25 January 2014

वोट फॉर मोदी के मायने !

अब बात साफ साफ है। सीधे सीधे। लोकतंत्र की दुहाई और आदर्श राष्ट्रवादी विचारधारा जैसी कोई बात नहीं है। पार्टी भी शायद किनारे कर दी गई है। बात सीधे सीधे जनता और मोदी के बीच है। दिल्ली के रामलीला मैदान से मोदी ने अपना रुख पूरी तरह बदल दिया है। अभी तक पार्टी के नाम पर मोदी वोट मांग रहे थे और मोदी के नाम पर पार्टी। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अब मोदी सीधे सीधे अपने नाम पर अपने लिए वोट मांग रहे हैं। उस दिन रामलीला मैदान में भी जब भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में मोदी ने साठ साल बनाम साठ महीने की मांग की थी तब उनका हाथ अपने आप उनके सीने की तरफ चला गया था। उसी सीने की तरफ जो अब गोरखपुर पहुंचकर 56 इंच का हो चला है। 

बात साफ है। साठ महीने चाहिए। किसी और के लिए नहीं चाहिए। नरेन्द्र भाई मोदी को अपने लिए चाहिए। मोदी मॉडल पर देश के विकास के लिए चाहिए। वह विकास जिसमें सुख चैन और आराम के अलावा दूसरा कोई काम नहीं है। नरेन्द्र मोदी के पास न सिर्फ विकास का कोई बेहतरीन फार्मूला है बल्कि उस फार्मूले पर काम करने का मजबूत माद्दा है। बीते कुछ महीनों से मोदी का प्रचारतंत्र विकास के उसी फार्मूले को दुनिया के सामने रख रहा है जिसे दस साल में मोदी गुजरात में लागू कर चुके हैं। उनका गुजरात देश का ही नहीं दुनिया का सबसे विकसित राज्य बन चुका है। अब वे देश को गुजरात बनाना चाहते हैं। इसलिए उन्हें सिर्फ साठ महीने चाहिए। सिर्फ पांच साल का सवाल है।

जनता को घेरने की बारी तो अब आ रही है। इससे पहले मोदी प्रचारतंत्र के इसी गिरोह ने मोदी की अगुवाई में भाजपा को घेरने का काम किया था। जिन दिनों भाजपा को घेरने के लिए मोदी गिरोह सोशल मीडिया पर सक्रिय हो रहा था उस वक्त एक प्रचार जमकर किया गया था। कमल निशान और मोदी की पहचान (उनका चेहरा) एक साथ जोड़कर सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार करवाया गया था कि अगर बीजेपी को वोट चाहिए तो वह तत्काल "गुजरात के शेर'' को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करे। सोशल मीडिया पर भी उस वक्त अघोषित रूप से गुजरात के इस शेर को विकास पुरुष ही घोषित किया गया था। गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद जब यह प्रचार अभियान चलाया जा रहा था उस वक्त तक केन्द्र में गुजरात के शासन के नाम पर गुजरात की जनता से तीसरी पारी हासिल कर चुके थे। गुजरात की जनता से किया गया वादा किसी भी कीमत पर पूरा करना ही था। इसलिए मोदी गिरोह ने बहुत सुनियोजित तरीके से सोशल मीडिया और फिर मुख्यधारा की मीडिया के जरिए यह साबित करने में सफलता हासिल कर ली कि बीजेपी के भीतर अगर सबसे लोकप्रिय नेता कोई है तो वह सिर्फ नरेन्द्र भाई दामोदार दास मोदी हैं।

अब कौन सी ऐसी पार्टी होगी जो अपने सबसे लोकप्रिय नेता को सबसे आगे नहीं कर देगी? विभिन्न टीवी चैनलों के सर्वे, सोशल मीडिया के शोर में सब तरफ एक ही आवाज सुनाई दे रही थी कि नरेन्द्र मोदी ही बीजेपी के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं। और जब ऐसा हो चला था तब चेहरे को मोहरा बनाने में क्या हर्ज था? चेहरे ने चाल चली और बीजेपी का मोहरा बन गया।

जिन दिनों नरेन्द्र मोदी और उनका प्रचार तंत्र यह स्थापित कर रहा था कि वे ही बीजेपी के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं उन दिनों बीजेपी लोकसभा चुनावों को लेकर बिल्कुल भी तैयार नहीं दिख रही थी। कांग्रेस के घोटालों पर संसद के भीतर लड़ने के लिए आमादा बीजेपी के लीडर्स यह भांप ही नहीं पा रहे थे कि 2014 की तैयारी का समय आ गया है। यह काम नरेन्द्र मोदी ने कर रखा था। और जैसे ही नरेन्द्र मोदी को बीजेपी ने पीएम इन वेटिंग घोषित किया मोदी का वह प्रचारतंत्र सक्रिय हो गया जिसका नेतृत्व अमित शाह कर रहे हैं। उसी प्रचारतंत्र ने मोदी को हिन्दुत्व के मुद्दे से अलग होने की रणनीति अख्तियार की और उनको बतौर विकास पुरुष स्थापित करने की योजना बनाई। हो सकता है इस योजना का अहम हिस्सा यही रहा हो जिस हिस्से पर अब नरेन्द्र मोदी बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं। रामलीला मैदान में अपने भाषण के बाद अब गोरखपुर में नरेन्द्र मोदी ने बीजेपी के लिए वोट मांगने की बजाय खुद अपने लिए वोट मांगना शुरू कर दिया है। यह बहुत सूक्ष्म बदलाव है लेकिन है बहुत अहम।

