क्या अर्थशास्त्री ली कचिंयांग ने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को ताड़ लिया
है। क्या मनमोहन के बाजारवाद में अब चीनी सामानों की खुली घुसपैठ होगी।
क्या उत्पादन समझौते से चीन भारत की खेती पर भी कब्जा करेगा। क्या चीन
पड़ोसियो के जरीये भारत को सरहद पर घेरेगा। क्या चीन की नयी विदेश नीति
भारत की आत्मनिर्भरता खत्म करने की है। यह सारे सवाल इसलिये क्योंकि जिस
तरह चीन के साथ मीट, मछली, पानी, उत्पाद, इन्फ्रास्ट्रकचर और आपसी संवाद या
रिश्तों को लेकर समझौते हुये, उसने कई सवाल समझौते के तौर तरीको को लेकर
ही खड़े कर दिये हैं। मसलन चीनी सैनिकों ने लद्दाख में खुल्लम-खुल्ला
घुसपैठ की। 22 किलोमीटर तक घुस आये।
टैंट अभी भी भारत की सीमा के भीतर लगे
हुये हैं। लेकिन चीन के प्रधानमंत्री के साथ खडे हुये तो मनमोहन सिंह
घुसपैठ शब्द तक नहीं कह पाए। बोले घटना हुई। समझौते को लेकर कहा गया कि
बॉर्डर मेकैनिज्म को और कारगर बनाया जाएगा। लेकिन कैसे, ना विस्तार से
चर्चा हुई और ना ही कुछ बताया गया। और तो और चीन ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव
की जानकारी साझा करेगा यानी भारत में बाढ़ आने से पहले चीन बता देगा कि
क्या होने वाला है, लेकिन मनमोहन सिंह यह भी पूछ नहीं पाये कि नदी पर जो
डैम बनाए गए हैं, उस पर तो कोई जानकारी दीजिये ।
फिर आर्थिक-व्यापारिक समझौतों ने बता दिया कि जो कारोबार अभी 66 अरब डॉलर का है वह समझौतों के बाद बढ़कर 100 अरब डालर हो जायेगा। यानी अभी चीन की कमाई भारत के साथ तमाम व्यापारिक रिश्तों के 80 फिसदी लाभ की है, वह समझौते के बाद 90 फिसदी तक पहुंच जायेगी । तो फिर मनमोहन सिंह कर क्या रहे थे। जबकि इसी दौर में समझना यह भी चाहिये कि चीन भारत को चौतरफा घेर रहा है। पाकिस्तान के पीओके और अक्साई चीन ही नहीं बल्कि ग्वादर बंदरगाह उसके रणनीतिक कब्जे में हैं। श्रीलंका के हम्बटोटा बंदरगाह पर उसी का कब्जा है। बांग्लादेश की सेना में जल, थल वायु तीनो के लिये चीनी हथियार, टैंक, जहाज सभी चीनी ही हैं।
फिर आर्थिक-व्यापारिक समझौतों ने बता दिया कि जो कारोबार अभी 66 अरब डॉलर का है वह समझौतों के बाद बढ़कर 100 अरब डालर हो जायेगा। यानी अभी चीन की कमाई भारत के साथ तमाम व्यापारिक रिश्तों के 80 फिसदी लाभ की है, वह समझौते के बाद 90 फिसदी तक पहुंच जायेगी । तो फिर मनमोहन सिंह कर क्या रहे थे। जबकि इसी दौर में समझना यह भी चाहिये कि चीन भारत को चौतरफा घेर रहा है। पाकिस्तान के पीओके और अक्साई चीन ही नहीं बल्कि ग्वादर बंदरगाह उसके रणनीतिक कब्जे में हैं। श्रीलंका के हम्बटोटा बंदरगाह पर उसी का कब्जा है। बांग्लादेश की सेना में जल, थल वायु तीनो के लिये चीनी हथियार, टैंक, जहाज सभी चीनी ही हैं।
जबकि यह वही चीन है जो बांग्लादेश को मान्यता देने के
लिये 1971 में तैयार नहीं था। यही हाल म्यांमार का है। वहां भी चीन ने भारी
निवेश किया है। नेपाल के साथ तो हर स्तर पर अब चीन जा खड़ा हुआ है । यानी
भारत की चौतरफा घेराबंदी चीन के प्रधानमंत्री ली कचिंयाग ने शुरु की है। यह
अलग बात है ली कचिंयाग ने राजनीति 1962 के बाद शुरु की। लेकिन जो रणनीति
चीन बिछा रहा है उस बिसात को चीनी प्रधानमंत्री की मौजूदा यात्रा से ही
समझना चाहिये कि दिल्ली से मुंबई होते हुये वह पाकिस्तान ही जायेंगे, तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या मनमोहन सिंह चीनी प्रधान मंत्री के आगे घुटने टेक दिए है ?
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