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सितंबर 1951 का दिन था. दिल्ली में एक मुद्दे पर प्रधानमंत्री पंडित
जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ नारे लगाए जा रहे थे. कट्टरवादी हिंदू की एक भीड़
नेहरू से गद्दी छोड़ देने की मांग कर रही थी. आजाद
भारत में सबसे बड़े नेता और पहले प्रधानमंत्री नेहरू के खिलाफ विरोध की
आवाज बुलंद थी. नेहरू के खिलाफ उठे आंदोलन का नेतृत्व अखिल भारतीय राम
राज्य परिषद के संस्थापक स्वामी करपात्री महाराज कर रहे थे. स्वामी
करपात्री के अनुसार हिंदू कोड बिल हिन्दु रीति-रिवाजों, परंपराओं और
धर्मशास्त्रों के विरुद्ध था. जब
भारत आजाद हुआ तब हिंदू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं
था, हिंदू पुरूषों को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी लेकिन विधवाएं
दोबारा शादी नहीं कर सकती थी. विधवाओं को संपत्ति से भी वंचित रखा गया था.
नेहरू समाज की इन रुढ़िवादी परंपराओं को बदल देना चाहते थे. नेहरू जिस
सामाजिक बदलाव की हिमायत कर रहे थे हिंदू समाज उसका विरोध कर रहा था. फरवरी
1949 को संसद भवन में नेहरू ने कहा, ‘इस कानून को हम इतनी अहमियत देते हैं
कि हमारी सरकार बिना इसे पास कराए सत्ता में रह ही नहीं सकती.’
तत्कालिन
कानून मंत्री डॉक्टर बीआर अंबेडकर हिंदू कोड बिल के पक्ष में नेहरू का साथ
दे रहे थे. 1948 में ये बिल संविधान सभा में पहली बार पेश किया गया. लेकिन
अंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू के समर्थन के बावजूद हिंदू कोड बिल का
जबरदस्त विरोध हुआ. कानून मंत्री अंबेडकर ने 5 फरवरी 1951 को हिन्दू कोड
बिल को संसद में दोबारा पेश किया. तब भारत का संविधान भी बनकर तैयार था.
लेकिन संसद के सदस्यों को जनता ने नहीं चुना था. इन सदस्यों को बहुसंख्यक
हिंदू समाज में बदलाव और पुराने रीति-रिवाजों को बदलने का निर्णय करना था.
संसद में तीन दिन तक बहस चली. हिंदू कोड बिल के विरोधियों का सबसे बड़ा
तर्क था कि संसद के सदस्य जनता के चुने हुए नहीं है इसलिए इतने बड़े विधेयक
को पास करने का नैतिक अधिकार नहीं है. दूसरा तर्क था कि सिर्फ हिंदुओं के
लिए कानून क्यों लाया जाए बहुविवाह की परंपरा तो दूसरे धर्मों में भी है.
इस कानून को सभी पर लागू किया जाना चाहिए.
मार्च
1949 से ऑल इंडिया एंटी हिंदू कोड बिल कमेटी सक्रिय थी. करपात्री महाराज
के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक, हिंदू महासभा और दूसरे हिंदूवादी संगठन हिंदू
कोड बिल का विरोध कर रहे थे. इसलिए जब इस बिल को संसद में चर्चा के लिए
लाया गया तब हिंदूवादी संगठनों ने इसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन शुरू कर
दिए. राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ ने अकेले दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलियां आयोजित कीं.
महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा दिए जाने, तलाक का अधिकार दिए जाने
और स्त्रियों को समानता का अधिकार दिए जाने जैसे प्रावधानों की वजह से
हिंदू कोड बिल के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के कोने-कोने में
प्रदर्शन किए. डॉक्टर
राजेंद्र प्रसाद भी इस बिल को लाए जाने के खिलाफ थे. राजेंद्र प्रसाद ने
बिल के विरोध में कई पत्र नेहरू को लिखे. 1950 में राष्ट्रपति बनने के बाद
भी नेहरू को चेताया कि बहुसंख्यक हिंदू समुदाय पर इस तरह का कानून जबरदस्ती
थोपा नहीं जाना चाहिए और वो राष्ट्रपति के अधिकारों का इस्तेमाल कर कानून
को मंजूरी न देने के विकल्प पर विचार कर सकते हैं.
कांग्रेस
नेताओं और राष्ट्रपति के विरोध से नेहरू विचलित नहीं हुए और अपनी जिंद पर
अड़े रहे. आखिरकार नेहरू और डॉक्टर अंबेडकर ने 17 सितंबर 1951 को चर्चा के
लिए इस बिल को सदन के पटल पर रखा. संसद में विरोध और बहस को देखते हुए
प्रधानमंत्री नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में बांटने का एलान कर
दिया. डॉक्टर अंबेडकर नेहरू के इस प्रस्ताव के खिलाफ थे. अंबेडकर ने
कांग्रेस से इस्तीफा देकर नेहरू का साथ छोड़ दिया. दूसरी
तरफ हिंदू कोड बिल के विरोध को देखते हुए नेहरू को ऐहसास हो गया था कि
बिना जनादेश के इस कानून को पास कराना आसान नहीं होगा. इसी वजह से उन्होंने
चुनाव तक इस बिल को टालने का मन बना लिया.
