1- भ्रष्टाचार
देश में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा है। हर ओर आज भ्रष्टाचार सर चढ़ कर बोल रहा है। मगर 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद रोकपाल बिल अब कानून बन गया है। केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की संस्था के गठन का रास्ता भी साफ हो गया है। ऐसे में अब नए साल में ये देखना होगा कि लोकपाल कानून कितना असरदार साबित होता है। साथ ही ये भी देखना होगा कि कौन कौन से राज्य इसे सबसे पहले लागू करते है।
दुनिया भर के देशों में फैले भ्रष्टाचार के स्तर पर भारत 94 वें नम्बर पर है। देश में भ्रष्टाचार कम होने की जगह बढ़ता जा रहा है। इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाना सरकार के लिए 2014 की सबसे बड़ी चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सरकार से कहा था कि जिन संसद सदस्यों और राजनीतिज्ञों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध दो साल से अधिक की सजा मिली है, उन्हें अपना पद छोड़ना होगा। अदालतों में कई ऐसे मामले है जिसे लेकर 2014 में अहम फैसला इस साल आने वाला है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार किसकी कुर्सी जाती है।
राहुल गाँधी भ्रष्टाचारको लेकर बड़े बड़े वायदे करते फिर रहे है। ऐसे में सबकी निगाहें इस बात को लेकर रहेगी कि आदर्श हाउसिंग घोटाले में अपने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चच्हाण पर दोश सिध्द होने पर पार्टी क्या कर्रवाई करती है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के उपर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुका है। ऐसे में बिरभद्र कब तक कुर्सी छोड़ते है इसे लेकर लोगों को इंतजार रहेगा।
वहीं दुसरी ओर कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा ने पार्टी में फिर से वापसी करली है। ऐसे में बीजेपी की हार के बाद लोकसभा चुनाव में कितना लाभ पहुंचता है ये भी देखना दिलचस्प होगा।
2- अर्थव्यवस्था
पीछले साल की उठापटक के बिच अब सबकी निगाहें 2014 पर टीकी हुई है। ऐसे में खासकर भारतीय अर्थव्यवस्था की बात करें तो ये साल कई मायने में चुनौती भरा रहने वाला है। आरबीआई के इतिहास को देखते हुए सबसे युवा गर्वनर रघुराम राजन से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। साल 2013 में जब रघुराम राजन ने आरबीआई के गर्वनर का पद संभाला था तब एक डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत 68 पार कर गई थी। अब देखना यह है कि साल 2014 में नई सरकार के गठन के साथ रघुराम राजन कैसी नीतियां बनाते हैं। साथ ही केन्द्र सरकार के लिए भी बेलगाम महंगाई पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाना होगा।
टेलीकॉम और गैस सेक्टर में जारी गतिरोध 2014 के चुनाव के बाद दूर हो सकता है। ऐसे में गैस सेक्टर के बड़े खिलाड़ी अंबानी बंधुओं पर नजरें टिकी रहेंगी। तो वहीं दुसरी ओर 2012 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन का पद संभालने वाले सायरस मिस्त्री पर कंपनी को और बुलंदियों तक ले जाने की जिम्मेदारी है। 2014 में उनपर नजर होगी कि वो रतन टाटा की कंपनी को कैसे और उंचाइयों तक ले जाते हैं।
भारत सरकार पर आयात निर्यात नीति को लेकर काफी दिनों से समिक्षा करने की दबाव बन रही है। ऐसे में व्यपारियों की नज़र सरकार के उन नीतियों पर रहेगी जिससे व्यापार घाटे को कम करने और आयात नीति को घटा कर स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देने जैसे कदम सामिल है।
पेट्रोल और डीजल एवं एलपीजी की बढ़ती कीमतों ने भी जनता के बजट को बिगाड़ने का काम किया। ऐसे में इस साल इसे सवारने के लिए सरकार को कड़ी मसक्कत करनी होगी। स्टॉकिस्टों और निवेशकों की भारी बिकवाली के कारण सोने की कीमत में बेतहाशा गिरावट आई है। दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी 4.8 फीसदी पीछले साल रही है हालांकि बीते चार तिमाही से जीडीपी का आंकड़ा 5 फीसदी से कम रहा है, जो चिंता का विषय है। इसे भी बढ़ाना सरकार के लिए एक हमत्वपूर्ण कार्य है।
3- महिला सुरक्षा
में आज लगातार यौन उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है। ऐसे देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती महिला सुरक्षा को लेकर है। यौन शोषण ने देश के सीने पर कई ऐसे जख्मी दिए है जिससे लोगों को दर्द तो हुआ ही, साथ ही मानवता भी शर्मसार हो गई। समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के खिलाफ माहौल तो बना, लेकिन दरिंदगी की वारदातों में कोई कमी नहीं आई है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि इसे कैसे रोका जाय?
