जब
से नरेन्द्र मोदी के पक्ष में एक लहर सी चल निकली है और भारतीय जनता पार्टी ने भी
लोकमत का सम्मान करते हुये, लोकसभा के आगामी चुनावों में
मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है, तब से सोनिया कांग्रेस के भीतर खलबली मच
गई है। राजमहल और राजवंश दोनों ही सकते में हैं। 1947 में अंग्रेज़ों
के भारत से चले जाने के बाद शायद इस राजवंश को पहली बार भारतीयों की ओर से
संगठित रुप से इतनी बड़ी चुनौती मिली है। राजमहल की घबराहट समझ में आ
सकती है लेकिन उससे भी ज़्यादा घबराहट राजमहल में मौजूद दरबार में देखी जा सकती
है।
घबराहट में संतुलन
खोने और दरबारियों की स्तरहीनता के उदाहरण भी सामने आने लगे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री
सुशील कुमार शिन्दे की पिछले दिनों ऐसी ही अमर्यादित भड़ास देखने में
आई। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर उन्होंने हिकारत से
कहा कि आजकल कोई भी रामू , शामू
या दामू
अपने आप को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कह सकता है। मीडिया ने शिन्दे के इन कीमती विचारों
पर बहस करवाना ज़रुरी नहीं समझा, जबकि
तथाकथित राष्ट्रीय
चैनल, स्त्रियाँ बाल लम्बे
कैसे करें, जैसे विषय पर भी दो
दिन तक बहस
करवा सकते हैं। क्योंकि ये उदगार देश के गृहमंत्री के हैं, इसलिये इसका नोटिस लिया जाना ज़रुरी है। वैसे
भी ये उदगार राजमहल और राजवंश के अन्दर चल रहे चिन्तन और दरबारियों में
पैदा हो रही बदवहासी का नमूना तो हैं ही। इससे राजवंश की भविष्य की रणनीति का
संकेत भी मिलता है।
शिन्दे जिन को रामू,
शामू या दामू कहते हैं, वे कौन लोग हैं? दरअसल वही भारत की आम जनता है। वही आम जनता जिसने
महात्मा गान्धी के नेतृत्व में अंग्रेज़ी साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई ही
नहीं लड़ी थी बल्कि उसे परास्त भी किया था और राजवंशों को ध्वस्त किया था।
इन्हीं रामू, शामू
और दामुओं के बलबूते
हिन्दुस्तान में लोकतंत्र स्थापित हुआ। भारत की इसी सम्मिलित शक्ति ने साम्राज्यवाद,
सामंतवाद और राजवंश तीनों को ही समाप्त
किया। एक हज़ार की ग़ुलामी के बाद, देश में सचमुच रामू, शामू और दामू का लोकतंत्र स्थापित हुआ। पंजाब में छठे दशक में एक गीत
प्रसिद्ध हुआ था, हुण
राजे नीं जमदे रानियाँ नूं। जिसका अर्थ है कि अब राजा किसी रानी के पेट से
जन्म नहीं लेता है। अपना राजा रामू, शामू ख़ुद चुनते हैं और वे ख़ुद राजा बन भी सकते हैं। लेकिन जैसा कि कार्ल
मार्क्स ने कहा है कि किसी भी थीसिस के भीतर जल्दी ही उसका एंटी थीसिस पनपने लगता है, वैसा ही भारतवर्ष में लोकतंत्र के साथ हुआ।
लोकतंत्र के
भीतर एक राजवंश विकसित होने लगा। छह दशकों में ही उस राजवंश ने लोकतंत्र की आत्मा को निगल
लिया और केवल उसकी बाहरी दीवारें बची रहीं। यह राजवंश नेहरु राजवंश है । इसी
को नेहरु गान्धी राजवंश कहा जाने लगा । यही राजवंश परिवार के दोनों
मर्दों की मौत के बाद सोनिया के नाम से जुड़ गया और अब युवराज के राजतिलक के
शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहा है। जो कांग्रेस पार्टी कभी महात्मा गान्धी
के नेतृत्व में एक जनान्दोलन बन कर देश के रामू शामू की पार्टी बन गई थी,
वह भी धीरे धीरे राजवंश के दरबार में बदल गई।
कांग्रेस
की ओर से गैर गांधीवादी परिवार के प्रधानमंत्री रह चुके
