देश के स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का उद्घोष कर देशवासियो में मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का प्रबल जज्बा पैदा करने वाले महान राष्ट्र नेता सुभाषचंद्र बोस को आज के हमारे राजनेताओं को फुर्सत नहीं है। मौका था 23 जनवरी का यानी कि राष्ट्र के महान सपूत का जन्म दिवस। मगर इस मौके पर जिस प्रकार से हमारे माननीय सांसदों ने अपनी बेरूखी दिखाई उससे साफ जाहीर होता है कि अब उन्हें कोई याद नहीं करना चाहता है।
सरकारी कैलेंडर में जन्म दिवस का उल्लेख होने के कारण खानापूर्ति के नाम पर मात्र औपचारिकता ही निभाई। लोकतंत्र के मंदिर कहेजाने वाला संसद भवन परिसर में इसे मनाने की जहमत तो जरूर उठाई गई, मगर वर्तमान लोकसभा और राज्य सभा के 775 संसद सदस्यों में से केवल एक बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी उपस्थित हुए। संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित इस समारोह में आडवाणी के अलावा तीन पूर्व सांसद भी इस अवसर पर मौजूद थे।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या हम वाकई नेताजी को भूल गये हैं? या फिर हमारी सरकार और माननीय जानबूझकर इसे नज़र अंदाज कर रहे है? या फिर आज के राजनैतिक दौर में राजनेताओं को सुभाशचंद्र बोस भी संप्रदायिक दिखने लगे हैं? सवाल कई है जिसे लेकर आज हरकोई जानना चाहता है। नेता और सांसदों को तो आपने देखलिया मगर इसमौके पर देश के अधिकारी भी इनसे कम नहीं है। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों में से भी कोई भी इस मौके पर नहीं आया। परंपरा के अनुसार आम तौर पर संसद भवन के ऐसे कार्यक्रमों की अगुवाई पीठासीन अधिकारियों की अगुवाई में होती है।
यूपीए सरकार ने एक साल में भारत के जानेमाने व्यक्तित्वों के जन्म दिवस की सुभकामना देने और श्रधांजलि अर्पित करने के नाम पर पीछले साल विज्ञापनों में करीब 200 करोड़ रुपया खर्च किया। मगर यहां गौर करने वाली बात यह कि इसमें से एक रुपया भी नेताजी ने नाम पर खर्च नहीं किया गया। आजादी हासिल करने से करीबन 3 साल पहले भारत की जमीन पर भारत का झंडा बुलंद करने का श्रेय नेताजी की इंडियन नैशलन आर्मी को दिया जाता है। यही कारण है कि कुछदिन पहले नेताजी को देष के पहले कमांडर इन चीफ का दर्जा देने की मांग उठी थी। मगर सरकार ने नेताजी को देश के पहले कमांडर इन चीफ का दर्जा देने से इनकार दिया। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या नेताजी सुभाशचंद्र बोस को हम भूल गये हैं?
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