कभी एक टीवी शो पर बात करते हुए केन्द्रीय
मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर ने थरूर की मौजूदगी में कहा था कि
"इनका ट्विटर मेरी सौतन है।" जिस वक्त सुनंदा ने यह बात कही थी, यह कहते
वक्त उन्हें भी अंदाज नहीं रहा होगा कि सोशल मीडिया की यही 'सौतन' एक दिन
उनके जान की दुश्मन बन जाएगी। शुक्रवार की दोपहर बाद दिल्ली के पॉश इलाके
चाणक्यपुरी के होटल लीला के कमरा नंबर 345 में सुनंदा की जान कैसे चली गई,
यह तो अब विधिवत जांच पड़ताल के बाद ही पता चलेगा लेकिन शुरूआती तौर पर
मनोचिकित्सक मान रहे हैं, भावनात्मक उद्वेग के गहरे आवेग ने उनकी जान ले
ली। उनके ऊपर भावनात्मक उद्वेग का यह गहरा आवेग उसी ट्विटर के रास्ते आया
था जिसे कभी उन्होंने अपनी सौतन कहा था।
इसी हफ्ते पहली बार ट्विटर पर ही यह बात सबके सामने आई कि शशि
थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर ने अपने ही पति का ट्विटर एकाउण्ट हैक करके
उल्टा सीधा बहुत कुछ लिख दिया था। यह सब इसलिए क्योंकि उन्हें लग रहा था कि
उनके और उनके पति के बीच कोई तीसरा आ रहा है। यह तीसरा कोई और नहीं बल्कि
पाकिस्तान की एक अधेड़ पत्रकार मेहर तरार हैं जो कि लाहौर में रहती हैं।
सुनंदा और शशि के बीच यह मेहर तरार भी ट्विटर के रास्ते ही उनकी दुनिया में
दाखिल हुई थीं।
बात बिगड़ी, ट्विटरबाजी हुई, सुनंदा और मेहर दोनों ने मोर्चा संभाला और
शशि पर अपना अपना दावा किया लेकिन जिस तरह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में
सुनंदा के शरीर पर नीले घाव के निशान बताये जा रहे हैं उससे लगता है कि
कहीं न कहीं सुनंदा को लग रहा था कि प्यार के इस त्रिकोण में वे बाजी हार
रही थीं। तो क्या शशि थरूर और सुनंदा के बीच हल्की झड़प, हाथापाई या मारपीट
भी हुई थी? लगता तो है। क्योंकि अब तक टीवी मीडिया ने जितनी जांच पड़ताल
की है उसमें इतना तो साफ हो गया है कि गुरूवार को सुंनदा ने अकेले ही होटल
लीला में प्रवेश किया था। शशि थरूर बाद में कब आये पता नहीं। शुक्रवार की
शाम कांग्रेस कार्यसमिति से खाली होकर शाम आठ से सवा आठ बजे के बीच जब थरूर
होटल पहुंचे थे, तब उन्हें सुनंदा जीवित हाथ नहीं आई थीं।
होटल के कमरे से लेकर एम्स के पोस्टमार्टम रूम तक जो बातें उभरकर सामने आ
रही हैं उससे हत्या जैसी बात तो कोरी बकवास के अलावा कुछ नहीं हो सकता।
सवाल सिर्फ इतना हो सकता है कि आखिर सुनंदा की जान गई कैसे? क्या वे यह मान
बैठी थीं कि अब शशि से उनका भावनात्मक संबंध खत्म हो जाएगा और उन्होंने
आत्महत्या कर ली या फिर इस हारती बाजी का इतना गहरा सदमा उन्हें लगा कि
सोते सोते ही वे इस दुनिया को अलविदा कह गईं? क्या सुनंदा पुष्कर का वह
पुराना रोग फिर से उभर आया था जिसके कारण उन्होंने लोगों से बातचीत तक करना
बंद कर दिया था? दूसरे पति सुजीत मेनन की मौत के बाद सुनंदा पुष्कर ने
करीब तेरह साल अकेले रहते हुए बिताए थे। 2009 में शशि थरूर से दुबई में
मुलाकात के पहले उनकी वीरान जिन्दगी कम्युनिकेशन डिसाआर्डर का शिकार हो
चुकी थी।
सुनंदा पुष्कर की जिन्दगी एक नारी के संघर्ष की ऐसी कहानी है जो अपने दम
