हमेशा की तरह उत्तरप्रदेश एक बार फिर से दंगे की आग में सुलस रहा है। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सवा साल अपनी सरकार का पूरा कर चुके है। लेकिन आज भी वह वहीं खड़े हैं जहां सवा साल पहले शपथ लेने के समय खड़े थे। तमाम दावों और उपायों के बाद भी उनकी सरकार को दंगों और दबंगों से छुटकारा नहीं मिल रहा है। न तो मुलायम की नसीहतें काम आ रही हैं न अखिलेश की तेजी से कोई कारनामा रंग ला रहा है। अखिलेश राज में जनता की सुरक्षा दंगों, दागियों और दबंगों की दहशत भारी पड़ रही है। प्रदेष में लगातार एक के बाद एक दंगे हो रहे है। तो वही दुसरी ओर अखिलेश सरकार अल्पसंख्यकों को दंगे का भय दिखा कर उसे रोकने के बजाय अपना वोट बैंक साधने में लगे हुए है। वोट बैंक बचाने के लिये ही दंगाइयों पर हाथ नहीं डाला जा रहा है, बल्कि दबंगों को पनाह दी जा रही है। तो सवाल भी खड़ा होता है कि क्या उत्तरप्रदेश को दंगा प्रदेश बनाया जा रहा है।
मुज़फ़्फ़रनगर में सांप्रदायिक हिंसा के चलते अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है। यूपी में हुए दंगे के इतिहास में शुक्रवार को एक और नया अध्याय जुड़ गया। मुज़फ़्फ़रनगर में शाम ढलती गई और लाशें बिछती गईं। मगरप् रदेश के मुखिया अखिलेश यादव और उनके सिपहसालार इस बात में उलझे रहे की प्रसाशन को कार्रवाई करने की अनुमती दी जाय या नहीं। क्यों मामला एक खास समुदाय के लोगों द्वारा फैलाये गए दंगे से जुड़ा हुआ था। सुनसान सड़कें, दरवाजों पर लगे ताले, घरों के अंदर पड़ा हुआ टूटा सामान और कुछ जली हुई गाडि़याँ ये चीख. चीख कर कह रही है कि इन दंगे को पूर्वनियोजित तरिके से अंजाम दिया गया है।
मुज़फ़्फ़रनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 2012 में सांप्रदायिक हिंसा के 104 मामले दर्ज किए गए थे। गृह मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 से ज्यादा दंगों में 34 लोगों की मौत हुई और 456 जख्मी हो गए। जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सिर्फ 27 दंगे होने की बात कबुल कर रहे है। अखिलेश सरकार की सरकार कानून व्यवस्था के लिहाज से बदतर साबित हुई हैं और इसने प्रचंड बहुमत की सरकार की हैसियत को दंगों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। अगर इन आकड़ों पर गौर करें तो ये कहना गलत नहीं होगा की उत्तरप्रदेश दंगा प्रदेश बन चुका है।
पिछले साल यानी 2012 में 1 जून को मथुरा में, 23 जून को प्रतापगढ़, 23 जुलाई और 11 अगस्त को दो बार बरेली में दंगे हुए। यही नहीं, 17 अगस्त को लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद में सड़कों पर उपद्रव हुआ तो 17 सितंबर को गाजियाबाद के मसूरी इलाके में दंगा। 24 अक्टूबर को फैजाबाद में दंगे हुए। इस साल 5 मार्च 2013 को अंबेडकरनगर के टांडा में हत्या के बाद दंगा हुआ और अब मुज़फ़्फ़रनगर दंगे का दंश झेल रहा है। उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल में अन्य प्रांतों के मुकाबले सर्वाधिक सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2009 से लेकर अक्टूबर 2012 तक के हालात पर गौर किया जाए तो वहां सांप्रदायिक दंगों की कुल 468 घटनाएं हुई हैं जिनमें करीब सौ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
इतना ही नहीं यूपी के ये आंकड़ें बताते हैं कि वर्ष 2009 में 159 घटनाएं हुई तो वहीं वर्ष 2010 में यह आंकड़ा बढ़ कर 185 हो गई, 2011 में कुल 84 दंगे हुए। लेकिन वर्ष 2012 में प्रदेश में सांप्रदायिक घटनाओं की संख्या में अचानक से इजाफा हुआ और अक्टूबर तक सांप्रदायिक दंगों की 104 घटनाएं हुई जिनमें 34 लोग मारे गए और 456 घायल हुए। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की क्या ये उत्तरप्रदेश है या फिर दंगा प्रदेश ?
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