आज एक ओर जहां उत्तराखंड में पीडि़तों को प्रभावित इलाकों से निकालने के लिए भारतीय सेना और वायुसेना ने मौसम और वक्त के खिलाफ जंग अब भी जारी है। वहीं हमारे माननीय सांसद और नेता इस पर अपनी राजनीति की रोटी सेकने से बाज नहीं आ रहे हैं। बुधवार को तेलगुदेशम पार्टी के नेता रमेश राव और कांग्रेस के हनुमंत राव आपस में भिड़ गए। साथ ही केदारनाथ में पूजा को लेकर वहां के मुख्य पुजारी रावल और जगदगुरू शंकराचार्य में ठन गई है।
उत्तराखंड सरकार भले ही फिर से पूजा शुरू करा दी, लेकिन तीर्थ पुरोहितों और सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में भी इसे लेकर विरोध के स्वर फूट पड़े हैं। सरकारी पूजा का विरोध करने वालों का कहना है कि चातुर्मास में दोबारा पूजा शुरू कराने का कोई औचित्य नहीं है। तो ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि केदारनाथ में पूजा को लेकर सरकारी आपदा क्यों खड़ी कि जा रही है ?
कांग्रेस नेता और सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि 5 अक्टूबर से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र से ही केदारनाथ मंदिर में पूजा शुरू की जानी चाहिए थी और अपने इस विचार के बारे में उन्होंने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को बता दिया था। कांग्रेस सांसद ने कहा कि संत समाज के मुताबिक, रक्षाबंधन के बाद और नवरात्र शुरू होने से पहले कोई देवकार्य नहीं किया जाता। सतपाल महाराज ने कहा कि इस संबंध में सरकार को पुरोहित समाज से भी पूछना चाहिए था। मगर सरकार ने ऐसा नहीं किया। भाजपा नेता बीसी खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल ने भी इस समय पूजा शुरू कराने के औचित्य पर सवाल उठाया है।
100 साल में यह पहला मौका था जब पूजा में न तो भक्त शामिल हुए और न ही स्थानीय तीर्थ पुरोहित। सिर्फ उत्तराखंड सरकार के मंत्री और अधिकारी ही पूजा के साक्षी बनें। सरकार ने इसके लिए 11 तारीख को 11 मंत्री और विधायक के इस पूजा को सम्पन्न कराया। ऐसे में इस पूजा को लेकर एक सवाल ये भी खड़ा होता है कि सरकार मंदिर का नहीं अपना शुद्धीकरण करा रही है। साथ हैरान करने वाली बात ये है कि इस वीआईपी पूजा पर 45 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए, वो भी बिना किसी मुहूर्त के। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि केदारनाथ में सरकारी आपदा क्यों ?
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