अन्ना देश के अन्ना हैं, इस बार जंतर मंतर पर गम और गुस्से का अजीब संगम है, हर तरफ बस एक ही शोर है कि शायद अन्ना का ये अनशन आम आदमी के हक में एक ऐसा कानून बना सके जिसके डर से भ्रष्टाचारी को पसीने आ जाएं, क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं। बेईमान सियासत के इस न खत्म होने वाले दंगल में आम आदमी थक कर चूर हो चुका हैं। मगर फिर भी बेईमान नेताओं, मंत्रियों, अफसरों और बाबुओं की बेशर्मी को देखते हुए अन्ना लड़ रहे हैं। बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख्मी कर जाएं, अन्ना हजारों के आगे दम तोड देती हैं। देश में ऐसी परिस्थितियां बन चुकी हैं जहां आम जनता अपने आप को अकेला, असहाय और ठगा हुआ महसूस कर रही है, जिसे यह पता नहीं कि जिस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह आन्दोलन कर रही है वह कभी उसे मिलेगा भी या नहीं। ऐसे अब इस बार लोकपाल की यह लड़ाई आर पार की स्थिति में आ पहुंची है। पिछले ४० साल से देश की आम जनता की नजर एक ऐसे विधेयक पर पड़ी है जिसे यदि पास कर दिया जाए और एक कानून का रूप दे दिया जाए तो शायद देश की आधी समस्या दूर हो सकती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का संघर्ष जारी है, लेकिन अब यह आंदोलन इस ओर बढ ने लगी है जहां पर अन्ना आंदोलन बनाम केंन्द्र की सोई हुई सियासतदानो के साथ जंग ए ऐलान हो जुका है। तमाम तरह की मीडिया और जनता के सपोर्ट के बाद यह आन्दोलन तो सफल रहा लेकिन अंत में सरकार ने वही किया जिसके लिए वह जानी जाती है। उसने बिल तो पास नहीं किया उलटे आंदोलन करने वाली टीम अन्ना पर ही वार कर दिया। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या टीम अन्ना को अपनी अंतिम युध्द बाड छोड नी चाहिए। इस बार टीम अन्ना भी आन्दोलन को अंतिम अंजाम तक ले जाने की मूड में हैं। पिछले डेढ साल से सरकार के धोखों और ढकोसलों से वह पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है इसलिए इस बार टीम अन्ना लोकपाल पर कम फोकस करते हुए उन मंत्रियों पर ज्यादा हमले दाग रही है जो लोकपाल कानून बनने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। अगर बात की जाए पिछले दो दिन से जारी इस आंदोलन की तो इस बार सरकार की बातों से बता चलता है कि वह किसी भी तरह से आंदोलन को हाइप देना नहीं चाहेगी और न ही उन सभी मुद्दों पर गौर फरमाएगी जिसे टीम अन्ना ने रखा है। इस बार के आंदोलन में मीडिया की भी कुछ कमी दिखाई दे रही है। इसका एकमात्र कारण सरकार की मीडिया जगत पर दबाव और दमनकारी नीति है। जंतर-मंतर के गम और गुस्से को करीब से सायद अभी देद्गा के सताधिशो को अभी नही हो पा रहा है। जंतर मंतर की भीड किसी वोट बैंक का हिस्सा नहीं बल्कि उनकी है जो भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। हजारों लोगों को किसी एक नाम से पुकारेंगे तो यकीनन वह नाम अन्ना ही होगा। बहरहाल ये एक ऐसा आंदोलन है जिसकी आवाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । तो ऐसे में कहना गलत नही होगा की अब आर पार की लड़ाई हो ही जाय।
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