09 February 2013

अफ़जल के फांसी में देरी करने वाले गुनहगारो को सज़ा कब मिलेगी ?

13 दिसंबर, 2001 को संसद सत्र के दौरान ही पांच बंदूकधारियों ने संसद परिसर पर हमला बोल दिया था। इस हमले में पांचों आतंकवादी ढेर हो गए थे। आतंकवादियों से मोर्चा लेते हुए सात सुरक्षाकर्मी और संसद के कर्मचारी भी शहीद हो गए थे। जबकि 18 लोग जख्मी हुए थे। देश के सत्ता का प्रतिक संसद भवन पर हमले के अरोपी अफजल गुरू को आखिरकार फांसी तो हो गई, मगर इस फांसी की सजा में हुई देरी ने सत्ता में बैठे नेताओं पर कई अहम सवाल छोड़ गई है। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अफजल की सजा पर मुहर लगा दी थी। तब से वह तिहाड़ जेल में बंद था। विपक्ष उसे जल्द से जल्द फांसी दिए जाने की मांग करती रही, और मौत के गुनहगार की फाईलें देष के गृहमंत्री कार्यालय से लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री षीला दीक्षित के पास घुमती रही। किसी ने इतने बड़े हमले के दोशी फाईल पर हस्ताक्षर करने की हिम्मत नहीं उठाई।

सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को अफजल गुरु की फांसी की सजा बरकरार रखने का फैसला सुनाया था। कुछ महीने पहले विकीलीक्स के हवाले से यह खुलासा हुआ था कि कांग्रेस के नेता और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अफजल गुरु को माफ किए जाने की सिफारिश की थी। कलाम और सोनिया के बीच अफजल गुरु के मामले में मतभेद की एक बड़ी वजह यही थी। सरकार को आतंकवाद जैसी आंच को बुझाने में भी वोट की राजनीति आड़े आती रही। अफजल गुरु को संसद पर हमले के मामले में दोषी ठहराते हुए 18 दिसंबर 2002 को दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने फांसी की सजा दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने 29 अक्तूबर 2003 को दिए अपने फैसले में इस सजा को बरकरार रखा। इसके बाद अफजल गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जो 4 अगस्त 2005 को नामंजूर हो गई। सेशन जज ने तिहाड़ जेल में उसकी फांसी की तारीख 20 अक्तूबर 2006 भी तय कर दी थी। मगर, उसके बाद उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर दी जहां से इसे गृह मंत्रालय के पास भेजा गया। गृहमंत्रालय ने ऐसी दया दिखाई की ये लाल फीते वाली फाईल में बंद हो गई, और गृहमंत्री को मानो सांप सुघ गया था। अफजल गुरू की फांसी की फाइल चार सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अलमारियों की धूल फांकती रही। फांसी की फाइल पर शीला दीक्षित कुंडली मार कर बैठ गयी। इस दौरान गृहमंत्रालय ने 16 बार रिमाइंडर भेजी। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अफजल गुरू की फांसी पर कानून व्यवस्था का सवाल उठाकर रोड़ा डाल दिया। शीला दीक्षित ने अपने सिफारिष में लिखा,,,फांसी देने से पहले कानून व्यवस्था की स्थिति का आकलन किया जाना चाहिए।

षीला की इस प्रतिक्रिया ने तुरंत अपना असर दिखाया। दिल्ली के उप राज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना फांसी की फाइल को वापस भेजने के लिए मजबूर हुए। कांग्रेस प्रारंभ से ही अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने के प्रसंग पर ईमानदार नहीं रही है। और इसका सीधा मकसद मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति है। कांग्रेस की संप्रदायीक सत्ता और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति एक-दूसरे से गंभीरता के साथ जुड़ी रही है। राष्ट्रहित और राष्ट्र की सुरक्षा के मद्देनजर अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने में क्या देरी नहीं होनी चाहिए ? यहा कई अहम सवाल खड़े हो रहे है, आखिर अफजल गुरू की फांसी वाली फाइल चार सालों तक किस मकसद से कांग्रेस दबा कर रखी ? आखिर सरकार इस मामले में देरी करने वाले दोशियों को कड़ी सजा कब देगी ?

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