पर दुनिया में अपनी जगह बनाना चाहती है। मूलत: जमींदार कश्मीरी पंडित के
परिवार में पैदा हुई सुनंदा पुष्कर भी उसी तरह यायावर हो गईं जैसे बाद के
दिनों में अन्य कश्मीरी पंडित हुए। दिल्ली, दुबई और कनाडा में रहते हुए
उन्होंने इवेन्ट मैनेजमेन्ट से लेकर विज्ञापन जगत तक सब जगह अपना भाग्य
आजमाया। उनकी निजी जिन्दगी की त्रासद शुरूआत दिल्ली से होती है जब उनकी एक
कश्मीरी पंडित संजय रैना से शादी हो जाती है। 1988 में दोनों अलग हो जाते
हैं और सुनंदा अपनी आकांक्षाओं ओर अकेलेपन के साथ 1989 में दुबई चली जाती
हैं। दुबई में वे दूसरी बार 1991 में केरल मूल के सतीश मेनन से शादी करती
हैं और करीब छह साल साथ रहने के दौरान उन्हें एक बेटा भी होता है। दोनों
मिलकर दुबई और भारत में इवेन्ट मैनेजमेन्ट का काम करते हैं लेकिन 1997 में
दिल्ली में हुए एक सड़क हादसे में सतीश मेनन की मौत के बाद से सुनंदा की
जिन्दगी फिर से वीरान हो जाती है।
करीब तेरह साल की वीरानी के बाद उसी दुबई में उनकी मुलाकात शशि थरूर से
होती है जहां बीते साल मेहर तरार की थरूर से हुई मुलाकात के बाद दोनों के
निजी जिन्दगी में हालात बहुत बदतर होते जाते हैं। 2009 में शशि थरूर से
मुलाकात के साथ ही पहली बार सुनंदा पुष्कर भारत में चर्चित होती हैं। शशि
थरूर तब तक भारत के लिए अपरिचित नाम नहीं रह गये थे और दोनों ही ऐसे खुले
माहौल में जीवन जी रहे थे जहां प्यार समाज के डर से छिपाने या दबाने जैसी
कोई वस्तु नहीं हुआ करती है। भारत जैसे प्रेम दमित देश में सुनंदा और शशि
जल्द ही चटखारे के विषयवस्तु हो गये जिसे रोकने के लिए दोनों ने 2010 में
शादी कर ली। जब तक यह सब होता शशि थरूर का मंत्रिपद छिन चुका था। हालांकि
जल्द ही उन्हें मंत्रिपद वापस मिल गया लेकिन शायद थोड़े ही दिनों बाद दोनों
की जिन्दगी में मेहर तरार का प्रवेश हो जाता है।
सुनंदा की मौत के बाद भले ही मेहर आश्चर्य प्रकट कर रही हों और ट्विटर
पर आंसू बहा रही हों लेकिन अगर मनोवैज्ञानिक सही हैं तो संभावना इसी बात की
ज्यादा है सुनंदा भावनात्मक रूप से इतना टूट गई थीं अपनी सांसों को जोड़कर
नहीं रख पाईं। इसलिए सुनंदा की मौत पर पुलिसिया खोजबीन से ज्यादा जरूरी है
उस बात पर भी बहस हो जो भारत की सबसे बड़ी समस्या समझा जाता है। सुनंदा या
शशि थरूर कोई नौजवान नहीं थे कि उनके प्रेम को नादान कहकर किनारे रख दिया
जाता। दोनों वयस्क थे और अपनी अपनी जिन्दगी का अधिकांश हिस्सा जी चुके थे।
फिर भी, शायद उनमें जिन्दगी के प्रति ऐसी जिन्दादिली थी कि अधेड़ उम्र में
एक नया जीवन शुरू करने की पहल की। पचास साल की उम्र में बुढ़ाकर घर बैठ
जानेवाले देश को भले ही इसमें चटखारे लेने की चरम संभावना दिखाई देती हो
लेकिन ऐसी पहल के पीछे छिपी पीड़ा का इलाज भी जरूरी है।
सामाजिक रूप से भी।
और निजी तौर पर भी। शशि थरूर अपनी निजी जिन्दगी में सुनंदा को कब तक और
कितना बचाकर रखेंगे यह तो उनके विवेक पर निर्भर करता है लेकिन भावनात्मक
रिश्तों को मजाक न बनाने की दिशा में भारतीय समाज एक कदम भी आगे बढ़ता हैं
तो शायद यही सुनंदा पुष्कर को भावभीनी विदाई होगी।
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