14 September 2013

हिन्दी अभी तक राष्ट्रभाषा क्यों नहीं ?

                                               भाषा जो सम्पर्क की, हिन्दी उसमे मूल।
                                            भाषा बनी न राष्ट्र की, यह दिल्ली की भूल।।

हिन्दी दिवस के अवसर पर आज दिल्ली की इसी भूल को याद दिलाने के लिए हम ये कार्यक्रम आपके बिच लेकर आए है। देश में आज भले ही लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं। देश के सर्वाधिक लोग हिंदी को अच्छी तरह से समझते और बोलते हैं। मगर आज यह भी एक सत्य है कि हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा है ही नहीं। जी हां, सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा जो सूचना दी गई है उसके अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी भारत की राजभाषा है, न की राष्ट्रभाषा । यानी इसका मतलब ये हुआ कि हिन्दी सिर्फ राजकाज की भाषा मात्र है। भारत के संविधान में राष्ट्रभाषा का कोई उल्लेख नहीं है। तो सवाल भी खड़ा होता है कि अब तक सर्वाधिक बोली जाने वाली हिन्दी को राष्ट्रभाषा की दर्जा क्यों नहीं मिल पाई है ?

जिस हिन्दी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम के समय पूरे देश के लोगों को जोड़ने का काम किया, देशवासियों को अंग्रेज और अंग्रेजियत से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका का निर्वहन किया, आज वही हिन्दी इतनी उपेक्षित और निरीह क्यों है? विश्व के सबसे बड़े स्वतंत्र भारत की कोई अपनी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं है? इस देश में अपना राष्ट्र ध्वज है, राष्ट्रगीत है तो फिर राष्ट्रभाषा क्यों नहीं? इसका जवाब न तो हमारी सरकार के पास है और ना ही विपक्ष के पास। 

विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र की बात कह हम गौरवान्वित तो होते हैं, किंतु राष्ट्रभाषा की अनुपस्थिति इस गर्व पर एक काला परदा जरूर डाल देती है।राजनीतिक दलों ने हिंदी को अपनी राजनीति का आधार बनाय लिया है। वे अपनी राजनीति हिन्दी भाशा में करते है ताकी पूरे देश भर में उनका संदेश जाय मगर जब बात राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता देने कि आती है तो कदम पीछे खिंच लेते है। यहां उनकी राष्ट्रीय राजनीति क्षेत्रिय दलों की तरह हो जाती है। ऐसे ये दो लाईन ऐसे नेताओं पर सटीक बैठती है।
        
                                          मंत्री की सन्तान सब, अक्सर पढ़े विदेश।
                                          भारत में भाषण करे, हिन्दी में संदेश।।

महात्मा गांधी ने घोषणा की थी कि राष्ट्रभाषा के बगैर देश गूंगा है। तो सवाल उन गांधी के नाम पर राजनीति करने वालों से भी है कि वे इस देश को कब तक गूंगा बना कर रखेंगें? हिन्दी अभी तक राष्ट्रभाषा क्यों नहीं ? 

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