नौ नवंबर की तारीख इतिहास में
उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज हैं। पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई
वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000
को
उत्तराखंड को सत्ताइसवें राज्य के रूप में भारत गणराज्य में शामिल किया गया। वर्ष 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से
पुकारा जाता था,
लेकिन
जनवरी 2007
में
स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखंड
कर दिया गया। इस
बार राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम ‘रजतोत्सव’
के
रूप में मनाया जाएगा जो छह नवंबर से शुरू होकर 12 नवंबर तक चलेगा। उत्तराखंड
नौ नवंबर को 25वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
देवभूमि
रजतोत्सव कार्यक्रम
देवभूमि
रजतोत्सव कार्यक्रमों की रूपरेखा को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में
हुई एक बैठक में तय किया गया
9 नवंबर को राज्य स्थापना
दिवस सहित अनेक कार्यक्रम 12 नवंबर तक भव्य तरीके से आयोजित किए जाएंगे
‘रजतोत्सव’ कार्यक्रम में युवाओं,
महिलाओं,
किसानों,
कारीगरों,
पर्यावरणविदों
और राज्य आंदोलनकारियों को शामिल किया जाएगा
‘रजतोत्सव’ में उत्तराखंड की विकास गाथा
से जुड़े लोगों की सक्रिय भागीदारी और सभी के विचारों को महत्व दिया जाएगा
उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे
उत्तराखंड की सीमाएं उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में
हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य है। हिन्दी और
संस्कृत में उत्तराखंड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। उत्तराखंड को
देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के साथ ही यह राज्य हिन्दू धर्म
में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों में से एक गंगा और यमुना
का उद्गम स्थल है। वर्ष
2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा
जाता था,
लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का
सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। उत्तराखंड राज्य
में बहुत समृद्ध प्राकृतिक संसाधन हैं जिनमें ग्लेशियर, नदियां, घने जंगल और बर्फ से ढकी पर्वत
चोटियां शामिल हैं। इसमें चार सबसे पवित्र हिंदू मंदिर भी हैं जिन्हें उत्तराखंड
के चार धाम के रूप में भी जाना जाता है- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री। राज्य की
राजधानी देहरादून है।
उत्तराखंड से लोगों का पलायन
बड़ा मुद्दा
24 वर्षों में राज्य के सैकड़ों गांव खाली हो चुके हैं
अलग राज्य बनने के बाद लगभग 32 लाख लोग पलायन कर चुके हैं
सरकारी पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यह एक बड़ी
चुनौती है
पलायन के बाद उत्तराखंड के 1702 गांव वीरान हो चुके
हैं
1000 गांव ऐसे
हैं जहां 100 से कम लोग बचे हैं
रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत लोग रोजगार के कारण पलायन किए हैं
15 प्रतिशत शिक्षा, 8 प्रतिशत
स्वास्थ्य सुविधा की वजह से पलायन किए हैं
उत्तराखंड को देखने और समझने के लिए देहरादून और
ऋषिकेश से अलग हट कर देखना होगा। चिपको आंदोलन से लेकर भारत की महान सांस्कृतिक
विरासत को अपने गोद में समेटे इस राज्य ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। नवगठित
उत्तंराचल की अंतरिम सरकार के पहले वित्त मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 3
मई 2001
को जब राज्य का
पहला बजट पेश किया था तो उसमें कुल व्यय 4,505.75 करोड़ और राजस्व
प्राप्तियां 3,244.71 करोड़ प्रस्तावित थीं। राज्य गठन के समय
