21 January 2014

क्या राजनीति में दाग अच्छे हैं ?

पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने हरियाणा के मेवात से दो आंतकियों को गिरफ्तार किया था। मीडिया रिपेार्ट के अनुसार आतंकी अब्दुल जमीर ने पुलिस पूछताछ में बताया कि, लश्कर के आदेश पर ही दंगा पीड़ितों के संपर्क में थे। उन्होंने बताया कि कुछ युवकों से संपर्क भी किया गया था। आतंकी के अनुसार लश्कर-ए-तैयबा की ओर से मुजफ्फरनगर दंगा का बदला लेने की तैयारी की जा रही थी। गिरफ्तार आतंकी ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया। पुलिस के अनुसार लश्कर की नजर दंगा पीड़ितों पर थी और कुछ युवकों को लश्कर में शामिल करने की तैयारी हो रही थी। दो युवक इनकी बातों में आकर लश्कर से जुड़ने के लिए तैयार भी हो गये थे। स्पेशल सेल ने उन युवकों को ढूंढ निकाला और उन्हें गवाह बनाकर कोर्ट में पेश करने के बारे में सोच रही है। गौरतलब हो कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुफिया विभाग के एक अफसर के हवाले से दावा किया था कि आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के संपर्क में है। दिल्ली पुलिस के खुलासे के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि ‘राहुल गांधी की बात सच होती नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि अगर यह सच होता है तो देश के लिए समस्या है।’

मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर भाजपा और सपा को घेरने की फिराक राहुल गांधी खुद ऐसे घिरे कि उन्हें चुनाव आयोग को सफाई देनी पड़ती। राहुल के विवादित बयान के बाद कांग्रेस को लगने लगा था कि राहुल का बयान लोकसभा चुनाव में विपक्ष के हाथ में सबसे ताकतवर हथियार के रूप में सामने होगा। हिन्दी पट्टी के राज्यों में मुस्लिम वोटर किसी भी दल का भाग्य बनाने व बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। मुस्लिम वोटरों की नाराजगी के बढ़ते ग्राफ, चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार, राहुल गंाधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की तैयारियों, आम आदमी पार्टी का बढ़ता प्रभाव, मोदी की दिनों दिन बढ़ती चुनौती कांग्रेस की गिरती साख, राहुल को स्थापित करने की कोशिशों के बीच हरियाणा से दो आंतकियों की गिरफ्तारी, उनके इकबालिया बयान और दिल्ली पुलिस के खुलासे के पीछे कहीं न कहीं गहरी राजनीतिक साजिश की गंध आ रही है। अगर यह मान लिया जाए कि मामला राजनीति से प्रेरित नहीं है तो भी ये बड़ा गंभीर मामला है। ये हालात देश की खुफिया एजेंसियों की खस्ताहालत और लचर कार्यप्रणाली की पोल तो खोलती ही है वहीं यह सवाल भी खड़ा करती हैं कि अगर राहुल गांधी को  खुफिया विभाग के अधिकारी द्वारा अक्टूबर में इस बारे में जानकारी मिल गयी थी तो खुफिया एजेंसियां और पुलिस जनवरी का इंतजार क्यों कर रही थी। वहीं अगर आंतकी नेटवर्क देश में इस कदर सक्रिय है तो ये आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर खुफिया एजेंसियों की नाकामी के साथ आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे की बड़ी घंटी भी है।

दिल्ली पुलिस का खुलासा एक साथ कई सवालों को खड़ा करता है। क्या ये राहुल गांधी की इमेज बनाने के लिए की गयी कार्रवाई है। क्या आतंकियों की गिरफ्तारी और दिल्ली पुलिस का खुलासा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से पूर्व मुस्लिम वर्ग का हिमायती साबित करना है। क्या यह मुस्लिम वर्ग की नाराजगी दूर करने और राहुल के बयान के बाद डैमेज कंट्रोल करने की कांग्रेसी कवायद है। क्या कांग्रेस राहुल को सत्यवक्ता साबित करने में जुटी है। दिल्ली पुलिस के खुलासे के बाद जिस तरह से राजनीतिक बयानबाजी का दौर चालू हुआ है उससे इस शंका को पुष्टि होती है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व मुस्लिम वोटरों की नाराजगी और गुस्सा कम करने के लिए और राहुल गांधी की गिरती छवि को संभालने के लिए सियासत किसी भी हद तक जाने को तैयार है। अगर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के इरादे विशुद्ध राजनीतिक और वोट बैंक की राजनीति के इर्द-गिर्द मंडरा रहे हैं तो ये घातक प्रवृत्ति का परिचायक है। 

