15 July 2012

क्या राष्ट्रपति पद की गरिमा घटी है ?

भारतीय राजनीति आज जिस ओर बढ़ रही है उसको लेकर अब कई सारे सवाल खड़ा होने लगा है। इस दौर में अब सवाल यहा तक उठने लगा है की राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का बैकग्राउंड क्या हो, उसका जाती क्या है। वह किस पार्टी से संबंध रखता है। वह चाहे जिस क्षेत्र से आए, मूल शर्त यही रहती है कि वह चीजों की बेहतर समझ रखने वाला हो और सभी के लिए स्वीकार्य हो। साथ ही, उसकी निष्पक्षता पर किसी को संदेह नहीं हो। राष्ट्रपति का पद बेहद सम्मानित और मर्यादापूर्ण होता है। इस पद की गरिमा बरकरार रखने की क्षमता जिस किसी व्यक्ति में हो, वह राष्ट्रपति बनने के योग्य हो सकता है। राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद होता है, और इस पद पर बैठे व्यक्ति के पास बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील अधिकार होते हैं। मगर इस दौर में सवाल यहा इस ओर बढ ने लगा है की क्या वाकई ये सब आज देद्गा की राजनीतिक व्यवस्था में सटिक बैठता है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन, और एपीजे अब्दुल कलाम का कोई सीधा राजनीति संबंध नहीं था। हालांकि राजनीति से संबंध नहीं रखने के बावजूद इन सभी ने उत्तरदायित्व अन्य राष्ट्रपतियों की तरह ही बेहतरीन ढंग से निभाए। फिर भी हमारे देश में अब तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, उनमें कम ही ऐसे थे जिनका संबंध राजनीति से न रहा हो। मसलन , राष्ट्रपति को कई तरह के विधेयकों पर अपनी मंजूरी देनी होती है। देश के प्रथम नागरिक के चयन को लेकर संर्किण राजनीति के चलते इस पद की गरिमा दिन प्रतिदिन गिर रही है। राट्रपति चुनाव को लेकर आज हर राजनीतिक दल इस कदर हो हल्ला मचाये हुए है जैसे देद्गा में आम चुनाव हो रहा है। हर कोई अपनी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में लगा हुआ है। इस बार का राट्रपति चुनाव राजनीतिक गलियारों में ज्यादा हलचलें इसलिए हो रही है की २०१४ में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका भरपूर लाभ उठाया जा सके । मगर सवाल यहा इस लिए खड़ा होता है की क्या राट्रपति का पद भी आज के दौर में राजनेताओ के लिए उतना ही अहम साबित हो रहा है जितना देद्गा के प्रधान मंत्री और केंन्द्रीय मंत्री का पद है। अगर सवाल जायज है तो जाहिर है की इस पद की गरिमा भी उसी तरह गिर रहा है जैसे आज के मंत्री परिच्चद का है। मामला चाहे राट्रपति का हो या उपराच्च्ट्रपति का सियासत इस कदर हाबी है की पद और सम्मान से बड़ा वोट बैक कही ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। अगर उपराच्च्ट्रपति की बात करे तो यहा भी हालात वैसे ही है। यानी की उहापोह की स्थिति हर जहग हाबी है। भारत के उपराष्ट्रपति का पद निस्संदेह अत्यंत महत्वपूर्ण है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। पूरे विश्व में भारत का उपराष्ट्रपति ही ऐसा है, जिसे कार्यपालिका का भी अंग माना गया है और विधायिका का भी। मगर आज के दौर में सियासत और वोट बैक इस कदर राजनीतिक दलो पर हाबी हो गया है की राच्च्ट्रपती का पद भी सत्ता के अखाड़े में दब कर रह गई है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या राष्ट्रपति पद की गरिमा घटि है ?

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