उत्तरांचल को लगभग 1,750 करोड़ का घाटा
विरासत में मिला था और अंतरिम सरकार ने 10 करोड़ के ओवर
ड्राफ्ट के साथ अपना काम शुरू किया था। नए राज्य को विरासत में भारी-भरकम कर्ज भी
मिला था। जबकि 15 मार्च 2023 को मौजूदा
वित्त मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल ने 2023-24 का सालाना बजट
पेश किया तो उसमें कुल व्यय 77,407.08 करोड़ और राजस्व
प्राप्तियां 76,592.54 करोड़ प्रस्तावित थीं। उत्तरांचल के नाम से जन्म
लेने वाले उत्तराखण्ड के बजट की इतनी बड़ी छलांग नए राज्य की प्रगति की ओर इशारा
करता है। ऐसे में आज अगर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता और केदारनाथ की जैसी आपदाएं न आतीं तो यह राज्य इससे भी कहीं अधिक
तरक्की कर चुका होता।
कर्ज में डूबा राज्य प्रगति के नए शिखर पर
उत्तराखण्ड के जन्म के समय राज्य को विरासत में भारी भरकम घाटा और कर्ज
मिलने के साथ ही 11वें वित्त आयोग से भी पूरा न्याय नहीं
मिला था
तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने हिमालयी राज्यों के साथ ही उत्तरांचल को भी
1 मई 2001 को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया
राज्य को औद्योगिक पैकेज भी मिला, जिससे राज्य का तेजी से औद्योगिक
विकास के साथ राज्य की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय बढ़ती गई
वर्ष 2002 में सी रंगराजन की अध्यक्षता में 12वां वित्त आयोग गठित
हुआ तो नुकसान की काफी हद तक भरपाई हुई
1 जनवरी 2007 को उत्तरांचल का टैग उतारकर
उत्तराखण्ड के नाम से जाने जाना वाला ये राज्य विकास यात्रा में राजनीतिक अस्थिरता और केदारनाथ जैसी आपदाओं के कारण
व्यवधान अवश्य रहे फिर भी विशेष श्रेणी का दर्जा, औद्योगिक पैकेज और नये राज्य के प्रति
केन्द्र सरकार की सहायता के चलते इन 24 वर्षों में राज्य की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय
ने भी आश्चर्यजनक छलांगें लगाईं है। राज्य की जीडीपी 3.33 लाख करोड़ और प्रति व्यक्ति आय 2,33,565 तक पहुंच गई है। जबकि 1999.2000 में राज्य की प्रति व्यक्ति आय मात्र 14,086 रुपये और जीडीपी लगभग 1.60 लाख करोड़ के आसपास थी।
बिजली, सड़क, पानी और अस्पताल का विकास
वर्ष 2002
में जब पहली
निर्वाचित सरकार ने सत्ता संभाली तो उस समय बैंको का ऋण जमा अनुपात मात्र 19 था
मतलब यह कि बैंक जनता से 100 रुपये जमा करा रहे थे तो मात्र 19 रुपये यहां कर्ज दे रहे थे
बाकी धन का कहीं और व्यावसायिक उपयोग कर रहे थे। आज की तारीख में यह ऋण
जमा अनुपाल 51
तक पहुंच गया
है
अब 100 में 51 रुपये लोगों को काम धंधा चलाने के लिए दिए जा रहे हैं
पहाड़ों में ऋण जमा अनुपात अब भी चिंताजनक स्थिति में हैं
एलोपैथिक अस्पताल की संख्या तब से अब 553 से 716 हो गई है
आयुर्वेदिक अस्पतालों की संख्या 415 से 544 हो गई है
जन्म दर 19.6
से घट कर 16.6 और बाल मृत्यु दर 6.5 से घट कर 6.3 तक आ गई है
वर्ष 1999
में नेशनल
हाइवे से लेकर जिला और ग्रामीण मार्गों की लंबाई 14,976 किमी थी
वर्ष 2022
के आंकड़ों के
अनुसार ग्रामीण मार्गों की लंबाई 40,457.29
किमी तक पहुंच
गई है
वर्ष 2001-02
की सरकारी सांख्यिकी डायरी के अनुसार उस समय राज्य में 191 उद्योग स्थापित थे
जिनमें से 69
के बंद होने से
कुल 122
ही उद्योग शेष
रह गए थे
अब 2021-22 की सांख्यिकी डायरी के अनुसार राज्य में वृहद उद्योगों की
संख्या 329 तक पहुंच गई है
बड़े उद्योगों के अलावा राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की संख्या 73,961 हो गई है
पहाड़वासी अपनी
सांस्कृतिक पहचान के लिये अनुच्छेद 371 की मांग कर रहे थे लेकिन अब