24 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश के इंदौर के दशहरा मैदान में ‘सत्ता परिवर्तन रैली’ को संबोधित करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल ने कहा, उत्तर प्रदेश के इस शहर के दंगा प्रभावित मुस्लिम युवाओं को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई बरगलाने की कोशिश कर रही है। ‘परसों मेरे दफ्तर में एक भारतीय गुप्तचर अधिकारी आया। उसने मुझे बताया कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लोगों ने मुजफ्फरनगर के उन 10-15 मुसलमान लड़कों से बात करके उन्हें बरगलाना शुरू कर दिया है, जिनके भाई-बहन दंगों में मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि मैं उन पांच युवाओं को जानता हूं जिन्होंने मुजफ्फनगर के दंगों में अपने परिजनों को खोया और उसके बाद पाकिस्तानी एजेंसी ने उनसे संपर्क साधा। राहुल ने कहा कि मुजफ्फनगर हिंसा के पीड़ितों के संपर्क में है आईएसआई। ये बातें उन्हें एक इंटेलीजेंस अफसर ने बताई हैं। उन्हें यह भी बताया गया कि आईएसआई मुस्लिम पीड़ितों के संपर्क में है। राहुल के बयान पर हडकंप मचना तय था। राहुल ने ये भी कहा कि बीजेपी ने ही मुजफ्फरनगर में झगड़ा लगवाया था। राहुल ने मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर भाजपा पर कड़े प्रहार किये थे। राहुल के इस बयान के बाद बड़ा राजनीतिक बवाल मचा था और बीजेपी ने इस बात पर भी सवाल उठाए थे कि एक खुफिया विभाग का अधिकारी राहुल को अपनी रिपोर्ट क्यों देता है। इस मामले पर चुनाव आयोग ने राहुल को आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में बीते 31 अक्टूबर को नोटिस जारी किया था, जिसके जवाब में राहुल ने खुद को बेकसूर बताया। समाजवादी पार्टी ने भी राहुल के बयान की कड़ी आलोचना की थी।

दंगा भड़कने के लगभग 20 दिनों के बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी व कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 16 सिंतबर, 2013 को दंगाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया था। इस दौरे के दौरान राहुल गांधी ने खास समुदाय के लोगों से ही मुलाकात की थी। 9 अक्टूबर, 2013 को अलीगढ़ में रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने पहली दफा मुजफ्फरनगर दंगों पर चुप्पी तोड़ी थी। राहुल ने कहा कि, वोट के लिए दंगे कराए गए। राहुल ने कहा कि उस दंगे से आम आदमी को क्या फायदा हुआ? हिंदू भी मरे, मुसलमान भी मरे..मैं वहां गया...उन्होंने कहा कि ये सब राजनीतिक लोगों ने किया है...हमारे को बरबाद किया... ‘आम आदमी लड़ना नहीं चाहता, लेकिन राजनीतिक शक्तियां है जो जानती हैं कि अगर लड़ाई नहीं हुई वो जीत नहीं पाएंगे। मैं बता दूं कि हम सब एक हैं और इसीलिए देश आगे बढ रहा है।’ ‘हम किसी एक जाति के लिए अधिकार नहीं मांगते. हम पूरे हिंदुस्तान का ध्यान रखते हैं. हिंदू को मुसलमान से लड़ाया जाता है. हम आपके लिए लड़ेंगे।’

