारू हो चला है। हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है। आज के युवाओं को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आ रहे है। युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चढ़कर बोल रही है। आज का प्यार मैगी के नूडल जैसा बन गया है जो दो मिनट चलता है। सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है। ये प्यार की चाहत आज के दौर में वासना का रूप ले चुकी है। जो हर वक्त हवस की भूख और जिस्म की रोमांस में सड़क से लेकर पार्क और गली मोल्लों में नजर आने लगी है।

आज देश में वैलेंटाइन डे के नाम पर असलीलता और वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है । एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों के जैसा नही होता था । आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है। हीर रांझा, लैला मजनू रोमियो जूलियट के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी आखिर ये क्यों भूल जाते है की देश के साथ प्यार करना उनका पहला राष्ट्रधर्म होना चाहिए। षरहद पर तैनात हमारे जवानों को आखिर ये गुलाब क्यों नहीं दिया जाता है, जिनके चलते आज हम अपने घरों में सुरक्षित है। आज की युवा पीढ़ी हमारे शहीदों को भूल रही है जिसके जलते उनके अंदर राष्ट्रधर्म की कमी साफ तौर पर नजर आ रही है। आज प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है। प्यार को गिफ्ट और पॉकेट में तोला जाने लगा है। वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले युवा लगातार असफल साबित होते है।

जो उन्हें मानसिक तनाव और आत्महत्या जैसे घटनाओं का कारण बना रहा है। असफल लोग के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे तब और घातक बन जाता है जब ये प्यार टूटता है या फिर प्रेमी जोड़ों की सादी एक दुसरे के साथ नहीं हो पाती है। आज प्यार करने की स्टाइल बदल गई है। गुलाब का गिफ्ट और पार्टी में अश्लील के साथ थिरके बिना काम नही चल रहा है। ये सब मनाने के लिए आपकी जेब भी गर्म होनी चाहिए। डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है, प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता, जिसके चलते समाज में क्राइम की ग्राफ भी बढ़ रही है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या वाकई प्यार की परिभाषा बदल गई है ?

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