उद्योग के नाम पर पहाड़ियों की जमीनों की खुली लूट मची हुई है। वर्ष 2003 में जो भू-कानून बना था उसका 2017 के बाद निरन्तर क्षरण हो रहा है जिसके
कारण पहाड़ की जनसांख्यकी बदल रही है। राज्य में कृषि जोतों का आकार निरन्तर घटता
जा रहा है। वर्ष 1995-96
में राज्य में 4 से 10 हेक्टेयर के बीच जोतों का प्रतिशत 3.1 था जो कि 2021-22 तक 1.64 प्रतिशत रह गया। इसी तरह 2 से 4 हेक्टेयर आकार की जोतें 8.7 प्रतिशत थीं जो घट कर 6.59 प्रतिशत रह गयीं है। राज्य में 2015-16 में कुल कृषि जोतें 9,12,650 थी। जिनमें 6,75,246 पहाड़ की और 2,37,404 मैदान की थी। इनमें से टिहरी, देहरादून, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा नैनीताल, बागेश्वर, चम्पावत में 6.49 प्रतिशत जोतें घट गयीं। मैदानी
क्षेत्रों में जोतों की संख्या में 5.25 की वृद्धि दर्ज की गयी है। राज्य में
खेती का दायरा घटता जा रहा है। वर्ष् 1998-99में राज्य में कुल शुद्ध या वास्तविक
बोये गये क्षेत्र को 7,84,113
हैक्टेयर था जो
कि अब 2020-21
में केवल 6,20,629 हेक्टेअर रह गया है। इसका मतलब है कि
इन 24
सालों में
उत्तराखण्ड का 1,63,488
हैक्टेयर कृषि
क्षेत्र घट गया है। इतने बड़े पैमाने पर खेतों का सिमट जाना कृषि के प्रति लोगों की अरुचि
और बड़े पैमाने पर पलायन की ओर इशारा है। खेतों की उर्वरकता घटने और जंगली जानवरों
द्वारा किये जाने वाले भारी नुकसान के कारण भी लोगों में खेती का मोह बहुत घट गया
है।
स्कूल बढ़े मगर छात्र घटते गए
पहाड़ी राज्य में नई शिक्षा नीति का भी
सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर असर नहीं पड़ रहा है
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार
घटती जा है
राज्य गठन के समय जूनियर बेसिक
स्कूलों की संख्या 12,791
थी
2021-22 में स्कूलों की संख्या 13,422 हो गई मगर विद्यार्थियों की संख्या घटी
विद्यार्थियों की संख्या 11,20,218 से घटकर 4,91,783 रह हो गई
है
विद्यार्थी घटे तो शिक्षक भी 28,340 से घटकर 26,655 रह गए
राज्य गठन के समय सीनियर बेसिक
स्कूलों की संख्या 2,970
थी
अब सीनियर बेसिक स्कूलों की संख्या बढ़कर
5,288
हो गई है
मगर विद्यार्थियों की संख्या 5,47,009 से घट कर 5,04,296 रह गई है
केंद्र सरकार
के नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार उत्तराखंड में साल 2021-22
में बेरोजगारी
दर 7.8
प्रतिशत रही है।
हालांकि,
2022-23 में बेरोजगारी दर के आंकड़ों में गिरावट आई है। राज्य गठन के समय
सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 3,08,868
थी जो कि 2021-22
में 8,39,679
हो गई है। प्रधानमंत्री
मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि जब उत्तराखंड के लोग अपना रजत जयंती वर्ष मनाएं तो
ये प्रदेश सबसे खुशहाल प्रदेश कहलाए। आज ही के दिन वर्ष 2000 में यूपी से पहाड़ी क्षेत्रों को अलग कर उसमें तराई के
उधमसिंह नगर और हरिद्वार को शामिल करते हए उत्तरांचल राज्य की स्थापना केंद्र की
अटल सरकार ने की थी। उस दौरान पहाड़ी राज्य की उम्मीदें और समस्याएं भी पहाड़ जैसी ही
थी।
उत्तराखंड
का सियासी सफर
राज्य में सबसे पहले बीजेपी की सरकार बनी और नित्यानंद स्वामी मुख्यमंत्री बने
फिर भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी सरकार की बागडोर संभाली, लेकिन पहला विधानसभा
चुनाव बीजेपी हार गई
कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने
तिवारी सरकार के जाते ही बीजेपी के भुवन चंद्र खंडूरी ने सरकार बनाई
दो साल बाद खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल को मुख्यमंत्री बना दिया गया
ढाई साल बाद पुनः खंडूरी को सत्ता दी गई, लेकिन बीजेपी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई
