14 May 2013

क्या सत्ता परिवर्तन के बाद सुधरेगा पाकिस्तान ?

वर्ष 1999 में नवाज शरीफ के हाथ से सत्ता छीन लेने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान में सेना का तानाशाही राज स्थापित किया था। यह वो समय था जब पहले से ही अपने अस्तित्व और वैश्विक पहचान सुधारने की कोशिशों में लगे पाकिस्तान को एक ऐसा झटका लगा जिससे वह आज तक उभर नहीं पाया। सत्ता सेना के हाथ में चले जाने के बाद मुल्क की तकदीर जो शायद बदल सकती थी वह गर्त की खाई में जाती रही। पाकिस्तान की आवाम तो शुरुआती समय से ही ध्वस्त अर्थव्यवस्थाए भ्रष्टाचार और दिनोंदिन मजबूत होते तालिबान से जूझ रही है लेकिन इस मुल्क की वजह से बाहरी देशों में भय और आतंकवाद का जो माहौल बना हुआ है उसकी वजह से वैश्विक पटल पर भी पाकिस्तान पर आतंकवादी राष्ट्र होने का ऐसा दाग लगा जिसे आज तक धोया नहीं जा सका है। भारत का पड़ोसी मुल्क होने के कारण पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियों का प्रभाव भी सबसे ज्यादा भारत पर ही पड़ा। आतंकवाद का गढ़ बन चुका पाकिस्तान हर संभव प्रयास कर भारत में आतंकवादी घुसपैठ करवाता रहाए जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के संबंध कभी अच्छे नहीं बन पाए।

लेकिन अब शायद पाकिस्तान की तकदीर उस पर मेहरबान होने जा रही है क्योंकि पाकिस्तान की जनता ने तानशाही का अंत कर लोकतांत्रिक तरीके से सरकार का चुनाव किया है और इस चुनाव में जीत दर्ज कर एक बार फिर वही नवाज शरीफ सत्ता में वापसी कर रहे हैं जिसे कभी मुशर्रफ ने गद्दी से गिराकर फांसी की सजा सुनाई थी। गठबंधन सरकार बनाकर नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान की गद्दी संभालने जा रहे हैं। नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही जहां कुछ बुद्धिजीवी ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि शायद अब पाकिस्तान की भीतरी और बाहरी गतिविधियां नियंत्रित होंगी जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरेंगे वहीं कुछ इसे मात्र एक कल्पना मान रहे हैंए क्योंकि उनका मानना है कि अभी भी उस मुल्क पर कट्टरपंथ पूरी तरह प्रभावी है जो उसे अन्य देशों के साथ संबंध सुधार की कवायद को प्रभावित करेगा।

पाकिस्तान के इस सत्ता परिवर्तन के बाद महत्वपूर्ण सुधारों की उम्मीद कर रहा वर्ग इस बात की पैरवी करता है कि नवाज शरीफ 13 वर्ष के इस अंतराल के बाद परिपक्व नेता के तौर पर देश के बाहरी और अंदरूनी गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए तैयार हैं। कारगिल युद्ध के समय भी पीएमएल.एन के नेता और पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कहना था कि उन्हें कारगिल युद्ध के बारे में भनक भी नहीं थीए वह इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के साथ युद्ध छेड़ दिया है। जाहिर है वह भारत के साथ युद्ध कर संबंध और नहीं बिगाड़ना चाहते थे और अब जब पाकिस्तान की सत्ता पर फिर एक बार नवाज शरीफ का राज स्थापित होने वाला है तो भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधार जैसी उम्मीद की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की लगभग अधिकांश जनता ऐसी है जिसका किसी ना किसी तरह से संबंध भारत से हैए इसीलिए राजनैतिक संबंध के साथ.साथ जमीनी स्तर पर भी बहुत हद तक संभव है कि पाकिस्तानए भारत के साथ संबंध सुधारे। नवाज शरीफ अपनी गलतियों से सबक लेकर सत्ता संभालने जा रहे हैं इसीलिए अब उनसे ऐसे किसी कदम की अपेक्षा नहीं है जिससे उनके संबंध पड़ोसी मुल्कों के साथ बिगड़ें। सेना की तानाशाही में उन्होंने पाकिस्तान के बिगड़ते हालातों और देश की जनता की त्रासदी को बहुत करीब से देखा है इसीलिए उम्मीद है कि वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिसकी वजह से हालात बद से बदतर हो जाएं।

वहीं दूसरी ओर वह वर्ग जो नवाज शरीफ की कार्यप्रणाली और भविष्यगत योजनाओं पर ज्यादा विश्वास नहीं कर रहा हैए का कहना है कि इस बदलाव से पाकिस्तान और भारत के संबंध में सुधार की उम्मीद करना खुद को भ्रमित करने जैसा है। पाकिस्तान की ओर से हमेशा से ही पहले आश्वासन दिए जाते हैं और उसके बाद पीठ पर छुरा घोंपा जाता है। पाकिस्तान के इतिहास पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाते हैं जब पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दगा दिया गया है। नवाज शरीफ पहली बार गद्दी संभालने नहीं जा रहे बल्कि यह उनका तीसरा कार्यकाल होगा। जब पहले वे मुल्क के सरताज थे तब भी भारत के साथ पाक के संबंधों में किसी प्रकार का सुधार नहीं था इसीलिए अब भी उनसे कोई अपेक्षा नहीं रखी जानी चाहिए। इस वर्ग में शामिल बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि भले ही नवाज शरीफ भारत.पाकिस्तान के संबंध सुधारने की कोशिश करें लेकिन पाकिस्तान में व्याप्त कट्टरपंथ इन कोशिशों को साकार होने ही नहीं देगा।

पाकिस्तान में हुए इस सत्ता परिवर्तन के बाद भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों में होने वाले बदलावों से संबंधित दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हैंए जैसेर
1 नवाज शरीफ सत्ता की कमान फिर एक बार संभालने जा रहे हैंए उनकी पूर्व की कार्यप्रणालीए प्राथमिकताएं और निर्णय क्षमता का आंकलन कर क्या इस बार सुधार की उम्मीद की जा सकती है
2 नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने से भारत और पाकिस्तान के संबंध किस हद तक प्रभावित होंगे
3 भारतीय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भारत आने का न्यौता दे चुके हैंए क्या हमारी यह पहल हमेशा की तरह हमारे लिए ही तो घातक सिद्ध नहीं होगी
4 पाकिस्तान में कट्टरपंथी गुट क्या पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधार की कोशिशें सफल होने देंगे

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