29 July 2012

सरकार अणा आन्दोलन को नजर अंदाज़ क्यों कर रही है ?

टीम अन्ना जंतर-मंतर पर भ्रच्च्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रही है। टीम अन्ना के कई सदस्य भूख हड़ताल पर बैठे हैं। सरकार अपनी मस्ती में मद्गागूल है। भ्रच्च्टाचारी मंत्री खुलेआम देद्गा को लूट रहे हैं। टीम अन्ना हर हाल में इन भ्रच्च्टाचारियों को जेल में देखना चाहती है। लेकिन टीम अन्ना को जनता का समर्थन जोद्गा और आक्रोद्गा के साथ नहीं मिल रहा है। जंतर-मंतर पर युवा भ्रच्च्टाचार की लड़ाई में समर्पित नही दिख रहे हैं। जी हां आज ऐसा ही लग रहा है। भ्रच्च्टाचार से त्रस्त जनता सरकारी भ्रच्च्टाचार के खिलाफ सुस्त दिख रही है। ऐसा लग रहा है जनता, खुद भ्रच्च्टाचार के खिलाफ ईमानदार नही है। भ्रच्च्टाचार की लड़ाई में जनता सांझेदार नही होना चाहती। पीछले आंदोलन के मुकाबले जनता में जोद्गा कम दिख रहा है। क्या जनता हार मान गई है। क्या जनता ने भ्रच्च्ट सरकारी हुक्मरानों को मांफ कर दिया है। क्या जनता झूंठी और भ्रच्च्ट सरकार के आद्गावासनों से सहमत हो गई है। क्या सरकार जनता की बहानेबाजी को भूल गई। लगता है ऐसा ही अंदाजा लगा रही है भ्रच्च्ट सरकार। सरकार को लगता है की जंतर-मंतर पर पहले दो दिन जनता की भागेदारी कम रही। सरकार इस गुमान में है कि जनता के कम शामिल होने से भ्रच्च्टाचार की लड़ाई कमजोर हो गई है। लेकिन जनता फिर से अन्ना आंदोलन में बढ -चढ कर हिस्सा ले रही है। आखिर जनता कैसे भूल जायेगी भ्रच्च्ट सरकार के झूंठे वादों को। कैसे इस भ्रच्च्ट सरकार ने अन्ना को जनलोकपाल लाने का वादा किया था। कैसे अपने वादे से मुकरते हुए सरकारी लोकपाल लेकर आयी। सरकार की मंशा कभी भी जनलोकपाल लाने की नही रही। सरकार कभी भी काले धन को वापस नही लाना चाहती। जनता आज भी भ्रच्च्टाचार से त्रस्त है। जनता पहले भी भ्रच्च्टाचार से परेशान थी। लेकिन सरकार को गलफहमी हो है। उसे लगता है जनता सुस्त हो गई है। लेकिन नही, जनता अपनी लड़ाई आखिरी दम तक लड़ाई । अखिर जनता को अन्ना और रामदेव के रूप में दो मसीहा जो मिल गये है। लेकिन सरकार और सरकारी हुक्मरानों को गलतफहमी हो गई है। सरकारी आका तरह तरह के बयान दे रहे है। कभी अन्ना टीम को तानाशाही बताया जाता है तो कभी बिदेशी ऐजेंट। सरकार जनता को बहकाना चाहती है। बाबा रामदेव के सहयोगियों को परेशां किया जा रहा है। अन्ना टीम को तोड़ने की साजिद्गा रची जा रही है। मीडिया संस्थानों को खरीदा जा रहा है। साजिद्गा के तहत मीडिया संस्थान आंदोलन की खाबरों को नही दिखा रहे है। सरकार इसके लिए करोडो अरबों खर्च कर रही है। गरीब को रोटी नही मिल रही है। सरकारी आका आंदोलनों को तोड ने के लिए सरकारी पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। लेकिन सरकार समझा जाये, ये जनता का आदोलन है। जनता कभी पीछे नही हटेगी। सरकार को जनता की मांग माननी ही पड़ेगी । तो ऐसे में अब सरकार की बहानेबाजी नही चलने वाली। सरकार जल्दी से जल्दी जनता की मांगों पर गौर करे। अगर अभी भी सरकार को सदबुद्धि नही आयी तो ऐसी भ्रच्च्ट सरकार के खिलाफ देद्गा में विद्रोह भड क जायेगा। ऐसे में भड की जनता कानून व्यवस्था भी अपने हाथ में ले सकती है। इसलिए सरकार जल्दी से जल्दी आंदोलनकारियों की मांग माने और उन पर कार्यवाही करे।

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