03 February 2013

क्या बाल अपराध कानून में बदलाव जरुरी है ?

किशोरावस्था की उम्र को लेकर आज कल चर्चा जोरों पर है। देष में लगातार बढ़ रहे बाल अपराध को लेकर आज समाज में एक नई बहस छिड़ गई है। आए दिन जिस प्रकार से छोटे- छोटे बच्चे समाज के अंदर दिल दहला देने वाली घटनाओं को अंजाम दे रहे है उससे कही न कही देष का भविश्य और समाज दोनो खतरे में पड़ता दिख रहा है। हमारे राष्ट्र का भावी विकास और निर्माण वर्तमान पीढ़ी के साथ ही आने वाली नई पीढ़ी पर भी निर्भर है। तभी तो कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। लेकिन आज नैतिक पतन आगामी पीढ़ी के लिए विध्वंसक का कार्य कर रहा है। स्वच्छंद सेक्स, नशा, बड़े-बुजुर्गों का अपमान, अनुशासनहीनता, उदंद्डता बच्चों की जीवन शैली में ढलने लगे हैं। बच्चों को बीड़ी पीते, गुटका खाते, चोरी करते और युवतियों के साथ अश्लील हरकतें करते जैसे घटनाए लगातार बढ़ रही है। आश्चर्य की बात है कि बच्चे-बच्चियां, जिन्हें उम्र का तकाजा नहीं है, वे वर्जनाओं और मर्यादाओं की सीमाओं को लांघ चुके हैं। शायद यही वजह है कि बाल अपराध के आंकड़े दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। बालअपराध के मुख्य कारणों में गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण हैं। बाल अपराधी ज्यादातर लड़के होते हैं तथा उनकी भी आयु सीमा 12 से 16 वर्ष के बीच रहती है, यही नहीं बाल अपराधी ग्रामीण क्षेत्र की बजाए शहरी क्षेत्र में अधिक होते हैं। 

भारतीय कानून के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर कोई ऐसा कृत्य करें जो समाज या कानून की नजर में अपराध है तो ऐसे अपराधियों को बाल-अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है। किशोर न्याय-सुरक्षा और देखभाल अधिनियम 2000 के तहत ऐसे अपराध में सजा दी जाती है। इस अधिनियम के अंतर्गत बाल अपराधियों को कोई भी सख्त या कठोर सजा ना देकर उनके मस्तिष्क को स्वच्छ करने का प्रयत्न किया जाता है। दिल्ली में 16 दिसंबर की रात चलती बस में 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से गैंगरेप कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था। 29 दिसंबर को लड़की की सिंगापुर के अस्पताल में मौत हो गई थी। छात्रा के साथ हुए इस गैगरेप की विभत्स घटना के बाद से ऐसे कानून में बदलाव की मांग जोर पकड़ चुकी है तरह- तरह के सवाल भी उठने लगे है। वर्ष 2011 में बच्चों के खिलाफ अपराधों की सूची में राजधानी दिल्ली शीर्ष पर है जबकि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बच्चों से बलात्कार और हत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज हुए हैं। देश में 2011 में बच्चों के खिलाफ अपराध संबंधी कुल 33 हजार 98 मामले दर्ज हुए जबकि 2010 में यह आंकड़ा 26 हजार 694 था। यानी बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में 24 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। दिल्ली सामूहिक बलात्कार के 6 आरोपियों में से एक की उम्र 18 साल से कम है। जुवेनाइल एक्ट के तहत वह अधिकतम तीन साल बालसुधारगृह में रहने के बाद वह असानी से छूट जाएगा और उसके साथ केस की सुनवाई जुवेनाइल अदालत में होगी। इस बीच सुझाव आ रहे हैं कि किशोरों में बढ़ते अपराध दर को देखते हुए यह उम्रसीमा घटा कर 16 कर दी जाए। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या बाल अपराध की कानून में बदलाव जरूरी है ?

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