29 July 2012

क्या असम में कश्मीर दोहराया जा रहा है ?

आज हम आपके सामने एक ऐसा मुददा लेकर आये हैं, जो बड़ा ही संबेदंशील और बिदेशियो की साजिद्गा का एक नमूना है। आज देद्गा की अस्मितता, एकता और अखण्डता से खिलवाड किया जा रहा है। देद्गा के नोर्थ-इस्ट पार्ट को भी, कद्गमीर बनाने की साजिद्गा हो रही है। जैसे कद्गमीर में पाकिस्तानी घुसपैठिये नंगा नाच कर रहे है, वैसे ही असम में बंगलादेशी घुसपैठिए, असम के मूल निवासियों को खदेड रहे हैं और सरकार इन घुसपैठियों का साथ दे रही है। जी हां एक बार फिर हो रही है देद्गा को तोड ने की साजिद्गा और सरकारी हुकमरान देख रहे हैं तमाशा । असम के स्थाई निवासी बोडो समुदाय को अपना घर-बार छोड ने को मजबूर किया जा रहा है। कांग्रेसी सरकार मजे से इस खेल का मजा ले रही है। कार्यवाही के नाम पर बोडो समुदाय को ही परेशान किया जा रहा है। बंगलादेशी घुसपैठियों को सुरक्षा दी जा रही है। केंद और राज्य सरकारें वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं। जो कभी कद्गमीर में हुआ था, आज असम में दोहराने को सरकार ने खुली छूट दे रखी है। घुसपैठियों के हौंसले बुलंद हैं। कांग्रेंस को पता है ये घुसपैठिये उसका वोट बैंक है। असम दंगों की असली तस्वीर बाहर नही आने दी जा रही है। कोई भी मीडिया संस्थान असम दंगों की सही तस्वीर पेद्गा नही कर रहा है। क्योंकि सरकार ने मीडिया संस्थानों को सही तस्वीर पेद्गा ना करने का समझौता कर रखा है। असम में घुसपैठिय नंगा नाच नाच रहे है। असम के स्थाई निवासी अपना घर बार छोड ने को मजबूर हैं। स्थाई निवासियों को कोई सुरक्षा नही दी जा रही र्है। डेढ करोड से ज्यादा बंगलादेशी असम में मौजूद हैं। २३ विधान सभाओं से ज्यादा में वो अपना प्रभाव रखते हैं। कोई भी स्थानीय नेता बोडो समुदाय पर होने वाले कहर की आवाज नही उठा रहा है। बोडों समुदाय की महिलाओं को जिंदा जलाया जा रहा है। प्रशाशन बोडों समुदाय की आवाज को दवा रहा है। बोडो समुदाय को ही दंगाई मानकर गोली मारी जा रही है। असम का मूल निवासी बोडो समुदाय असम को छोड ने को मजबूर है। जैसे कद्गमीर के मूल निवासी कद्गमीरी पंडितों को कद्गमीर छोड ने पर मजबूर किया गया, वैसे ही बोडो समुदाय को असम छोड ने पर मजबूर किया जा रहा है और इसमें सारा सरकारी महकमा घुसपैठियों का साथ दे रहा ह। कद्गमीरी पंडितों के साथ आज विदेसियों जैसा बर्ताव हो रहा है। वो भारत के मूल निवासी है मगर उनकी सुनने वाला कोई नही है। जैसे पाकिस्तान से आये घुसपैठियों और विद्रोहियों का इज्जत दी जा रही है। वैसे ही आज बंगलादेशी घुसपैठियों को कत्लेआम करने की छूट दी जा रही है। इन बंगलादेशी को भारतीय होने का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है। भारतवासियों को शिबिरो में रहने को मजबूर किया जा रहा है। भारतीय आपने देद्गा में ही बेगाने हो रहे है। विदेशी उनका हक जबर्दस्ती छीन रहे हैं। सरकारें भी बिदेशियो को भारत में खुला तांडव करने की छूट दे रही हैं। देद्गा के सीमवर्ती इलाको पर घुसपैठियों का कब्जा हो गया है। कश्मीर की आग सीमवर्ती प्रदेशो में भी भड़कने लगी है। स्थाई निवासियों का कत्लेआम हो रहा। सरकार मौन है। असम कद्गमीर की आग में झुलस रहा है। तो क्या ऐसे ही देद्गा के सीमावर्ती इलाकों पर घुसपैठियों का कब्जा होता रहेगा। तो क्या देद्गा के मूल निवासी ऐसे ही अपना घर छोड ने को मजबूर होते रहेंगे। क्या कांग्रेस सरकार ऐसे ही वोट बैंक की राजनीति के लिए देद्गा तोड़नेवाले ने घुसपैठियों का समर्थन करती रहेंगी।

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