14 July 2012

क्या राजनीति से आदर्शवाद ख़त्म हो गया है ?

वैसे तो आप सभी जानते है देद्गा के नेताओं के बारे में, क्या है देद्गा के नेताओं की असलियत। कितने स्वाभिमान और जज्बे वाले है हमारे नेता, किस तरह मलाई जैसा है नेताओं का ईमान और कितने पक्के र्हैं अपने विचारो के हमारे नेता जी जी हां यही सवाल उठ रहा है देद्गा में आज की नेता पीढी के बारे में। दरअसल अभी कुछ दिन पहले बंगाल की मुखयमंत्री ममता बनर्जी ने फेसबुक पर एक वाक्य पेस्टकिया वे कह रही थी देद्गा के तथाकथित नेता आज बिना रीढ की हडडी के हो गए है। ये एक इंट्रेस्टीग रिर्सच का विच्चय हो सकता है। भले ही ममता ने ये कांग्रेस और सपा नेताओं के धोखेबाजी पर कहा हो, मगर ये बात काफी हद तक सही लगता है । वाकई देद्गा की बागडोर देद्गा के नेताओं के हाथ मे जिनका स्वाभिमान और आर्दद्गा खत्म हो गए है। अगर देद्गा के नेताओं में थोडा भी आर्दद्गा होता तो देद्गा में फैली अराजकता और अफरा- तफरी पर अर्लट होते। लेकिन वो तो मुर्ति की तरह बैठे हुए है और तोते की जुबान में बोलते हुए महसुस हो रहे है। ये नेता बस द्याासन करने वाले और रॉयल जिदगी का मजा उठाने वाले बाकी रह गए है। देद्गा की राजनीति में कभी ऐसे नेता भी सकिय राजनीति में मौजूद थे जो देद्गा और अपने स्वाभिमान के लिए मरते थे। अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आप है वहां भी अपनी बात हिन्दी में रखते थे। भले ही वे राजनीति से रिटायर हो गए हो पर आज भी उनके स्वाभिमान और आर्दद्गा पर कोई उगंली नहीं उठा सकता। ये ऐसे नेता रहे है जो अपने स्वाभिमान और देद्गा सेवा को सर्वोपरि मानते थे। बुद्धिजीवी भी उस वक्त कहते थे कि देद्गा में अभी कोई नेता बचा है तो वो हैं अटलबिहारी वाजपेयी। आज किसी नेता को कहते सुना है कि फलां नेता सही मायनों में आदर्द्गावादी नेता है। अब ममता बनर्जी का कहना चाहे अपने आप को उंचा दिखाना ही क्यों ना हो लेकिन तीर बड़े निशाने पर मारा है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मुलायम का धोखा हो या चिदंबरम का कोलकाता की कानून व्यवस्था पर उंगली उठाना। इन्ही वजह से ममता ने तथाकथित नेताओं को बिना रीड की हडडी का बताया। वेसे जिस तरह से नेता अपने छोटे छोटे स्वार्थों के लिए देद्गाहित और अपनी विचारधारा तक से मुकरने में जरा भी द्यार्म महसूस नही करते उससे तो यही लगता है कि आज के नेता, नेता बने रहने के लिए अपनी मान मर्यादा को भी भूल जाते हैं। तो क्या है आज के नेताओं की सच्चाई। कितने आदर्द्गावादी और कितने स्वाभिमानी रह गये है हमारे देद्गा के नेता।

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