1951-52
में भारत के पहले आम चुनाव होने वाले थे. नेहरू के लिए यह काफी अहम थे.
इलाहाबाद की फूलपुर सीट से नेहरू लोकसभा का पहला चुनाव लड़ रहे थे. इन
चुनावों में हिंदू कोड बिल सबसे बड़ा मुद्दा था. नेहरू के खिलाफ संन्यासी
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी चुनाव लड़ रहे थे. हिंदू कोड बिल के समर्थन में जनसंघ
और हिंदू महासभा जैसे दलों ने अपना उम्मीदवार खड़ा करने के बजाय प्रभुदत्त
ब्रह्मचारी को समर्थन दिया. देशभर में वोट डाले गए और नतीजे घोषित हुए.
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी अपनी जमानत भी नही बचा पाए थे और नेहरू के नेतृत्व
में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत हासिल की. नेहरू का साथ छोड़ चुके डॉक्टर
अंबेडकर भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार चुके थे.
देश
के पहले लोकसभा चुनाव के बाद नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में
तोड़ दिया. जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया. जिसके तहत तलाक
को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह
का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया
गया. इसके अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण
और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. ये सभी
कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गये थे. इसके
तहत पहली बार महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया. लड़कियों को गोद
लेने पर जोर दिया गया. यह कानून हिंदुओं के अलावा सिखों, बौद्ध और जैन धर्म
पर लागू होता है.
नेहरू
के इस कदम का भी संसद के बाहर और अंदर जबरदस्त विरोध हुआ लेकिन बहुमत की
सरकार होने की वजह से नेहरू इन विधेयकों को पास कराने में कामयाब रहे.
Thanks for This information sir :)
ReplyDeleteGood job :)
उसी समय में मुसलमान के लिए भी नियम बनाना चाहिए था .आज मुसलमान की जनसँख्या बढ़ोतरी चरम पर है ,
ReplyDeleteउसी समय में मुसलमान के लिए भी नियम बनाना चाहिए था .आज मुसलमान की जनसँख्या बढ़ोतरी चरम पर है ,
ReplyDeleteइस विल से महिलाओं का सम्मान खत्म होना शुरू हुआ, सम्पत्ति में अधिकार के कारण महिलाओं की हत्या होना शुरू हुआ, आज महिलायें अपने पिता की सम्पत्ति के साथ ससुर (पति) की सम्पत्ति की हकदार हैं जवकि पुरुष केवल अपने पिता की सम्पत्ति पा सकता है |अगले कमेंट में सत्य धटना भी पढें |
ReplyDeleteSahi bola
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ReplyDeleteनेहरू सरकार को अगर समाज और महिलाओं के हित में बिल लाना ही था तो इंडियन सीविल कोड बिल लाते। मै हिंदू कोड बिल में महिलाओं को मिले अधिकार और सभी बातों के पक्ष में हूं लेकिन ये सभी धर्मो के लिए होता तो धर्मनिरपेक्ष भारत की परिभाषा को सही रूप में परिभाषित करता।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा भाई
Deleteहिन्दु मैरीज एक्ट १९५५ से व अन्य हिन्दु बिल से
ReplyDeleteधर्म सापेक्ष राष्ट्र की बू आती है धर्म निरपेक्ष की नही. एक देश एक कानून वाला विचार ही धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाता है
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ReplyDeleteBaba sahab is great man of india
ReplyDeleteYaha par char hisse hue the Hindu code bill ke Lekin 3 ke bare me h fourth hissa kon sa tha ye to btaya nahi
ReplyDeleteBAAT KUCHH OR BHI HAI
ReplyDeleteहिन्दू कोड बिल यादि हिन्दू के अलाबा सभी मुस्लिम धर्म पर लागु होता तो और अच्छा होता।
ReplyDeleteआखिर गलत क्या था हिन्दू कोडबिल में जो हिन्दू इसका विरोध कर रहे थे इसमें हिन्दू महिलाओ को ही तो फायदा मिला।
कोई बताएगा ?????
आशुतोष जी आप क्या जमीनी हकीकत से वाकिफ नही है? जिन्हें आप दो तरफ की संपत्ति का अधिकारी होने की बात कह रहे है वास्तव में वे एक भी संपत्ति की मालिक नही है। कानून और हकीकत आज भी एक नही है।महानगरों को छोड़ दे तो गांवो में अब भी स्थिति जस की तस है।।
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