04 January 2014

मोदी को विनाशकारी कहना कितना सही ?

                                            हजारों जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी।
                                           न जाने कितने सवालों की आबरू रखली।।

कलतक ख़ामोशी में विश्वास करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब अपनी ख़ामोशी तोड़ी तो मानो सियासी भूचाल आगया। सत्ता से सन्यास की ओर जाने की तैयारी करने वाले मनमोहन ने ऐसे शब्द बाड़ छोडे़ जैसे प्रधानमंत्री अपनी सारा मर्यादा ही भूल बैठे। मनमोहन सिंह बुझते दिए की फड़फड़ाती लौ के समान मोदी पर हमला बोला रहे थे। राजनैतिक हल्कों में मनमोहन सिंह के शाँत स्वभाव का सम्मान भी किया जाता है और उसकी खिल्ली भी उड़ाई जाती है। राजनीतिक विरोधियों पर शाब्दिक बाण चलाने के लिए उन्हे कभी नहीं जाना गया। संसद में भी जब कभी कभार नोकझोंक के मौके आते हैं और उन पर व्यक्तिगत हमले भी हो रहे होते हैं तब भी वह चुप रहना ही पसंद करते हैं।

मगर शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाजपा के पीएम पद के उमीदवार नरेन्द्र मोदी को देश  के लिए विनाशकारी बता डाला। मनमोहन सिंह ने आगे ये भी कहा कि जिसके सत्ता में रहते अहमदाबाद में कत्लेआम हुआ हो, वो मजबूत नेता कैसे हो सकता है। मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए घातक होगा। यह देश के हित में ठीक नहीं होगा। तो ऐसे में सवाल ये है कि क्या मनमोहन सिंह अपनी नकामी और असफलता के आगे इतना बेबस और लचार होचले है कि देश के भावी पीएम उन्हें विनाशकारी दिखाई देने लगे है। या फिर पीएम की ये खींझ कांग्रेस की उस रणनीति का हिस्सा है जिसके सहारे अक्सर कांग्रेस और उसके नेताओं को जाना जाता है। तो सवाल इस बात को लेकर भी है कि क्या मोदी देश के लिए विनाशकारी है या फिर कांग्रेस के लिए।

रोबोटनुमा चाल और किसी मुद्दे पर कोई राय न रखने वाले प्रधानमंत्री जब एकाएक "खिसियाई बिल्ली, खम्भा नौचे"के समान सियासत करने लगे तो सवाल और भी गंभिर हो जाता है। आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवी को भष्टाचार और घोटालों को बर्दाश्त करने और प्रतिभावान लोगों को आगे न ला पाने की कमजोरी ने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है। सोनिया गाँधी के साथ सत्ता में भागीदार होने की मजबूरी ने न सिर्फ उनके हाथ बाँध दिए हैं बल्कि कहीं-कहीं यह आभास भी दिया है कि पार्टी नेतृत्व के खिलाफ जाने की न तो उनमें इच्छा शक्ति है और न ही क्षमता। 

ऐसे में प्रधानमंत्री को अब ये अहसास होचला है कि आज के बदलते राजनीति दौर में मोदी न सिर्फ दश जनपथ के राह में रोड़ा बनने वाले है बल्कि उनके राजनीतिक वविष्य के लिए चुनौती भी मोदी ही होंगे। बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियां इन दिनों चर्चा में है, उनके विकास के मॉडल को भारत का भविष्य बताने का अभियान जोरों पर है। जतना का जनाधार खोने का भय सत्ता से दूरी का दंश का आभाश इस बात का गवाह है कि कांग्रेस की हर ख्वाहिशें टुटती नज़र आ रही है। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि मनमोहन का मोदी को विनाशकारी कहना कितना सही ? नकामी की खींझ और सत्ता की ख्वाहिशों पर तो कोई भी यही कह सकता है कि,,,,,,,,,

                                         हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।
                                         बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले।।

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