अमरनाथ यात्रा अनादिकाल से चलती आ रही है, लेकिन अब यात्रा को मौसम का बहाना बनाकर अवधि सीमित करने की षडयंत्र हो रही है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पदेन अध्यक्ष हैं। उनका दायित्व यात्रा का विकास है, लेकिन दुर्भाग्य से वह यात्रा को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। सवाल उठता है कि समय रहते यात्रा सुविधाओं से जुड़ी तैयारियों को पूरा क्यों नहीं किया जा सका ? बाबा बर्फानी के दर्शनार्थी श्रद्धालुओं की तादाद जब हर साल बढ ती जा रही है तो ऐसे में अमरनाथ यात्रा की अवधि कम किए जाने का क्या औचित्य बनता है ? पहले भी यात्रा अवधि दो महीने यानी ६ दिनों की रहती थी। इस बार यह महज ३९ दिन कर दिया गया है। केन्द्र सरकार की मुस्लिम वोट बैक की राजनीति की बात करे तो, सरकार हज यात्रीयों के लिए करोड़ो रूपए खर्च करती है। उनके लिए सारी तैयारिया पहले ही पूरी कर ली जाती है। उनके उपर कभी आतंकवादी हमला नही होता है। वही दुसरी ओर अमरनाथ यात्रा को आतंकवादियों की धमकियों के चलते १९९१ से १९९५ तक बंद रखा गया था। १९९६ में आतंकियों द्वारा बाधा नहीं पहुंचाने के आश्वासन पर यात्रा शुरू हुई। अमरनाथ तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाजनक व्यवस्थाएं बढ़ाने और सुरक्षा बंदोबस्त करोड़ो करने के बारे में कई उपाय सुझाए गए थे। सवाल उठता है कि अबतक उन सुझावों पर अमल क्यों नहीं हो सका है? अगर इस बार यात्रा अवधि घटाने का निर्णय भी अलगाववादी ताकतों के प्रभाव में आकर लिया गया है तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक प्रवृत्ति को बढावा देने वाला साबित होने वाला है। धर्म और आस्था से जुड़े विषयों को लेकर किसी के आगे घुटने टेकने की नीति पर चलना अनर्थकारी संकेत देता है। अमरनाथ जैसी पवित्र यात्रा को लेकर किसी तरह का विवाद पैदा करने की साजिशों और कोशिशों को पनपने देना घोर अनुचित कार्य माना जा रहा है। अनादिकाल से चली आ रही बाबा अमरनाथ यात्रा का हमेशा से ही राष्ट्रीय महत्त्व रहा है। जेहादियों को अपने लक्ष्यों को पूरा करने में यह यात्रा बहुत बड़ी बाधा लग रही है, उन्हें ध्यान में आ गया है कि जब तक यह यात्रा चलेगी हिन्दू समाज घाटी में आता रहेगा । और जब तक वह आता रहेगा घाटी को दारुल इस्लाम बनाने का संकल्प पूरा नहीं हो पायेगा।
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