देश में शिक्षा व्यवस्था की पोल एक बार फिर से खुलकर सामने आई है। "एजुकेशन फॉर ऑल" के तहत यूनेस्को की ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में चार साल तक स्कूल जाने के बावजूद 90 फीसदी गरीब बच्चे कुछ नहीं सीख पाते। 30 फीसदी बच्चे पांच-छह साल की स्कूली पढ़ाई के बावजूद सामान्य जोड़-घटाना नहीं जानते। अगर पूरे रिपोर्ट पर नजर डालें तो ग्रामीण महिलाओं को साक्षर करने में अभी 66 बरस और लग सकते हैं।
सवाल यहां ये है कि देश का जो मध्यवर्ग अपने बच्चों को सेंट्रल बोर्ड स्कूलों में पढ़ाकर संतुष्ट है, वे पूरी तरह निजी हाथों में हैं, लिहाजा देश के 85 फीसदी बच्चों के लिए उनकी कोई उपयोगिता नहीं है। सरकारी नियंत्रण में चलने वाली प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता देश के लिए गहरी चिंता का विषय होनी चाहिए, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की खींचतान के बीच इसे अब अजेंडा से बाहर ही मान लिया गया है। केंद्र द्वारा राइट टु एजुकेशन का एलान करने के बाद तो बुनियादी शिक्षा पूरी तरह से चरमरा गई है। केंद्र सरकार को सिर्फ स्कूलों में भर्ती के आंकड़ों से मतलब है और राज्य सरकारें सोचती हैं कि इस मामले में ज्यादा मशक्कत करने से उनका वोट बैंक तो बढ़ने वाला नहीं है, उल्टे शिक्षक यूनियनों के नाराज हो जाने का खतरा अलग है। ऐसे में देश का भविष्य आज अंधेरे में नजर आरहा है।
तो वहीं दुसरी ओर बचपन से ही रोजी-रोटी के काम में मां-बाप का हाथ बंटाने को मजबूर गरीब बच्चों को स्कूल तक खींच कर लाने के लिए बनाई गई मिड डे मील योजना खुद में एक राष्ट्रव्यापी स्कैंडल बनकर रह गई है। तो वहीं शिक्षक पढ़ाई-लिखाई का स्तर गिरने का ठीकरा, खाना पकाने और परोसने की काम को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।
इनसभी समस्यों और सवालों से इतर एक बात और है कि “जिसे हम आजकल ‘शिक्षा’ कहते हैं, वह एक उपभोक्ता माल बन चुका है। यानी जैसी हैसियत वैसी शिक्षा। यही कारण है कि आज देष में लाख दावे और वायदों के बावजूद ऐसी असामानता दिखाई देरही है।
आज हमारा देश लार्ड मैकाले द्वारा बनाया गया 1858 का भारतीय शिक्षा अधिनियम के तहद ही शिक्षा ग्रहण कर रहा है। जिसका मकसद था भारतीय परपरागत शिक्षा व्यवस्था को तोड़ कर अपनी कुरीतियों को थोपना। अपनी शिक्षा में सुधार लाने के लिए आज हमें मैकाले द्वारा लिखित 1835 का उसपत्र की साजिश को याद करना होगा जिसमे लार्ड मैकाले ने लिखा था.......
"मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा। मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी, चोर या गरीब हो। इस देश में मैंने इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे। जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम इसकी पौराणिक और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें। जिससे इस देश का प्रत्येक व्यक्ति शक्ल से भारतीय मगर से अक्ल से ब्रिटीश का मुलाम होगा" तो सवाल आज इस अक्लमंदी की गुलामी को लेकर खड़ा होता है कि आज देश इससे कब आजाद होगा?
देश में बेरोजगारी दर:
देश में बेरोजगारी दर:
- दुनिया में सबसे अधिक बेरोजगार युवा हमारे देश में हैं।
- 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग में ग्रामीण इलाकों में स्नातक बेरोजगारी का दर 36.6 प्रतिशत है।
- जबकि शहरी इलाकों में बेरोजगारी का दर 26.5 प्रतिशत है।
- श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसारए वर्ष 2012.13 में 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग के बीच बेरोजगारी का दर 18.1 प्रतिशत है।
- 18 से 29 वर्ष आयु वर्ग के बीच बेरोजगारी का दर 13 प्रतिशत है।
- 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के बीच के लोगों में ज्यादातर स्वरोजगार से जुड़े हैं।
- भारत में बेरोजगारी 3.8 प्रतिशतए गुजरातए दमन एवं दीव में सबसे कम है।
- सबसे ज्यादा बेरोजगारी हिमाचल प्रदेश में है जो 17.7 प्रतिशत है।
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