ददा सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं था, मुददा सिर्फ
महंगाई भी नहीं थी, मुददा वंशवाद और नेताओं का शाही अंदाज़ भी नहीं था,
मुददा सिर्फ बढ़ते अपराध भी नहीं थे। असल मुददा था राजनीति में सुचिता और
पारदर्शिता का। असल मुददा था जनता को लोकतंत्र का आभास कराने का, तभी
दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को विधान सभा चुनाव में अप्रत्याशित
समर्थन दिया। हर दिन रोटी की जंग लड़ने वाले के साथ-साथ मध्यम और उच्च वर्ग
के अधिकाँश लोगों को यह विश्वास था कि आम आदमी पार्टी शासन-प्रशासन को ही
नहीं, बल्कि संपूर्ण राजनैतिक वातावरण को बदल देगी, लेकिन सब कुछ वैसा ही
हो रहा है, कुछ नहीं बदला। वही आरोप-प्रत्यारोप सामने हैं, जो पिछले 66
सालों से जनता देखती और सुनती आ रही है। आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार को
बने अभी उंगुलियों पर गिनने लायक ही दिन गुजरे हैं। वास्तव में सरकार और
पार्टी शिशु अवस्था में ही है, लेकिन बुजुर्ग दलों से उसकी तुलना की जाये,
तो वह शिशु अवस्था में भी बुजुर्ग दलों से कम विवादित नज़र नहीं आ रही।
दिल्ली के लक्ष्मीनगर क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के विधायक
विनोद कुमार बिन्नी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर जनता को गुमराह करने
का आरोप लगा रहे हैं। वह अरविंद केजरीवाल को घमंडी, तानाशाह और धोखेबाज बता
रहे हैं। वह विधानसभा चुनाव और अब लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर
भी आरोप लगा रहे है। वह पार्टी के संयोजक व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर
संबंधों के चलते पूर्वी दिल्ली के कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित के दबाव
में निर्णय लेने के आरोप लगा रहे हैं। लोकतंत्र की बात करने वाली पार्टी पर
बिन्नी यह भी आरोप लगा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के अलावा उनके बचपन के
दोस्त संजय सिंह, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया ही पार्टी को चला रहे
हैं। बिन्नी के तमाम आरोपों को पार्टी के प्रवक्ता योगेन्द्र यादव ने खारिज
कर दिया है। बिन्नी के आरोपों को जनता भी महत्वाकांक्षा से जोड़ कर देख
सकती है, लेकिन बात सिर्फ बिन्नी के ही आरोपों तक सीमित नहीं है।
कुमार विश्वास को लेकर भी तमाम सवाल उठ रहे हैं और दिल्ली के साथ देश भर
में पार्टी की फजीहत हो रही है। कुमार विश्वास स्टिंग ऑपरेशन में अपने शो
के लिए कैश लेने, हवाई जहाज में बिजनेस क्लास का ही टिकट मांगने के साथ
फाइव स्टार होटल में ठहरने की मांग करते नजर आये, इसी तरह एक पुरानी वीडियो
क्लिप में नरेंद्र मोदी की तुलना भगवान शिव से करने और एक अन्य वीडियो में
इमाम हुसैन का मजाक उड़ाने को लेकर विवादों में हैं, जिसको लेकर सरकार को
समर्थन दे रहे जदयू विधायक शोएब इकबाल समर्थन वापसी की धमकी दे चुके हैं।
शोयब इकबाल सदन में अमर्यादित भाषा बोल चुके हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी
उनसे लगातार समर्थन ले रही है। बात कुमार विश्वास की ही करते हैं, उनकी
इमाम हुसैन पर टिप्पणी को लेकर पिछले दिनों लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस के