कांग्रेस के विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत मुख्यमंत्री बने
अगला चुनाव आया तो बीजेपी ने कांग्रेस को हराकर सत्ता से बाहर कर दिया
बीजेपी 57
सीटों के साथ फिर से एक
बार राज्य में सरकार बनाई
मोदी की करिश्माई छवि पर विश्वास कर राज्य के लोगों ने बीजेपी को वोट दिया
फिर त्रिवेन्द्र सिंह रावत राज्य के मुख्यमंत्री बने
2021 के चुनाव में बीजेपी ने त्रिवेंद्र की जगह तीरथ रावत को सीएम बनाया
फिर तीरथ की जगह पुष्कर धामी को सीएम बनाया गया जो अबतक मुख्यमंत्री हैं
उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता ही सबसे बड़ी समस्या रही है। हमेशा से ही
केंद्र सरकार के भरोसे ही राज्य सरकार चलती रही है। वर्तमान में केंद्र की मोदी
सरकार की उत्तराखंड में एक लाख करोड़ की योजनाओं ने राज्य की प्रगति में एक बड़ी उपलब्धि
है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विजन से यहां की चार धाम यात्रा को गढ़वाल का आर्थिक
चक्र मानते हुए आल वेदर रोड, कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट और बदरीकेदार को स्मार्टसिटी की तर्ज पर विकसित
करने का काम शुरू करवाया है। उत्तराखंड देवभूमि और पर्यटन राज्य है। पीएम मोदी इसी
को आधार मानकर योजनाओं को सिरे चढ़ा रहे है। कुमायूं क्षेत्र में लीपुपास तक सड़क बन
रही है, हवाई सेवाओं का विस्तार पर्यटन को ध्यान में
रखकर किया जा रहा है। हर जिले में मेडिकल कॉलेज बन रहे हैं और भी कई योजनाएं
केंद्र के साथ मिलकर चल रही हैं।
विकास में बाधा प्राकृतिक आपदा
उत्तराखंड में 2011 से लेकर अब तक करीब हर साल आपदा आ रही है
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं ने राज्य को नुकसान पहुंचाया है
केदारनाथ आपदा में हजारों लोग मारे गए थे
उत्तराखंड में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में औसतन
एक हजार लोग मर जाते हैं
उत्तराखंड से फौज में जाने वालों के लिए यहां
का युवा सबसे आगे खड़ा मिलता है
यहां घर-घर में देश रक्षा में वीरता की कहानी
सुनाई जाती है
उत्तराखंड में सबसे ज्यादा चुनौती, बेरोजगारी और यहां से हो रहे युवाओं के पलायन को लेकर है। पहाड़ों में रोजगार न होने, अच्छे स्कूल और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं होने के कारण लोगों ने मैदानी क्षेत्रों की तरफ रुख कर लिया है। यही वजह है कि पीएम मोदी को यह विश्वास दिलाना पड़ रहा है कि पहाड़ की जवानी और पानी दोनों इसी राज्य के काम आएगा। पीएम मोदी ने राज्य की धामी सरकार को भी इसी विजन पर काम करने को कहा है। पहाड़ों में चकबंदी लागू करने की मांग कई सालों से लंबित है। जमीन के दस्तावेजों को व्यवस्थित करने की जरूरत है। नौजवान पीढ़ी चाहती है कि पहाड़ के लिए नया भू अध्यादेश बनाया जाए क्योंकि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। असम के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी उत्तराखंड में बढ़ने से देवभूमी में जनसंख्या अंसतुलन पैदा हो गया है।
उत्तराखंड का हर गांव और हर घर बिजली
से रोशन है। ऊर्जा निगम के दावों के मुताबिक, हर घर बिजली कनेक्शन लग चुका है। बिजली
कनेक्शनों की संख्या 27 लाख के पार पहुंच गई है। सौभाग्य योजना से
घरों को बिजली से जोड़ा गया है। दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत पावर सप्लाई सिस्टम
मजबूत हुआ है। जल जीवन मिशन प्रोजेक्ट के तहत तेजी से काम हो रहा है। राज्य के कुल
15 लाख घरों तक नल से जल पहुंचाया जाना है। बीते दो साल में करीब दस लाख घरों में पानी
पहुंचाया जा चुका है। राज्य लगातार तरक्की के पथ पर अग्रसर है।
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