आज देश भर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जा रहा है। कहीं पर कार्यक्रम की तैयारियां हो रही है, तो कहीं पर रंगीन मतदाता पहचानपत्र बांटे जा रहे हैं। मगर इनसब से इतर सवाल कई है। सवाल ये है कि रंगारंग कार्यक्रम और रंगीन कार्ड बांटने से क्या हम लोकतंत्र की उस शक्ति को हासिल कर सकते हैं जिसका मुख्य अधार पूर्ण मतदान में ही समाहीत है ?
हम भारत के नागरिक उच्चारण के साथ शुरू होने वाला संविधान का अध्याय आजके बदलते राजनीतिक स्वरूप में अब बेमानी लगने लगा है। सवाल भी खड़ा होता है कि क्योंन इस देश में अनिवार्य मतदान करने की कानून लागू किया जाय?
आज वोट देने की परंपरा जाति, धर्म की बेडि़यों में जकड़ी हुई है। ऐसे में आज हम सब को ये सपथ लेना होगा कि अपने देश की लोकतांत्रिक परंपराओं की मर्यादा को बनाए रखेंगे तथा स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निर्वाचन की गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए निर्भीक होकर धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय, भाषा अथवा अन्य किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना सभी निर्वाचनों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
गुजरात में स्थानीय निकायों और पंचायत संस्थाओं में मतदान अनिवार्य करने संबंधी विधेयक गुजरात विधान सभा पहले हीं पारित कर चुका है। गुजरात देश में इस तरह का विधेयक पारित करने वाला पहला राज्य बन गया है। ऐसे में आज देश की संसद को भी अनिवार्य मदतादान करने संबंधि कानून बनाने कि जरूरत है। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने मतदान को अनिवार्य किए जाने की पैरवी पहले हीं कर चुके हैं।
आज देश में एक प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल मतों के मात्र 25 फीसदी मत पाकर जीत हासिल कर लेता है। जबकि जीतने वाला उमीवार 75 फिसदी जनता के उमीदों के विपरीत कार्य करने के लिय योग्य होजाता है। तो ऐसे सवाल ये है कि क्या आज हम लोकतांत्रिक व्यवस्था का पूर्ण रूप से सहभागी बन पाये हैं?
किसी भी देश के लोकतंत्र की सार्थकता तभी है जब शत-प्रतिशत मतदान से जनप्रतिनिधि चुने जाएं। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में यह आकड़ा 20 प्रतिशत तक भी रहा है। आज दुनिया के 32 लोकतांत्रिक देशों में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था लागू है।
अनिवार्य मतदान से देश के अंदर मतदाताओं के किसी एक समुदाय को लामबंद करने के लिए जाति या संप्रदाय का कार्ड खेलने से भी बचाया जा सकता है। आज देश में 18 से 25 वर्ष की उम्र के मतदाताओं में से 70 फीसदी ने अपने आप को मतदाता सूचियों में नाम दर्ज ही नहीं करवाया जाये हैं। ऐसे में हम एक स्वच्छ लोकतंत्र की कल्पना कैसे कर सकते हैं। तो फिर सवाल खड़ा होता है कि क्या मतदान अनिवार्य किया जाय?
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