देश में एक बार फिर से पोटा कानून को लागू करने कि मांग तेज हो गई है। जिस प्रकार से देश में आतंकी हमला बढ़ रहा है उससे निपटना सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौति बन गई है। आतंकवाद से निपटने के लिए बनाए गए इस कानून की तो कांग्रेस सरकार ने मिट्टीपलित कर दी, मगर आज देश इस कानून को एक बार फिर से लागू करने की मांग कर रहा है। एक ओर जहां सरकार आतंकवाद को समाप्त करने की बात करती हैं तो वही दूसरी ओर पोटा जैसे कानून को समाप्त कर आतंकवादियों को पनहा दे रही हैं। एैसे में सवाल सरकार की नीयत और नीति को लेकर खड़ा हो रहा है की आखिर अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए बेगुनाहों का खुन कब तक बहता रहेगा। जो सरकार आतंकवाद निरोधक कानून पोटा लागू करने में सकक्षम नहीं है रह सकी वो आतंकवाद से कैसे निपटेगी इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है। 9/11 के बाद बने आतंकवाद विरोधी माहौल में जिस बीजेपी ने अभूतपूर्व जिद का परिचय देते हुए संसद के संयुक्त अधिवेशन में पोटा को पास कराया था, उसे यूपीए सरकार देश की सुरक्षा से समझौता कर निरस्त कर दिया। आज यही कारण है की गृहमंत्रालय द्वारा राज्यों को बार बार खुफिया एलर्ट भेजने के बाद भी हैदराबाद जैसे आतंकवादी घटनाए बढ़ रही है। अगर आज पोटा जैसे कड़ा कानून होता तो देश की सुरक्षा एजेंसियां सड्यंत्रकारियों को हिरासत में लेकर कड़ी पुछ ताछ कर पाती और आतंकयुग में खौफ का माहौल होता। लचीला रुख और कमजोर कानून का ही नतीजा है की आज देश के महत्वपूर्ण ठिकानों पर आतंकी हमला बदस्तुर जारी है। ऐसे में एक बार फिर कानूनविद पोटा जैसे सख्त कानून की पैरवी कर रहे हैं।
देश के जाने माने वकील और पूर्व एटार्नी जनरल सोली सोराबजी पोटा को फिर से लागू करने की वकालत पहले ही कर चुके है। टाडा और पोटा के बाद महाराष्ट्र में संगठित अपराध से निपटने के लिए मकोका आया। लेकिन घटनाएं नहीं थमी। कानून को कड़ा करने की बहस इतनी जोर पकड़ी कि सरकार आनन फानन में गैरकानूनी गतिविधि रोक, कानून में संशोधन करने पर मजबूर हुई। इस कानून में टाडा और पोटा के प्रावधानों को थोड़ा लचीला कर शामिल किया गया। आतंकवादियों में आज कानून का खौफ बिल्कुल नहीं है। उन्हे पता है कि अगर पकड़ लिए गए तो वर्षों मुकदमा चलेगा। अल्पसंख्यक वोट बैंक कि राजनीति होगी और अंत कमजोर कानून का लाफ उठा कर छुट जाएंगें। एैसे में सवाल खड़ा होता है की क्या देश में एक बार फिर से पोटा कानून की जरूरत है ?
देश के जाने माने वकील और पूर्व एटार्नी जनरल सोली सोराबजी पोटा को फिर से लागू करने की वकालत पहले ही कर चुके है। टाडा और पोटा के बाद महाराष्ट्र में संगठित अपराध से निपटने के लिए मकोका आया। लेकिन घटनाएं नहीं थमी। कानून को कड़ा करने की बहस इतनी जोर पकड़ी कि सरकार आनन फानन में गैरकानूनी गतिविधि रोक, कानून में संशोधन करने पर मजबूर हुई। इस कानून में टाडा और पोटा के प्रावधानों को थोड़ा लचीला कर शामिल किया गया। आतंकवादियों में आज कानून का खौफ बिल्कुल नहीं है। उन्हे पता है कि अगर पकड़ लिए गए तो वर्षों मुकदमा चलेगा। अल्पसंख्यक वोट बैंक कि राजनीति होगी और अंत कमजोर कानून का लाफ उठा कर छुट जाएंगें। एैसे में सवाल खड़ा होता है की क्या देश में एक बार फिर से पोटा कानून की जरूरत है ?
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