इसलिए मुलायम सिंह यादव को अगर नरेन्द्र मोदी यह समझाते हैं कि गुजरात होने का मतलब क्या होता है तो मुलायम के बहाने ही वे पूरे देश को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी होने का मतलब क्या होता है? मोदी होने का मतलब होता है चौबीसों घण्टे बिजली। दिन रात बिजली। गांव गांव बिजली। और फिर ऊपर से ताना यह कि नेताजी आप यूपी को गुजरात नहीं बना सकते क्योंकि इसके लिए तो छप्पन इंच का सीना लगता है। मोदी ने मुलायम को याद दिलाया कि कैसे बीते दस सालों में गुजरात सुख चैन का जीवन जी रहा है और शांति, एकता सद्भावना लेकर आगे बढ़ रहा है। अन्य विपक्षी दलों का नरेन्द्र मोदी पर जो सबसे बड़ा आरोप है वह यही है कि अगर नरेन्द्र मोदी देश के शीर्ष पर पहुंचते हैं तो वे देश को गुजरात बना देंगे। विपक्षी दल या फिर खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब यह कहते हैं तो उनका सीधा सा मतलब गुजरात के उस नरसंहार से होता है जिसके बूते नरेन्द्र मोदी ने गुजरात पर अपनी पकड़ मजबूत की थी।

नरेन्द्र मोदी गुजरात होने का मतलब न समझते हों, ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन जानते हुए भी उन्हें एकसाथ दो काम करने हैं। पहला, जिस गुजरात को दूसरे दल उन्हें याद दिलाना चाहते हैं उस गुजरात का नाम जुबान पर लाये बिना उस ब्रांड गुजरात को पेश कर देना है जो इतना विकसित है कि वहां आने के लिए इंद्रदेव भी तरसते हैं। गुजरात कभी बहुत पिछड़ा राज्य तो रहा नहीं है। बिजली, उद्योग और प्रशासनिक सक्रियता के नाम पर गुजरात मोदी के आने से पहले ही शिखर पर विराजमान राज्यों में मौजूद था। नब्बे के दशक के आखिर तक औद्योगिक विकास के मामले में महाराष्ट्र और गुजरात दो ही राज्यों का नाम आता था। इसलिए दस सालों में नरेन्द्र मोदी ने कोई बहुत तीर मार दिया हो ऐसा नहीं है, हां जो किया है वह यह कि औद्योगिक राज्य में बड़े पूंजीपतियों की बड़ी परियोजनाओं को बड़ी संख्या में बढ़ावा दिया है जिसके कारण बड़ी पूंजी का शोर गुजरात से सुनाई देता है। हालांकि यह सब करते हुए उनकी महत्कांक्षी वाइब्रंट गुजरात परियोजना फ्लाप शो ही साबित हुई और पर्यावरण की खराब दशा तथा कुपोषित बच्चों की कालिख मिटाये नहीं मिट रही है। लेकिन मोदी का प्रचारतंत्र इतना सशक्त है कि उन्होंने वह प्रचार हासिल कर लिया जो ब्रांड गुजरात के साथ साथ ब्रांड मोदी को स्थापित कर सकता है। और वही हो रहा है।

यहां यह सवाल बेमानी है कि अब बीजेपी कहां है? उसके बाकी नेताओं की क्या भूमिका है? भाजपा की वैचारिक विरासत का क्या होगा? जिस हिन्दू राष्ट्रवाद के नाम पर मोदी ने संघ समर्थन हासिल किया था, उस हिन्दू राष्ट्रवाद का क्या होगा? उन्हीं के विचारक दीनदयाल उपाध्याय ने किसी एकात्म मानववाद की कोई विचारधारा सामने रखी थी, जो कि जनसंघ के बाद भाजपा के लिए आर्थिक दिशानिर्देश का काम करती रही है। वे दीनदयाल और उनकी विचारधारा कहां चली गयी? दूसरों को छोड़िये कोई संघ, बीजेपीवाला भी इस वक्त इन सवालों पर सन्नाटे में है। गोरखपुर के मंच से जब बीजेपी नेता कलराज मिश्र को भी अगर दीनदयाल का एकमात्म मानवाद नहीं बल्कि मोदी का विकसित गुजरात दिखाई देता है इस पार्टी तंत्र के वैचारिक दिवालियेपन पर किसी मोदी का भारी पड़ जाना असहज और अस्वाभाविक नहीं रह जाता है। भाजपा के पास अब जो कुछ है, नरेन्द्र मोदी है। गुजरात है। इसलिए अगर लोग मोदी को वोट देते हैं, तो बदले में मोदी लोगों को 'गुजरात' देंगे। लेकिन कौन सा 'गुजरात'? वह गुजरात जिसे विपक्षी पार्टियां 'मोदी का गुजरात' कहती हैं या फिर वह जिसे मोदी और उनका प्रचारतंत्र 'मेरा गुजरात' बताता है?

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