देश की राजधानी दिल्ली में महज पांच साल की मासूम बच्ची के साथ गैंगरेप की वारदात होती है और पूरा देश दहल जाता है। तो वहीं दुसरी ओर फोटो जर्नलिस्ट के साथ गैंगरेप की वारदात मायानगरी को दहलाकर देता है। ऐसे में नारी सुरक्ष को देश की सुरक्षा के साथ जोड़ कर देखने की जरूरत है।
देश में भारतीय ही नहीं विदेशी महिला तक को गैंगरेप का शिकार बनाया जा रहा है। भारत घूमने आने वाली विदेशी शैलानियो की सुरक्षा भी हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का विशय बन चुका है। देश में लगातार राजनेओं पर बलात्कार के आरोप लग रहे है। ऐसे में नेताओं को भी अपनी छबी सुधारनी होगी।
आधुनिकता की बढ़ती बांधी ने समाजिक मर्यादाओं को तार तार कर रही है। परिवार और पड़ोस में रहने वाले कुछ ऐसे भेडि़ए आज मुह फैलाए घुम रहे है जो बहन बेटियों को हवस का शिकार बना रहे है। इस समाजिक कुचक्र को तोड़ने के लिए हम सब को आज आगे आने की जरूरत है।
4- साम्प्रदायिक सदभावना
देश में साम्प्रदायिक सदभावना को बरकारार रखना आज के दौर में सबसे बड़ा मुद्दा है। मगर अब 2014 में मुजफ्फरनगर जैसी घटना फिर से नहीं दुहराई जाय इसे लेकर रोडमैप तैयार करना होगा। साथ ही राजनीतिक दलों को वोट बैंक पोलिटिक्स से उपर उठर कर सदभावना कायम करना होगा। केंद्रीय गृहमंत्रालय ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी कर कहा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की कोशिश हो सकती है। ऐसे में सरकार को ये देखना है कि ये कौन से ऐसे सांम्प्रदायिक ताकतें हैं जो हिंसा फैलाने के फिराक में है? सवाल सरकार को लेकर भी है कि अब तक इसे रोकना के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाई जारही है? क्या नये साल में सरकार किसी अनहोनी का इंतजार कर रही है?
