29 September 2013

मजा के लिए गाँधी और सज़ा के लिए मनमोहन कितना सही ?

गीत राहुल का गाता हूं... जी हां, इस वक्त कांग्रेस में हर कोई राहुल गांधी के गीत गा रहा है। पार्टी का छोटा कार्यकर्ता हो या बड़ा नेता, हर कोई बस कांग्रेस उपाध्यक्ष का गुणगान कर रहा है। आज बात चाहे दागी सांसदों और विधायकों पर यूपीए सरकार के अध्यादेश को बकवास बताकर फाड़ कर फेक देने की हो, या फिर हाल ही में हुए कर्नाटक में जीत का जष्न। अगर कही जयजयकार सुनाई दी तो सिर्फ राहुल और सोनिया गांधी कि। हर बार मौके पे चैका मारने का श्रेय सिर्फ गाधी परिवार के सदस्यों को ही दिया जाता है। जीत चाहे बड़ी हो या छोटी हर बार के्रडीट लेने और बधाई देने के हकदार सोनिया और राहुल गांधी को ही बनाय जाता है। तो सवाल भी खड़ा होता है कि सज़ा के लिए मनमोहन और मजा के राहुल गांधी कि वाह वाही क्या वाकई उचित है?

भले ही कांग्रेस ने सबसे बड़े सियासी ओहदे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिठाया हो मगर वो भी राहुल के नाम के आगे नतमस्तक होते नज़र आ रहे है। कांग्रेज के नेताओं में गांधी परिवार के प्रति कितनी भक्ति है इसे इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब कर्नाटक में कांग्रेस को जीत मिली थी, तो सिद्दारमैया ने मनमोहन सिह को थैंक्स टू सोनिया गांधी, राहुल गांधी, के साथ मनमोहन गांधी कह कर धन्यवाद दिया था। यानी गलती से अगर मनमोहन सिंह के नाम जुबां पे आ गया तो उन्हें भी गांधी बता दिया गया।

जब संसद में कोई बिल पास होता है तो उसका श्रेय पूरे सदन को जाता है मगर यहा पर सिधे सिधे राहुल गांधी को पूरा श्रेय दिया जाता है। राहुल गांध यूपी के भट्टा पारसौल में नाटकीय ढंग से किसानों के बिच जाते है उसके कुछ समय बाद भूमी अधिग्रहण बिल पर कैबिनेट कि मंजूरी मिल जाती है। जब ये बिल संसद में पास हो जाता है तो इसका भी श्रेय भी राहुल गाँधी को ही दिया जाता है।  एक ओर देश में राहुल न्याय और सुशासन के जरिये जिस अलोकतांत्रिक व्यवस्था का सवाल उठा रहे हैं, वह मनमोहन की राजनीति का ही किया-धरा है। कह सकते है, पैसे से पैसा बनाने के मनमोहन कि एकोनोमिक्स के सामानांतर राहुल की रोजी रोटी की इमानदारी को कुछ इस तरीके से खड़ा किया गया है, जो बीस साल के फार्मूले को तोड़ सकती है। जहा पर मनमोहन बिलेन हो जाएंगे और राहुल गांधी हिरों। तो सवाल यहा भी खड़ा कि क्या इस बार कांग्रेस पार्टी कि चुनावी रणनीति बिलेन बनाम हिरों कि होगी या फिर मोदी बनाम राहुल कि।

जिस वक्त छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला हुआ था उस वक्त राहुल गांधी ने बीके हरिप्रसाद से यह बयान दिलाया कि छत्तीसगढ़ का नक्सली हमला राजीव गांधी की हत्या जैसी घटना है। यानी अगर कोई बड़ा नेता भी मरे तो उसका नाम किसी अन्य कांग्रेसी नेता के साथ न जोड़ कर उसे भी गांधी नेहरू के नाम के साथ ही जोड़ दिया जाता है। तो सवाल यहा भी खड़ा होता है कि क्या लोकतंत्र है या कांग्रेस का राजतंत्र? जहां जीत पर भी जयजयकार और मौत पर भी जयजयकार।

मगर पीछले कुछ महिने से राहुल गांधी को ऐसे खिलाड़ी के रूप में देखा जा रहा है जो स्वयं गेंद डालता है फिर भाग कर उसी बॉल को खेलता है और वापस आकर आउट होने की अपील भी करता है। मगर यहा पर मनमोहन सिंह को बिकेट के रूप में खड़ा कर के उस मौके का इंतजार किया जा रहा जब तक कि खुद जनता रेफरी कि भूमिका में आकर इस खिलाड़ी को विजेता न घोसित कर दे। या फिर इस सह मात के सियासी खले में मैच में अंत ड्रा न हो जाय। जहां पे मनमाहेन को बिलेन और राहुल को हिरो घोसित किया जाएगा। तो सवाल खड़ा होता है कि सज़ा के लिए मनमोहन और मजा के लिए गांधी कितना सही?

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