21 January 2014

बिन्नी बिद्रोह और बग़ावत !

बात तब की है जब जंतर मंतर से राजनीतिक पार्टी लेकर उठे अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में जगह जगह बैठकें कर रहे थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई में तब विनोद कुमार बिन्नी ही उनके एकमात्र अनुभवी जमीनी 'सिपहसालार' होते थे। उनका अनुभव यह था कि वे 2006 से लगातार निगम पार्षद का चुनाव जीत रहे थे। जमुना पार के जिस दल्लुपुरा इलाके के वसुंधरा एन्क्लेव में वे रहते हैं उस इलाके में बतौर निगम पार्षद रहते हुए एक जबर्दस्त प्रयोग किया था। उनका यह प्रयोग तब अरविन्द केजरीवाल की नजर में बहुत क्रांतिकारी नजर आता था। वह प्रयोग था मोहल्ला सभा का। निर्दलीय और बसपा कांग्रेस में आते जाते रहते हुए भी बिन्नी ने इलाके में इसलिए लोकप्रिय थे क्योंकि वे मोहल्ला सभा को बहुत सफलता से लागू कर रहे थे।
बतौर राजनीतिज्ञ बिन्नी की मोहल्ला सभा में अधिकारी और जनता का मिलन करवाया जाता था। हर मोहल्ले की सभा में सभी संबंधित सरकारी कर्मचारी उपस्थित होते थे और लोगों की शिकायतें सुनते थे। तीन हफ्ते का समय दिया जाता। तीन हफ्ते बाद दोबारा वही अधिकारी और वही शिकायतकर्ता दोबारा से उसी मोहल्ले में इकट्ठा होते और काम काज का हिसाब किताब किया जाता। बिन्नी की यह छोटी सी पहल थी लेकिन इसके कारण उनके लिए इलाके में बड़ी लोकप्रियता मिल चुकी थी। बिन्नी की यही लोकप्रियता मनीष सिसौदिया और अरविन्द केजरीवाल को भी आकर्षित कर रही थी। इसलिए पार्टी बना लेने के बाद अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसौदिया ने बिन्नी को बतौर रोल मॉ़डल प्रस्तुत किया।

टिकट बंटवारे का समय आया तब तक बिन्नी आम पार्टी के लिए खास आदमी बन चुके थे। इसलिए इलाकेवार बैठकों में बिन्नी की भूमिका महत्वपूर्ण होती थी। लक्ष्मीनगर विधानसभा सीट के लिए जब नामों का निर्धारण होने लगा तब वहां से चुनाव लड़ने का पहला प्रस्ताव अरविन्द केजरीवाल को ही दिया गया था। उस वक्त बैठक में मौजूद एक आदमी गुमनाम रहने की शर्त पर बताते हैं कि ''लक्ष्मीनगर की सीट इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि यहां से कांग्रेस के एके वालिया चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस के भीतर वालिया की चाहे जो स्थिति रही हो लेकिन लक्ष्मी नगर इलाके में वे एक ईमानदार और काम करनेवाले नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं। इसलिए उस वक्त होनेवाली बैठकों में प्रस्ताव आया था कि अरविन्द केजरीवाल को ही लक्ष्मीनगर से चुनाव लड़ना चाहिए ताकि वालिया को हराया जा सके।"

पार्टी वर्करों के इस सुझाव के पीछे कारण था। उस वक्त बिन्नी ने ही यह प्रस्ताव दिया था कि शीला दीक्षित के खिलाफ तो माहौल है इसलिए उन्हें हराने से बड़ी चुनौती होगी वालिया को हराना। अरविन्द ने यह चुनौती तो नहीं स्वीकार की लेकिन तत्काल यह चुनौती बिन्नी को दे दी। बिन्नी ने न सिर्फ चुनौती स्वीकार की बल्कि डॉ अशोक कुमार वालिया को आठ हजार से अधिक वोटो से हरा दिया। दिल्ली में शीला दीक्षित की हार के बाद कांग्रेस को अगर किसी हार का गम था तो वह डॉ अशोक कुमार वालिया के हारने का ही गम था। लेकिन आम पार्टी में रहते हुए बिन्नी ने कमोबेश वही काम किया जो अरविन्द केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराकर किया था।

