अन्ना हजारे अपनी नई टीम के साथ एक बार फिर से भ्रश्टाचार के खिलाफ पटना के गांधी मैदान में बिगुल फूंका है। अन्ना अपने जिस मकषद से भ्रश्टाचार मिटाने के लिए देषवासीयों में पहली बार ऐसा अलख जगाया था उसने देष की सत्त्ता को झकझोर कर रख दिया। जे पी आंदोलन के तरह चाहे आम हो या खास हर कोई अन्ना के आंदोलन में कूद पड़ा। सरकार को इस जन आंदोलन के आगे झुकना पड़ा, आखिरकार सरकार ने संसद में जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव पारित किया। भ्रश्टाचार विरोधी आंदोलन के इस प्रभावी अध्याय से देषवासियों में एक नई उमीद जगी। इस आंदोलन को आजादी की दुसरी लड़ाई मान कर लोगों ने पूरे दिल अन्ना को समर्थन किया। मगर इस लड़ाई में कुछ ऐसे लोग भी षामील हुए जिनका अंदरूनी मकसद था जन आंदोलन के रास्ते सत्ता की रास्ते को तय करना। अन्न ऐसे विचारों के पूरजोर विरोधी थे। अन्ना नहीं चाहते थे की कभी भी राजनीतिक लाभ इस आंदोलन को मिले। और यही से सुरू हुआ मदभेदों का दौर। अग्निवेश तो पहले ही टीम से बाहर हो चुके थे अग्निवेश अन्ना को “पागल हाथी” कह रहे थे।
अरविंद केजरीवाल और मनीश सिसोदिया जैसे लोग एक ओर अन्ना पर राजनीतिक दल बनाने के लिए दबाव डाल रहे थे तो वही दुसरी ओर कुछ सदस्य सरकार से दो- दो हाथ करने में लगें हुए थे। शांतिभूषण और प्रशांत भूषण ने अन्ना से अलग विचार प्रकट करने शुरू कर किए, प्रशांत भूषण ने कश्मीर पर ऐसा बयान दिया कि खुद अन्ना भी शर्मसार हो गए। किरण बेदी पर भी अतिरिक्त विमान किराया वसूलने का आरोप लगा। इन सब ने टीम अन्ना को अंदर से खोखला कर दिया। कहते हैं जब घर का भेदी ही बाहर खबरें पहुंचाए तो लंका जलनी पक्की है। इस बार भी अन्न की नई टीम में कुछ गलत तत्व षामील हो चुके है जो आने वाले दिनों में अन्ना की मुष्किलों को और बढ़ा सकते है। जिससे अन्ना की भ्रश्टाचार विरोधी आंदोलन को एक बार फिर से घक्का लग सकता है। रास्ते अलग-अलग हों पर यदि मंजिल एक है तो इस बात की सम्भावनाएं ज्यादा होती हैं कि दो अलग-अलग रास्तों पर चलने वाले व्यक्तियों के हितों के बीच में टकराव हो। इस बार भी कुछ ऐसी ही संभावना नजर आ रही है। तो ऐसे में एक सवाल और प्रबल हो जाता है की क्या इस बार अन्ना की नई पारी सफल होगी।
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