27 September 2013

बिहार के गया में पिंडदान की माया !

गया स्थित विष्णु पद्, पूरब में रामगया पहाड़ी और देवघाट के सामने माता सीता द्वारा शापित फल्गु नदी के तट पर त्रेता में राजा दशरथ से शुरू हुआ पिंड दान आज कलयुग में देश के साथ-साथ विदेश के लाखों लोगों के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए एक मात्र स्थान है। खुद तो शापित, लेकिन सबकी जीवनदायिनी। राम, लक्ष्मण की गैर मौजूदगी में जब माता सीता ने राजा दशरथ को पिंड दान दिया, उस वक्त दोनों भाई पिंड दान की सामग्री लाने बाजार गए थे, जब वापस आए तब तक पिंड दान खत्म हो चुका था लेकिन भगवान राम के अनुपस्थिती में कैसे हुआ पिंड दान वो भी बिना किसी सामग्री के। जब भगवान पहुंचे तो सीता ने कहा कि गाय, पंडा, फल्गु और बटवृक्ष के उपस्थिती में जब पिताश्री राजा दशरथ ने पिंड मांगा तो मैने बालू और जल से पिंड दान दे दिया।  ऐसे में भगवान राम ने सबसे एक-एक कर जब पूछा तो गाय, पंडा और फल्गु नदी ने झूठ बोला, क्योंकि वे तीनों भी भगवान को पिंड दान कराना चाहते थे, ताकि उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। इस पर क्रोधित होकर माता सीता ने तीनों को श्राप दिया, जिसमें नदी को श्राम मिला कि सिर्फ बरसात में ही नदी में पानी होगा वो भी घुटने तक, बाकी मौसम में पानी के लिए थोड़ी खुदाई करें फिर पानी मिल जाएगा।

हिन्दु मेथोलॉजी के अनुसार गया के फल्गुजी के तट से शुरू हुआ पिंड दान जो अब दुनिया के हर कोने के हिन्दुओं को अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अपनी ओर आकर्षित करता है। इसी कड़ी में हिन्दी कैलेंडर के अनुसार आश्विन महीने के पितृपक्ष में आज कल गया के फल्गुजी के तट पर मेला लगा है, लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों को पिंडदान करने पहुंचे हैं। पौ फटते ही काले तिल मिले जौ के आटे, तुलसी के पत्ते, कूसे, सफेद फूल, और लाल कुमकुम लिए पंडे पिंडदानियों के साथ बालू पर विराजमान हो जाते हैं। कहने को पितृपक्ष का अनुष्ठान लेकिन सबके मोक्ष की कामना। पितृ कुल हो या मातृ कुल। एक पंडा के सामने राजस्थान से आए चार पिंडदानी। मगही मिली हिन्दी बोल रहे पंडा पहले माता-पिता के बारे में पूछते हैं। फिर दादा-दादी की बारी। यहां तक सबको नाम मालूम है। अब परदादी और वृद्धा दादी की बारी। उन्हें मोक्ष दिलाना है मगर नाम नहीं मालूम। समस्या का हल फौरन। पंडा कहते हैं कि परदादी-वृद्धा दादी का नाम नहीं मालूम तो गंगा-जमुना-सरस्वती कहिए और जल अर्पित कीजिए। परदादा और उनसे पहले के दादा का मान नहीं मालूम तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश का नाम लीजिए।

अब उनके नाम तर्पण जिन्हें देखा नहीं, जिन्हें जानते नहीं। पितृ कुल से हो या मातृ कुल से, जिस परिजन के बारे में भी सोच सकते हैं उसके लिए हो। चाहें तो भूला भूला-चूका सर्वकुल के नाम से भी तर्पण। कह दीजिए, नाम न जाने, गोत्र न जाने बस गयाजी को जल अर्पण कर दीजिए। मेले में राजस्थान से आये कृष्ण कुमार शर्मा, जो खुद आचार्य हैं। दूसरे भाइयों से कहते हैं परदादा का नाम बोलो भाई। माता का नाम लो। पानी लो। परदादी का नाम लो। प्रणाम करो। ताऊ-ताई का नाम लो। बहन, मौसी, बुआ और फिर कहते हैं चाचा ताऊ का नाम भी बोल दो यार। संबंधो का इतना ख्याल शायद गयाजी में ही संभव रह गया है। फल्गु के तट पर एक नाई भी धर्म-कर्म का हवाला देते मिलते हैं। मुंडन के पैसे लेकर समझौता न होने पर एक नाई कहते मिला, ध्यान रखना नारायण के द्वार पर हो।

निर्भया, सरबजीत का पिंडदान

गया में हर वर्ष लाखों लोग देश और विदेश से पिंडदान करने आते हैं, लेकिन यहां एक सवाजसेवी ऐसा भी है जो देश विदेश में काल के गाल में सवाए लोगों की आत्मा की शांति के लिए पिछले 12 वर्षों से पिंडदान करता आ रहा है। सूर्यकुंड-देवघाट के पास रहने वाले समाजसेवी सुरेश नारायण इसी कड़ी में लगातार 13वें वर्ष निर्भया, सरबजीत के साथ-साथ देश के अनेक घटनाओं में शहीद जवान और सीरियल बम बलास्ट में जान गवाएं लोग, संगीत सम्राट पंडित रविशंकर, मशहूर गायिका शरशाद बेगम, उत्तराखंड के प्रलय में काल के गाल में समाएं हजारों लोग, मिड-डे-मील में आकस्मिक मौत के गाल में समाए बच्चे हों या ईरान, पाकिस्तान व चीन में भूकंप से मारे गए लोग, बाढ़, सुखाड़ सहित अनेक आपदाओं में मृत लोग, उनकी आत्मा की शांति के लिए 28 सितंबर को पिंडदान करेगा।

वजनी को ज्यादा और हल्का को आधा

अगर आप गया आए हैं और प्रेतशिला पर्वत पर 676 सीढ़ी ऊपर पिंडवेदी तक जाना है और अगर आपका वजन अधिक है या चलने में असमर्थ हैं, तो यह वहां मौजूद 40 से 50 डोली वालों के लिए किसी पार्टी से कम नहीं, मैल-कुचैल लुंगी और गंजी पहने, टूटी-फूटी हिंदी बोल रहे ये लोग आपके वजन के अनुसार आपकी डोली की कीमत लगाएंगे। डोली में बैठाकर उपर तक ले जाने के लिए कोई 500 तो कोई 400 रुपए की डिमांड करता है। अगर किसी ने कहा कि यह रकम ज्यादा है तो इसका जवाब भी बिल्कुल सटिक होता है। वजनी हैं तो ज्यादा, हलका हैं तो आधा। इसके बारे में पूछने पर वे बोलते हैं कि मोटे का 400 वहीं दुबले-पतले का 200 लगेगा। इसी दरम्यान पति के साथ ऊपर चढक़र एक महिला बेहद थककर बैठ जाती है। उसके बैठते ही डोली वाले बोल पड़ते हैं, माई बैठ जा बहुत आराम से ले जाएंगे। 150 रुपए में भाड़ा तय होने के बाद छत्तीसगढ़ से आई एक महिला खटोले पर बैठ जाती है। अब उसके पति को भी डोली पर लेने को कहा जाता है। वे पत्नी के पीछे-पीछे ऊपर तक चढ़ जाते हैं। पितरों और जेब की संतुष्टि के लिए इतनी मेहनत नाजायज नहीं है।

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