गृहमंत्रालय ने मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के पहले भी अलर्ट जारी किया था। फिर भी इसे रोकने में राज्य और केन्द्र सरकार नकाम रही। देश आज जम्मू कष्मीर से लेकर बरेली तक और बिहार से लेकर महाराराष्ट्र तक दंगे कि आगोस में है।
सरकार साम्प्रदायिक हिंसा बिल को इस साल हरहाल में पारित करवाना चाहती है। मगर इस बिल कोलेकर राजनीतिक गतिरोध खत्म होते नहीं दिख रहा है। इस बिल को लेकर सरकार की मंषा पर भाजपा सहीत कई दल सवाल उठा रहे है। ऐसे में इसे लेकर सवाल सरकार से भी है, क्या सरकार एक खास समुदाय की वोट के लिए इसे पास करना चाहती है। भारत की एकता और अखंडता को विभाजित करने वाला षड्यंत्रकारी ताकतों को आज पहचान कर उन्हे धरपकड़ करने की जरूरत है ताकी देश में सांम्प्रदायिक सदभावना कायम रहे।
5- शिक्षा सुधार
किसी भी देश में शिक्षा और रोजगार हमेशा से ही एक मत्वपूर्ण विशय रहा है। ऐसे में आज देश के अंदर भी इसे सुचारू रूप से आगे बढ़ाने की जरूरत है। देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की दरकार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी जता चुके हैं। आज कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय शीर्ष संस्थाओं में शामिल नहीं है। दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में आज अपने देश का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। आज इस स्थिति को बदलनी को जरूरत है। ज्ञान संपन्न समाज और शैक्षिक विस्तार के लक्ष्य को हासिल करना इस साल की सबसे बड़ी चुनौती है।
वर्ष 2012-14 के लिए वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय को जगह नहीं मिली है। ऐसे मे आज सरकार को इसे दुर करने की जरूरत है। यूपी सहीत देश भर के कई सारे राज्य टीईटी को ट्रम्प कार्ड के रूप 2014 के लिए पेश करने की तैयारी में है। ऐसे शिक्षा का राजनीतिकरण और गिरते हुए शिक्षा के स्तर को हर हाल में रोकना होगा। संसद के आगामी सत्र में भी उच्च शिक्षा से जुड़े विधेयकों का पारित करना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
उच्च शिक्षण संस्थानों, खासकर मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के मामले में संस्थानों की ओर से अवैध रूप से की जाने वाली उगाही को रोकने के लिए भी विधेयक संसद में लंबित है। 2014 में इसे पास कराना सरकार के लिए एक टेढ़ी खिर साबित होने वाली है। आज गा्रमिण भारत के सरकारी स्कुलों में शिक्षकों की कमी और प्रर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण भारत के वविष्य अंधेरे में डुबा हुआ है। इस साल इस अंधेरे को दुर करना होगा
6- विदेश नीति
पिछले कुछ वर्षों में लगातार भारत की विदेश नीति कमजोर हुई है। ऐसे में देश के सामने 2014 के लिए अपने विदेश नीति को मजबूत करना सबसे बड़ी चुनौती है। सामरिक चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए संप्रग सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रबंधन क्षमताओं में भारी कमी आई है। अहम मसलों पर सरकार आमसहमति कायम करने में विफल रही है। बांग्लादेश के साथ संबंध तृणमूल कांग्रेस की राजनीति के कारण प्रभावित हुए तो श्रीलंका से रिश्तों पर तमिल दलों के कारण ग्रहण लगा। ऐसे में इन देशों के साथ भारत को अपने रिस्तों में सुधार लाना होगा। 2014 में राजनीतिक नफा नुकसान से आगे बढ़ हर दल को देश हीत में आगे बढ़ने की जरूरत है।
विदेश और सुरक्षा नीति को व्यवस्थित करने वाला संस्थागत ढांचा असंतुलित हो गया है। विदेश मंत्रालय की यह भूमिका दिन-प्रतिदिन सिमटती जा रही है। उसे 2014 में सुधारों की आवश्यकता है। 2014 में भारत की विदेश और सुरक्षा नीति का असली इम्तिहान अफगानिस्तान और पाकिस्तान में होने वाला है। 2014 के चुनाव में बंगलादेश में जमात जैसे तत्वों को रोकने का एजेंडा भी भारत को तय करना होगा ताकी दोनों देशों के बिच शांति बरकरार रहे।
वहीं दुसरी ओर चीन के बढ़ते सैन्य शक्ति और अरूणाचल प्रदेश में चीनी सेना कि घुसपैठ सरकार के लिए इस साल की एक अहम चुनौती है। भारतीय राजनयिकों के साथ अमेरिका का दुर्रव्यवहार और बिगड़ते रिस्ते को कुटनीतिक माध्यमों से सुधारने की जरूरत है। साथ ही पाकिस्तानी सेना द्वारा आए दिन कश्मीर में गोलिबारी की घटनाएं और सिमापार से बढ़ती घुसपैठ को हरहाल में सरकार को रोकना होगा। ऐसे में हम कह सकते हैं कि वर्ष 2014 में भारत की विदेश नीति के क्षेत्र में कई अहम कार्य करने की जरूरत है।
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