20 July 2012

पाक के साथ क्या हो क्रिकेट या जंग ?

पाकिस्तानी की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आएगी। बीसीसीआइ और सरकार के रहनुमाओं ने इस दौरे को हरी झंडी दी है। इस खबर से देश के लोगों के मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे है। वे पूछ रहे हैं, हमने जब पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला बंद करने का फैसला किया था, तब से अब तक क्या बदला है। क्या पाकिस्तान ने मुंबई के आतंकवादी हमलों के दोषियों को सजा दी। क्या पाकिस्तान में बैठे लश्करे-तैयबा के कमांडर जकीउर रहमान लखवी जैसे लोगों को वह भारत को सौंपने को तैयार हो गया है। क्या पाकिस्तान ने अबू जुंदाल के बयान के बाद मान लिया है, कि मुंबई पर आतंकवादी हमले में आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना के लोग शामिल थे। क्या पाकिस्तान ने अपने यहां आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर बंद कर दिए हैं। जी नही ऐसा कुछ भी नही हुआ है। लेकिन लगता है भारत सरकार ने मान लिया है, पाकिस्तान से इन मुद्दों पर कोई भी उम्मीद करना बेमानी है। भारत में एक वर्ग है जो मानता है कि कुछ भी हो पाकिस्तान के साथ बातचीत चलती रहनी चाहिए। भारत सरकार की भी यही राय है। लेकिन पिछले ६४ सालों से भारत यही तो कर रहा है। हर धोखे और हमले के कुछ दिन बाद हम फिर बातचीत की मेज पर पहुंच जाते हैं। कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा चला गया, १९६५ और १९७१ का युद्ध हुआ, कारगिल हुआ, देश की संसद पर हमला हुआ, मुंबई पर हमला हुआ। हमने देश में मोमबत्ती जुलूस निकाला और उसके बाद पाकिस्तान के साथ विश्वास बहाली के नियमित कर्मकांड में जुट गए। भारत और पाकिस्तान आपस में क्रिकेट खेलें भला इससे क्यों इनकार होना चाहिए। लेकिन क्रिकेट के जरिये दोनों देशों के संबंध सुधारने का सपना हम १९७८ से देख रहे हैं। क्रिकेट कूटनीति में यकीन करने वाले मानते हैं कि इससे दोनों मुल्कों के लोगों में आपसी भाईचारा बढ़ेगा और तनाव कम होगा। क्रिकेट देखेंगे तो क्रिकेट की बात करेंगे। ऐसा कहने वाले शायद यह भी मानकर चलते हैं कि भारत पाकिस्तान की समस्या का एक बड़ा कारण, दोनों देशों के अवाम के बीच भाईचारे और आपसी विश्वास की कमी है। इस धारणा को दोनों देशों के लोगों ने हर उपलब्ध मौके पर झुठलाया है। जाहिर है कि मर्ज कहीं और है और इलाज कहीं और हो रहा है। भारत और पाकिस्तान की समस्या दोनों देशों के अवाम नहीं है। राजनीतिक दल और नेता भी नहीं है। समस्या पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ है। मुश्किल यह है कि आइएसआइ और पाकिस्तान की सेना क्रिकेट नहीं खेलतीं। वे जो खेल खेलते हैं वही दोनों देशों की मूल समस्या है। वे चाहते हैं कि दोनों देशों के लोग क्रिकेट में मशगूल रहें, ताकि उन्हें अगले हमले की तैयारी के लिए, आतंकवादियों के प्रशिक्षण के लिए और उन्हें भारत में भेजने के लिए शांति का वातावरण मिले। ये किसी आशंका या अविश्वास पर नहीं, छह दशकों के अनुभव पर आधारित है। जब हमने द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला बंद की थी तो एक ही मुद्दा था कि क्रिकेट और आतंकवाद साथ-साथ कैसे चल सकता है। इस सवाल को उठाने वाले युद्धोन्मादी मान लिए जाते हैं। पूछा जाता है कि युद्ध से भी तो समस्या हल नहीं हुई। युद्ध का माहौल बनने से किसका फायदा होगा। मगर बातचीत से ही अब तक हमें क्या मिला। तो इसका एक ही इलाज है हमें पाक से सारे संबंध तोड़ने होगे। हमें तकतवर बनना होगा। तो पाक फौज और आइएसआइ सोचने पर मजबूर होगी। हमारी ताकत से उसे खोप होगा। लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाली भारत सरकार, देद्गा को कभी मजबूत नही करना चाहती। यही है आज देद्गा की सरकार और सरकारी रहनुमाओं की हकीकत। तो आइए खड़े होइए, इस निटठल्ली सरकार को जगाने के लिए। बता दीजिए भारत की इस निटठल्ली सरकार को, कि इस देद्गा के लोगों की जिंदगी भेड बकरियों की तरह नही है, कि पाकिस्तानी आतंकी आयें और मासूम देद्गावासियों का कत्लेआम करके चले जायें।

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