दौरान बवाल हुआ और उन्हें अंडा मारा गया। फजीहत का सिलसिला यही नहीं थमा,
अगले दिन उन्होंने अमेठी में भाषण देते समय जान कर खुद की जाति बताई, जिसको
लेकर उनकी आलोचना की जा रही है, क्योंकि आम आदमी पार्टी तमाम तरह के वाद
के साथ जातिवाद की राजनीति का विकल्प कहा जा रहा है। इस सब पर सफाई देने
से पहले कुमार विश्वास को लेकर एक और विवाद तब शुरू हो गया, जब हिंदी
अकादमी के कवि सम्मेलन के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण पत्र पर सानिध्य में
उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर के नाम की जगह उनका का नाम लिखा था। मतलब,
उपाध्यक्ष की घोषणा होने से पहले उनका नाम निमन्त्रण पत्र पर आ गया, साथ ही
इससे पद लोलुपता का भी संदेश साफ जा रहा है।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक और सुप्रीम कोर्ट के चर्चित
वकील प्रशांत भूषण कश्मीर में सेना की तैनाती और जनमत संग्रह कराने को लेकर
दिए बयान से खुद के साथ पार्टी की भी फजीहत करा चुके हैं। पार्टी में एक
और वकील व दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती की भूमिका को भ्रष्टाचार के
एक केस में सीबीआई जज आपत्तिजनक, अनैतिक और सुबूत के साथ छेड़खानी बता चुके
हैं, जिससे पार्टी और सरकार की देश भर में फजीहत हुई है। इसी तरह दिल्ली
सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री राखी बिड्लान गाड़ी का शीशा बच्चे की
गेंद लगने से टूटने पर एफआईआर करा कर खुद के साथ पार्टी और सरकार की फजीहत
करा चुकी हैं। आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्य शाजिया इल्मी के भाई राशिद
इल्मी मां से मारपीट करने, संपत्ति पर कब्जे और परिवार को आर्थिक व मानसिक
रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगा चुके हैं, साथ ही स्टिंग ऑपरेशन में
उनके द्वारा अवैध रूप से धन लेने की बात सामने आई, जिससे पार्टी की फजीहत
तो हुई, लेकिन चुनावी माहौल में लोग षड्यंत्र समझ कर इस आरोप को नज़र अंदाज़
कर गये।
दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने जनकपुरी इलाके में
एक प्राइवेट अस्पताल के बाहर कूड़े में नवजात का शव मिलने पर पत्रकारों से
कहा था कि यह मामला निजी अस्पताल का है, इसलिए अस्पताल के मालिक से जाकर
पूछो, जिससे उन्होंने भी सरकार और पार्टी की खूब फजीहत कराई। वीआईपी कल्चर
के विरुद्ध नारा देकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और
दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने सरकारी गाड़ी ही नहीं ली, बल्कि
वीआईपी नंबर की बड़ी गाड़ी ली और मयूर फेज-टू में चार बेडरूम का सरकारी आवास
भी लिया, जिससे पार्टी और सरकार की जमकर फजीहत हुई। यह सब पार्टी के वो
चेहरे हैं, जो पहले दिन से जनता देख रही है और इन पर विश्वास पर पार्टी से
जुड़ रही है, ऐसे में यही सब राजनीति को लगातार दूषित करने की दिशा में ही
काम करते नज़र आ रहे हैं।
इन सब से अलग पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की बात की जाये, तो वे
खुद अपनी किसी बात पर अब तक नहीं टिके हैं। चुनाव पूर्व उन्होंने स्पष्ट
कहा था कि वह कभी कांग्रेस और भाजपा को न समर्थन देंगे और न ही उनसे