26 अक्टूबर 2013 को  कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों  के बारे में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान को उचित ठहराते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता एवं हरियाणा में मंत्री रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि, ‘राहुल गांधी ने एक जिम्मेदार राजनीतिक नेता के तौर पर ऐसा सत्य कहा जो सभी लोग जानते हैं। उन्होंने कहा कि देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा होने और जाति तथा धर्म के आधार पर बांटने के कोशिश होने पर बाहरी ताकतें फायदा उठाती हैं और गांधी ने समाज के सभी वर्गों को ऐसी ताकतों के प्रति सचेत रहने को कहा है।’ राहुल के बयान की आलोचना उनकी ही पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने की थी। जयराम ने कहा था कि ‘राहुल को अपने बयान को लेकर माफी मांगनी चाहिए।’ रमेश ने कहा कि उनके कुछ गैर मुस्लिम दोस्तों ने भी आईएसआई वाली टिप्पणी को लेकर नाखुशी जाहिर की है, हालांकि उन्होंने कहा कि राहुल का इरादा किसी को ठेस पहुंचाने का नहीं था।

दरअसल इस बयान के बाद से मीडिया रिपोर्ट और खुफिया विभाग की जानकारी के अनुसार राहुल के बयान ने मुस्लिम समुदाय को बुरी तरह से नाराज करने का काम किया था। डैमेज कंट्रोल की कवायद गुपचुप तरीके से की गयी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 23 दिसंबर 2013 को मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों से मिलने पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांधला में विरोध का सामना करना पड़ा था। दंगा पीड़ितों ने राहुल गांधी के काफिले का रास्ता रोककर उन्हें काले झंडे भी दिखाए। दंगा पीड़ित इस बात से नाराज थे कि केंद्र सरकार ने उनकी स्थिति सुधारने के लिए कुछ नहीं किया। इसके अलावा राहुल गांधी के उस बयान से पर से भी वह गुस्से में थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि कई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में हैं। राहुल गांधी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन. सिंह के साथ सबसे पहले शामली स्थित मलकपुरा पहुंचे थे। मलकपुरा के बाद राहुल को मुजफ्फरनगर जिले के बसीकला और लोई इलाकों में लगे राहत शिविरों में भी जाना था, लेकिन विरोध के चलते वह इन क्षेत्रों में नहीं जा सके। इसके बाद राहुल का काफिला मुजफ्फरनगर की ओर बढ़ गया, लेकिन बीच में वह  काकड़ा गांव पहुंच गए और लोगों से मुलाकात की। काकड़ा जाते समय राहुल को काले झंडे दिखाए गए। लोगों का कहना था कि जब राहुल हम लोगों को ‘आईएसआई का एजेंट’ बताते हैं तो अब हमसे मिलने क्यों आए हैं?

मुजफ्फरनगर दंगों का असर यूपी में लोकसभा चुनाव में साफ तौर पर देखने को मिलेगा। ऐसे में यूपी में पिछले ढाई दशकों से खोई जमीन की तलाश में लगी कांग्रेस और पार्टी को खड़ा करने में जुटे राहुल गांधी को लगता है कि 2014 का चुनाव उनके जीवन का सबसे मुश्किल मुकाबला साबित होने जा रहा है। ऐसे में चुनाव पूर्व विपक्ष के हाथों से ऐसे मुद्दे छीनने की कवायद तेज हो गयी जिससे विपक्ष चुनाव के समय इन मुद्दों से उस पर हमला न कर पाये। जनलोकपाल बिल का पास होना, मुस्लिम समुदाय की नाराजगी को दूर करने के लिए राहुल की बात को सच साबित करना इसी एक्सरसाइज का ही हिस्सा है। लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस अपने दामन पर लगे दागों को जितना हो सके धोने की कोशिश में लगी है। ऐसे में आने वाले दिनों में ऐसी कार्रवाईयां, चालबाजियां, पैंतरेबाजी और बयानबाजी देखने-सुनने को मिलेंगी। लेकिन इस सारी राजनीति के बीच यह ध्यान रखने वाली बात होगी कि किसी बेगुनाह को गंदी राजनीति का शिकार न होना पड़े। वहीं इस कशमकश और रस्साकशी में कोई गुनाहगार कानून के शिकंजे से बचना भी नहीं चाहिए। आखिरकर यह मामला किसी कौम, राजनीति, वोट बैंक और विपक्ष को शिकस्त देने से बहुत ऊपर देश और नागरिकों की अस्मिता और सुरक्षा से जुड़ा है।

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