विजया दशमी का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसे
मनाने को लेकर देश में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। भारत परंपराओं और विविधताओं से भरा देश है। यहां एक ही त्योहार को अलग- अलग
राज्यों में अपनी- अपनी भाषा और प्रांत के अनुसार लोग मनाते हैं। विजयादशमी का
अलग- अलग राज्यों में क्या है विशेष महत्व और आज के दिन किन राज्यों में इससे
जुड़ी क्या है खास परंपरा, देखिए
हमारे इस विशेष रिपोर्ट में।
विजयादशमी पर मान्यताएं
विजयादशमी के दिन महिषासुर का वध करके माता
कात्यायनी विजयी हुई थीं
भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर उसे मुक्ति प्रदान की थी
देवी सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अग्नि में समा गई
थीं
इसी दिन पांडवों को वनवास हुआ था
इस दिन से वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास भी
समाप्त हो जाता है
साथ ही ऐसी मान्यता है कि
दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को
सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने
वाला पेड़ माना जाता है। अयोध्या के राजा रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया। सर्व संपत्ति
दान कर वे एक पर्णकुटी में रहने लगे थे। वहां कौत्स नामक एक ब्राह्मण ने राजा रघु
को बताया कि उसे अपने गुरु को गुरुदक्षिणा देने के लिए 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की आवश्यकता है। तब राजा रघु
कुबेर पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो गए। डरकर कुबेर राजा रघु की शरण में आए तथा
उन्होंने अश्मंतक एवं शमी के वृक्षों पर स्वर्णमुद्राओं की वर्षा की। उनमें से
कौत्स ने केवल 14 करोड़ स्वर्णमुद्राएं ली।
जो स्वर्णमुद्राएं कौत्स ने नहीं ली,
वह सब
राजा रघु ने बांट दी। तभी से दशहरे के दिन एक दूसरे को सोने के रूप में लोग
अश्मंतक के पत्ते देते हैं।
दशहरा एक ऐसा
त्योहार है जो हमें सिखाता है कि बुराई का अंत निश्चित है और अच्छाई की हमेशा जीत
होती है। यह हमें हमारे भीतर और समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करने और एक
समृद्ध, न्यायपूर्ण और नैतिक समाज की स्थापना की प्रेरणा देता है। इस
दिन हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म और नैतिकता
को महत्व देने की सीख मिलती है। दशहरा
आत्मनिरीक्षण और आत्म-सुधार का पर्व भी है। यह हमें आंतरिक बुराइयों से लड़ने और
आत्मशुद्धि के लिए प्रेरित करता है। भगवान राम और देवी दुर्गा की विजय से यह सीख
मिलती है कि जीवन में सत्कर्म, आत्मानुशासन और
आध्यात्मिकता का महत्व क्या है।
दशहरा या विजयादशमी पूरे भारत में भिन्न-भिन्न परंपराओं और प्रथाओं के
साथ मनाई जाती है। दशहरा भारत की सांस्कृतिक और
पारंपरिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम भी है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे
भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, जो भारत की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक
परंपरा का प्रतीक है। रामलीला, दुर्गा पूजा,
रावण दहन
जैसी परंपराएं लोक संस्कृति का हिस्सा हैं और उन्हें जीवंत बनाती हैं। ऐसे में भारत
के प्रमुख राज्यों में दशहरे से जुड़ी लोक परंपराओं को जानना भी काफी रोचक है।
उत्तर भारत की लोक परंपराएं
रामलीला
उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मध्य प्रदेश में, दशहरे का मुख्य आकर्षण रामलीला होती है।
धार्मिक नाटक रामायण के मुख्य पात्रों की कहानी को नाट्य रूप में प्रस्तुत करता है।
राम और रावण के बीच युद्ध के साथ समापन होता है
दशहरे के दिन
रावण,
कुंभकर्ण और
मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है
उत्तर भारत की लोक परंपराएं
कुम्भ मेला
हरिद्वार और प्रयागराज के पवित्र स्थलों पर लोग दशहरे के दिन बड़ी संख्या
में गंगा स्नान करते हैं
