27 February 2013

क्या रामसेतू तोड़ना सही है ?

हिन्दुओं कि आस्था का प्रतिक राम सेतू का मुद्दा एक बार फिर से गर्म है। भाजपा ने सरकार को आगाह किया है कि वह राम सेतु से छेड़छाड़ करने वाली सेतुसमुद्रम परियोजन पर आगे नहीं बढ़े, क्योंकि इससे करोड़ों हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है। वही सरकार इस पूरे परियोजना पर टस से मष होने को तैयार नहीं है। सेतुसमुद्रम जहाजरानी चैनल 30 मीटर चैड़ा, 12 मीटर गहरा और 167 किलोमीटर लंबा होगा। सरकार इस पुरे परियोनजा के लिए पहले ही 800 करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है। प्रस्तावित रामसेतू परियोजना से सरकार हाथ पीछे खीचने के मूड में बिल्कुल नजर नहीं आ रही है। देश में आज के समय में हिन्दू एवं हिन्दुओं के सांस्कृतिक धरोहर से खिलवाड़ सरकार के लिए आम बात हो गई है। सरकार का तर्क है की इस परियोजना से जहाजों को राम सेतु के इस पार से उस पार जाने में आसानी होगी, और भारत आने वाली जहाजी बेड़ों को श्रीलंका होकर आना और जाना नहीं पड़ेगा। 2007 में भारत के कई हिंदूवादी संगठनों ने जब इसके खिलाफ प्रदर्शन किया तो सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना पर तत्काल रोक लगा दी। जब ये मुद्दा केंन्द्र सरकार लेकर आयी तो केंद्र के यु.पी.ए. सरकार को समर्थन दे रहे तत्कालीन तमिल नाडू के मुख्यमंत्री करूणानिधि भूख हड़ताल पर चले गये थे। मगर इस बार करूणानिधि सरकार के हां में हां मिला रहे है। राम सेतु को लेकर सरकार का मत अबतक स्पष्ट नही है कभी वो मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम को काल्पनिक बताती है, तो कभी कहती है कि भगवान राम ने लंका से लौटने के वक्त राम सेतु को नष्ट कर दिया था। मगर कालिदास ने रघुवंश के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। एैसे में सरकार का ये भी तर्क गलत साबित है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था।

यह वही रामसेतू है जो वर्ष 2004 में सुनामी लहरों से लड़ कर हमसब का रक्षक बना था। रामसेतु का चित्र नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था। इसके 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र जारी किया। इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई। 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहाँ समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। 1480 ईस्वी में यह चक्रवात के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया। अगर भूगर्भवेत्ताओं को माने तो इस क्षेत्र में सक्रिए ज्वालामुखी और गतिमान प्रवाल भित्तियां हैं, इसलिए यहाँ की प्रकृति से छेड़-छाड़ करना भारी नुकसान का कारण बन सकता है। पारिस्थितिकी विशेषज्ञ का दावा हैं कि रामसेतु बंगाल की खाड़ी के अनियमित प्रवाहों को रोकता है, ऐसे में यदि रामसेतु तोड़ दिया जाए तो सुनामी की प्रलयकारी लहरों को भारत और श्रीलंका के तटीय समुद्री क्षेत्रों के बीच थामने वाला कोई नहीं होगा। एैसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या रामसेतू तोड़ना सही है ?

1 comment:

  1. mujhe lagta hai haaaa


    karan ki jis desh ke hindu hanth pe hanth rakh kar baithe rahe sayad isi se jaag jaye

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