क्या
दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादन करने वाली कंपनी कोल इंडिया संभावित शेयरहोल्डरों
से अपने कोयला भंडार के सच को छिपा रही है? एक गैरसरकारी संस्था द्वारा किये गये
अध्ययन में यही तथ्य सामने आया है कि कोल इंडिया अपने पास जितने कोल ब्लाक होने का
दावा कर रही है
उतने उसके पास है नहीं। इसके बावजूद कोल इंडिया अपने अतिरिक्त शेयर को अन्तर्राष्ट्रीय
निवेशकों को बेचने की तैयारी भी कर रही है जो कि संभावित निवेशकों के साथ धोखाधड़ी है। "कोल इंडियाः रनिंग ऑन
इम्पटी" रिपोर्ट के अनुसार कोल इंडिया ने अपने आंतरिक आंकलन को शेयर बाजार में
जाहिर नहीं किया है जिसमें दिखाया गया है कि 2010 में कंपनी ने जितना निष्कर्षण योग्य
कोयला भंडार दिखाया है उससे 16 % कम भंडार ही उपलब्ध है।
ऐसे में कोल
इंडिया अपने निवेशकों के सामने झूठ बोल रहा है जो कि सेबी के
नियमों का उल्लंघन है। अभी भी कोल इंडिया अपने वेबसाइट पर दावा करती है कि
उसके पास 21.7 बिलियन
टन निष्कर्षण योग्य
कोयला भंडार है। कंपनी के आंतरिक दस्तावेजों के समीक्षा में ग्रीनपीस और इंस्टीच्युट फॉर इनर्जी
इकोनोमिक्स एंड फाइनेंशियल एनलिसिस ने पाया है कि संयुक्त राष्ट्र रिजर्व
वर्गीकरण सिस्टम के अनुसार कंपनी के पास सिर्फ 18.2 बिलियन टन निष्कर्षण योग्य कोयला भंडार ही
उपलब्ध है। निर्धारित
उत्पादन लक्ष्य के हिसाब से यह भंडार सिर्फ 17 साल में ही समाप्त
हो जाएगा।
इसी तथ्य के मद्देनजर ग्रीनपीस इंडिया ने कोयला भंडार के बारे में सही अनुपात को छिपाने के बारे में कोल इंडिया के खिलाफ इंडियन सिक्युरिटी कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट 1956 के तहत भारतीय शेयर बाजर नियामक के पास आधिकारिक शिकायत दर्ज करवाई है। ग्रीनपीस के आशिष फर्नानडिस ने इन निष्कर्षों पर कहा कि “कोल इंडिया अपने निष्कर्षण योग्य कोयले के सच को छुपा कर अपने वर्तमान और संभावित शेयरहोल्डरों को धोखा देने का प्रयास कर रही है। कोल इंडिया का यह कानूनी कर्तव्य है कि वो लोगों को सच बताए लेकिन ऐसा करने में वो असफल रहा है”।
सुप्रीम कोर्ट के वकील शौनक कश्यप ने कहा कि “कोल इंडिया संवैधानिक प्रावधानों को विशेष रुप से सेबी अधिनियम, सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स रेगुलेशन अधिनियम 1956 के तहत सूचीबद्ध करार और सेबी के 3 अप्रैल, 2006 के परिपत्र के अधीन तथ्यों का खुलासा करने का उल्लंघन कर रहा है। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अपने भंडार के बारे में सूचित करने में एक सरकारी नियंत्रण की कंपनी असफल रही है, जिसका निवेशकों और बड़े पैमाने पर देश दोनों के लिए गंभीर प्रभाव पड़ता है”।
कोल इंडिया ने अपने नये शेयर ऑफर को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए बैंक ऑफ अमरीका, ड्यूशचे बैंक, गोल्डमैन सैक्स, क्रेडिट सुइस जैसे दुनिया के बड़े बैंकों के साथ करार किया है जबकि यूनियन द्वारा शेयरों को बाहर भेजने पर हड़ताल की धमकी भी दी गयी है। वहीं हाल के हफ्तों में कंपनी के शेयर गिरे भी हैं। साथ ही, इन बैंकों की भी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि कंपनी के भंडार से संबंधित सही तथ्यों को निवेशकों के सामने लाया जाए।
कोल इंडिया के भंडार के बारे में नये आंकड़ों ने सरकार द्वारा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में निवेश करने की मौजूदा नीति का पालन करने की क्षमता पर भी संदेह पैदा कर दिया है। फिलहाल कोल इंडिया देश का लगभग 80% कोयला उत्पादन कर रहा है और भारत साल 2017 तक 100,000 मेगावाट नये कोयला ऊर्जा आधारित बिजली संयंत्र लगाने की योजना बना रहा है जबकि कंपनी वर्तमान बिजली संयंत्रों को ही आपूर्ती करने में संघर्ष कर रही है। परिणामतः बढ़ता कोयला आयात भारत के बढ़ते चालू खाते और बढ़ती बिजली दरों में भी भूमिका अदा कर रहा है।
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