17 February 2013

सरकार गोमांस खाने के लिए क्योँ प्रोत्साहित कर रही है ?

भारत सरकार द्वारा गौहत्या को बढ़ावा देने वाली नीती एक बार फिर से उजागर हो गई है। केन्द्र सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की पुस्तिका ‘पोषण’ विवादों में घिर गई है क्योंकि इस पुस्तिका द्वारा केंद्रीय अल्पसंख्यक और राष्ट्रीय जनसहयोग एवं बाल विकास मंत्रालय यू.पी. के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में शरीर में ऑक्सीजन और खून बनाने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ ही मुर्गा व गौमांस खाने की सलाह दे रहा है। सरकार कि इस बेतुके और गैर जिमेदाराना हरकतों से देष के हिन्दु समाज में आक्रोस का माहौल खड़ा हो गया है। जब ये मामला मेरठ के मवाना में सामने आने तो अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी का लोगों ने घेराव किया, तो वही भाजपा ने जमकर नारेबाजी की। इस मामले को संसद सत्र में भी उठाने के लिए पार्टी ने एलान कर दिया है। सरकार की इस फैसले ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए है कि क्या पोषण के नाम पर गौमांस खाने का प्रचार करना अत्यन्त निंदनीय नहीं है? क्या यह संविधान के नीति निर्देशक तत्वों का गंभीर उल्लघंन नहीं है? यह हिन्दू धर्म का अपमान नहीं है। क्या ये गौभक्तों की अवज्ञा नहीं है। अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा गौमांस प्रचार की पुस्तिकाओं का वितरण देश की सभ्यता एवं संस्कृति पर कलंकीत करता है। सवाल यहा उन सरकारी अधिकारियों पर भी खड़ा होता है की पुस्तिका के अंदर एैसी गैर जिमेदाराना तथ्यों को बढ़ावा देने वाले पर कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई। गाय को हिन्दु धर्म में मॉ का स्थान प्राप्त है जिसका हिन्दु संस्कृति में पूजनीय स्थान भी है एैसे में ये कांग्रेस सरकार की अल्पसंख्यक वोट बैक की राजनीति को पुरी तरह से दर्षाता है।

उत्तर प्रदेश में गोवंश की हत्या पुरी तरह से प्रतिबंधित है, यूपी में गोरक्षा के लिए 2001 से ही गोवंश निवारण अधिनियम लागू है। इसके बाद भी केंद्र सरकार के मंत्रालय द्वारा यह पर्चा बांटना इस बात का प्रमाण है कि केंद्र सरकार गो-हत्या को बढ़ावा दे रही है। आखिर सरकार किस अधार पर विभागीय किताब में गाय के मांस को आयरन, ऑक्सीजन तथा खून बनाने के लिए जरूरी बता रही है, क्या ये कानुनी तौर पर जुर्म नही है। गौमांस को बढ़ावा देने वाला ये पहला कोई वाक्या नहीं है, इससे पहले भी वर्तमान यूपीए सरकार गौ हत्या के मुद्दे पर अपनी संवेदनहीनता दिखा चुकी है। पिछले साल भी केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाले पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग ने हिन्दुस्तान से गौमांस पर निर्यात का प्रतिबंध हटाने की सिफारिश की थी। वर्ष 2012 से 2017 की 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए जो रूपरेखा तैयार की गई उसमें भी कृषि मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति ने एक्सिम पॉलिसी यानी कि आयात-निर्यात नीति के तहत गौमांस का निर्यात खोले जाने की अनुशंसा की थी। सरकार की ये अनुषंसा यूपीए सरकार की पींक क्रांति को दर्षाता है, जो देष में लगातार गौहत्या को बढ़ावा दे रही है। तो एैसे में सवाल एक बार फिर से वही आकर रूक जाता है की सरकार आखिर क्यों गौमांस खाने को प्रोत्साहित कर रही है।

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