समर्थन लेंगे, लेकिन कांग्रेस के समर्थन से ही सरकार बनाये हुए हैं। जनता
ने कहा या नहीं, यह सवाल ही नहीं है। सवाल यह है कि जनता से पूंछने की नौबत
तब ही तो आई, जब सरकार बनाने या कांग्रेस से मिलने की मंशा थी, वरना
दिल्ली की जनता सरकार बनाने को लेकर सड़कें जाम थोड़े ही कर रही थी। जनलोकपाल
आन्दोलन को लेकर ही जिस पार्टी का उदय हुआ हो, उस पार्टी का नेता आज उस
जनलोकपाल की बात तक करता नज़र नहीं आता, इसी तरह सरकारी बंगले में न रहने का
वचन देने वाले अरविंद केजरीवाल और भी बड़ा शाही बंगला लेने को तैयार थे,
जिसे देश भर में हुई आलोचना के बाद नहीं ले सके। दिल्ली की पूर्व
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की व्यक्तिगत छवि और भी खराब थी। उस खराब छवि को
बनाने में अरविंद केजरीवाल की बड़ी भूमिका रही, तभी वह खुद हार गईं, लेकिन
सरकार में आने के बाद अरविंद केजरीवाल शीला दीक्षित के प्रति नरम नज़र आ
रहे हैं, जिसे अब सत्ता लोलुपता ही कहा जायेगा। वह दलों में लोकतंत्र की
बात करते हैं, लेकिन बिन्नी ने आरोप लगा दिए, तो बदले में उनकी भी पार्टी
आरोप लगा रही है, साथ में बिन्नी को नोटिस भी दे रही है, ऐसे में उनकी
पार्टी में भी लोकतंत्र कहां है? उनकी प्रशंसा तो तब होती, जब वह खुद
मीडिया के सामने आते और मुस्करा कर बिन्नी के एक-एक आरोप का जवाब देते। इसी
तरह जनता ने अपने बीच के जिस व्यक्ति को नेता बनाया, वो अरविंद केजरीवाल
जनसमस्याओं की सुनवाई के दौरान जनता से ही झल्ला गये और छत पर चढ़ कर खुद ही
सिद्ध कर दिया कि वह ख़ास आदमी हैं, क्योंकि उस छत पर पीड़ित और गरीब जनता
नहीं जा सकती।
आम आदमी पार्टी के नेताओं की भाषा और व्यवहार से हट कर बात की जाये, तो
वह घोषणा पत्र के अनुरूप दिल्ली की जनता को अभी तक वास्तव में मुफ्त पानी
नहीं दे पाये हैं। आम आदमी के लिए दूसरा सबसे ख़ास मुददा बिजली था, लेकिन
उनकी बनाई स्कीम से दिल्ली के आम आदमी का कोई ख़ास भला नहीं होने वाला। इसी
तरह अपराध की बात करें, तो दिल्ली की स्थिति चुनाव पूर्व जैसी थी, वैसी ही
आज है। दिल्ली बलात्कार कांड को भुनाने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार में
अब विदेशी महिला के साथ बलात्कार हो रहा है। माफियाओं में भी कोई दहशत नहीं
है, क्योंकि सरकार बनते ही शराब माफिया के लोग सिपाही की हत्या कर चुके
हैं। कुल मिला कर जो राजनैतिक दल मौजूद थे और जैसी उनकी छवि थी, उनसे कहीं
बदतर स्थिति तब है, जब आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार शिशु अवस्था में है।
खैर, देश और समाज की चिंता करने वाला वर्ग राजनीति की दिशा और दशा को
लेकर बेहद चिंतित था। आम आदमी पार्टी का उदय होने से उस वर्ग के चेहरे पर
हल्की सी मुस्कान उभरी ही थी, जो आम आदमी पार्टी के नेताओं और उसकी सरकार
के मंत्रियों के क्रिया-कलापों से फिर खो गई है। भ्रष्ट नेताओं के
क्रिया-कलापों से 66 वर्षों में जितना नुकसान हुआ था, उससे कई गुना अधिक
नुकसान आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कर दिया है, क्योंकि देश और समाज को
लेकर चिंतित रहने वाले वर्ग के चेहरे पर अब आसानी से मुस्कान नहीं आयेगी।
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