लेकिन परिणाम आने के साथ ही परिस्थितियां बदलने लगीं। अरविन्द केजरीवाल मीडिया के नये आइकॉन हो गये थे और देखते ही देखते राजनीति ने ऐसी करवट बदल ली कि बिन्नी का नाम मंत्रिपरिषद से हटा लिया गया। बिन्नी अभी भी दावा करते हैं कि उनका नाम पहली लिस्ट में राजभवन भेजा गया था लेकिन बाद में उनका नाम हटा लिया गया। हो सकता है, ऐसा कांग्रेस के दबाव में किया गया हो क्योंकि जिस कांग्रेस से विद्रोह करके अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी खड़ी की थी, बिन्नी भी उस कांग्रेस से विद्रोह करके आम आदमी बन चुके थे। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस ने जिन कुछ लोगों को काटने-छांटने का फरमान दिया होगा उसमें बिन्नी का नाम सबसे ऊपर रहा होगा। बिन्नी के विद्रोह की पहली खबर यहीं से बाहर आई।

मंत्री न बनाये जाने के बाद उनकी ऐसी खलनायक की छवि बन गई कि लोगों की भावनाओं के साथ कुठाराघात करता है। पहले भी बसपा, कांग्रेस के साथ रहने के कारण उनकी छवि दलबदलू नेता की ही रही है लेकिन आम पार्टी में रहकर अरविन्द से विद्रोह किसी भी अरविन्द समर्थक के लिए असहनीय था। जो भी हुआ लेकिन जल्द ही सबकुछ शांत हो गया। बिन्नी के विरोध के स्वर चुप हो गये और सरकार की गाड़ी आगे बढ़ गई। लेकिन अभी सरकार पटरी पर पंद्रह दिन ही दौड़ी थी कि बिन्नी फिर से विद्रोही हो गये। और इस बार तो सीधे प्रेस कांफ्रेस तक कर डाली। जिस आम आदमी पार्टी के वे कभी सबसे बड़े जमीनी नेता होते थे, उसी आम पार्टी की जमीन यह कहकर खोद दी कि अरविन्द केजरीवाल और कांग्रेस की मिलीभगत है। दिल्ली में जनता को जो राहत दी गई है, वह सब छलावा है।

बिन्नी ने जो कुछ बोला वह बीते एक पखवाड़े से बीजेपी बोलती आ रही है, इसलिए आम पार्टी के योगेन्द्र यादव अगर बिन्नी के बोले को बीजेपी का ड्राफ्ट बता रहे हैं तो अनुमानत: सही कह रहे हैं। जिसने भी बिन्नी को लाइव देखा सुना होगा उसे समझते देर नहीं लगी होगी कि बीजेपी भी तो यही सब बोलती आ रही है। कहनेवाले तो यह भी कह रहे हैं कि गड़करी ने जिस कांग्रेसी नेता (संदीप दीक्षित) उद्योगपति (पवन मुंजाल) और अरविन्द केजरीवाल की मीटिंग का खुलासा किया था, वह जानकारी बिन्नी ने ही गड़करी को मुहैया करायी थी। पहले बिन्नी खुद ही यह खुलासा करनेवाले थे, लेकिन बाद में उन्होंने यह राज खोलने के लिए गडकरी को दे दिया। जो लोग यह दावा कर रहे हैं उनकी सच्चाई वे जाने लेकिन इतना तो तय है कि बिन्नी की बगावत से सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही पहुंचेगा। आम पार्टी को कितना नुकसान होगा, इसका आंकलन फिलहाल इस वक्त करना संभव नहीं है।

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