नरसिम्हाराव ने इस स्थिति पर बहुत ही सटीक टिप्पणी की थी। जिन दिनों वे
प्रधानमंत्री थे, उन दिनों अनेक वरिष्ठ कांग्रेस जन विद्रोह कर रहे थे। किसी ने राव से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लोगों की
नेहरु गांधी राजवंश के किसी भी व्यक्ति के नेतृत्व में काम करने के लिये मानसिक रुप से कंडीशनिंग हो चुकी है, उस परिवार से बाहर के किसी भी
व्यक्ति के साथ वे काम करने को अपनी तौहीन मानते
हैं। सुशील कुमार शिन्दे की वर्तमान टिप्पणी
को इसी परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है।
इतिहास का एक चक्र
पूरा हुआ। अब दूसरे चक्र की घडघडाहट सुनाई देने लगी है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत
की आम जनता राजवंश को चुनौती देने के लिये घरों से बाहर निकल आई है। नेहरु
गान्धी ख़ानदान के राजवंश के षड्यंत्रों से देश की आम जनता के मन में
एक गहरा अवसाद छाने लगा था। पूरी व्यवस्था के प्रति निराशा छाने लगी थी।
इस अस्थिरता को बढ़ाने में कुछ निहित स्वार्थों वाली विदेशी शक्तियाँ
भी सक्रिय होने लगीं थीं। देश के रामू शामू चिन्ता में थे, इतने ताक़तवर राजवंश से पार कैसे
पायेंगे? नरेन्द्र मोदी ने देश
के जनमानस में विश्वास पैदा किया। उनके आत्मविश्वास को जागृत किया। वे यह सब कुछ इसलिये कर
सके क्योंकि वे स्वयं भी उन्हीं में से एक हैं। वे आम भारतीय के सुख दुख को
केवल समझते ही नहीं बल्कि स्वयं उसी का हिस्सा हैं। मोदी ने गुजरात में
जो किया उसकी पूरे देश में मिसाल दी जाने लगी।
पूरा देश, ख़ासकर युवा पीढ़ी, जिसका वर्तमान राजनैतिक स्वरुप से
मोहभंग होने
लगा था , मोदी में एक नई आशा
के दर्शन करने लगा । मोदी ने देश को केवल वाक् चातुर्य से सम्मोहित नहीं किया
बल्कि अपने कर्म कौशल से एक नई कार्यशैली का ठोस उदाहरण प्रस्तुत किया
। मोदी का प्रशासन पारदर्शिता का उदाहरण बना। वहाँ कोलगेट स्कैंडलों के
भ्रष्टाचार को छिपाने के लिये किसी को सचिवालय से फाईलें चुराने की ज़रुरत
नहीं पड़ी।
देश के आगे असली
समस्या सोनिया कांग्रेस को हटाने की है। इस राजवंश से देश को मुक्त करने की है। लोकतांत्रिक
व्यवस्था में राजवंश अपने आप में ही समस्या बन जाते हैं। क्योंकि राजवंश
गुज़रे ज़माने में जीते हैं और उसी आइने से देश को देखते हैं। राजवंशों के
लिये देश के लोग प्रजा होते हैं। जबकि लोकतंत्र में देश के रामू शामू देश
के भाग्य निर्माता होते हैं। अब जब भारत इतिहास के उस मोड़ पर आकर खड़ा है,
जहां से वह इक्कीसवीं शताब्दी में विश्व शक्ति बन सकता
है और दुनिया के देशों को नैतिक और सांस्कृतिक नेतृत्व प्रदान कर सकता है, तब कांग्रेस का आवरण ओढे खडा राजवंश देश
की गति के
पैरों में जंजीर बन रहा है।
इक्कीसवीं सदी में भारत का नेतृत्व कोई राजवंश नहीं कर सकता,
यह नेतृत्व देश के लोक को ही करना होगा।
यह नेतृत्व यहां
के रामू शामू को ही करना होगा। नरेन्द्र मोदी भारत के उसी लोक के प्रतिनिधि हैं। ऐसे
हालत में नरेन्द्र मोदी के साथ जब पूरा देश उत्साह में आगे बढ़ने का संकल्प ले रहा हो तो
दरबारियों का भयभीत होना समझ में आता है। ज़ाहिर है दरबारियों की निष्ठा राजवंश
के साथ होगी तो ग़ुस्सा भारत के सामान्य जन को लेकर ही होगा। कांग्रेस
से राजवंश बनने की लम्बी प्रक्रिया ने ग़ुस्से की इस परम्परा को जन्म दिया
है।
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