यह दिन धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में दशहरे को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है
देवी दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा की जाती है
दसवें दिन विजयादशमी को देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है
पश्चिम बंगाल में विजयादशमी के दिन महिलाएं सिंदूर खेला करती हैं
इस दिन विवाहित महिलाएं दुर्गा माता को विदाई देती हैं
समय एक-दूसरे
को सिंदूर लगाकर मंगलकामनाएं करती हैं
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
महाराष्ट्र
लोग एक- दूसरे को अश्मंतक के पत्ते को आदान–प्रदान करते हैं
महाराष्ट्र में दशहरे के दिन लोग अपट पेड़ की पत्तियों को “सोना” मानते हैं
इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है
परिवार और मित्रों के साथ विशेष भोज का आयोजन भी किया जाता है
दशहरे के दिन
विभिन्न प्रकार के जुलूस और पूजा आयोजित की जाती हैं
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
कर्नाटक
कर्नाटक का मैसूर दशहरा विश्वप्रसिद्ध है
इस अवसर पर मैसूर के राजमहल को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है
पूरे शहर में जुलूस निकाले जाते हैं
जुलूस का मुख्य आकर्षण हाथियों पर सजे-धजे महाराजा की सवारी होती है
मैसूर दशहरे की जड़ें विजयनगर साम्राज्य से जुड़ी हैं
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
गुजरात
गुजरात में दशहरे का समापन नवरात्रि के नौ दिनों की गरबा और डांडिया रातों के बाद होता है
लोग परंपरागत पोशाक पहनकर गरबा और डांडिया नृत्य करते हैं
दशहरे के दिन दुर्गा मां की पूजा का समापन होता है
इसे बुराई पर
अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
हिमाचल प्रदेश
कुल्लू का दशहरा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और इसे एक सप्ताह तक मनाया जाता है।
इस अवसर पर देवी-देवताओं की मूर्तियों को कुल्लू घाटी में लाकर एक विशाल जुलूस निकाला जाता है
यहां के दशहरे की खास बात यह है कि इसे रावण दहन के बिना मनाया जाता है
राम के
राज्याभिषेक पर अधिक जोर दिया जाता है
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
तमिलनाडु
तमिलनाडु में दशहरे के दौरान बोम्मई गोलू नामक परंपरा होती है
घरों में खिलौनों और मूर्तियों की सीढ़ीदार सजावट की जाती है
नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से महिलाएं सजाती हैं और सामाजिक समारोह आयोजित किए जाते हैं
विजयादशमी के
दिन विशेष पूजा और भजन कार्यक्रम होते हैं
विजयादशमी पर लोक परंपराएं
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है।
इसे “जमीन की पूजा” भी कहा जाता है
इसे युद्ध और संघर्ष के समय विजय के लिए शुभ माना जाता है
लोग शमी के
पेड़ की पत्तियां एक-दूसरे को भेंट करते हैं और इसे अच्छा शगुन माना जाता है
दशहरा में जिस तरह से नीलकंठ पक्षी का दिखना शुभ मानते हैं उसी तरह इस दिन
शस्त्रों की भी पूजा की जाती है। इस दिन बंदूक से लेकर तलवार,कटार, लाठी आदि शस्त्रों की पूजा की जाती है। इसे लेकर पौराणिक कथाओं में
उल्लेख मिलता हैं। इसकी दो कथाएं सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब
प्रभु श्रीराम ने माता सीता को दशानन रावण की कैद से मुक्ति दिलाने के लिए युद्ध
कर रावण का वध किया था। श्री राम ने उस युद्ध पर जाने से पहले शस्त्रों की पूजा की
थी।
वहीं पर एक
परंपरा के अनुसार, जब मां
दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध कर बुराई का अंत किया था, उसके बाद देवताओं ने मां दुर्गा
के शस्त्रों का पूजन किया था। इस दिन माहिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा और प्रभु
श्रीराम के साथ शस्त्रो की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। प्रोग्रामिंग डेस्क,
जनता टीवी।
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