26 January 2014

राष्ट्रीय त्योहारों पर राजनीति क्यों ?

                                               पावन है गणतंत्र यह, करो खूब गुणगान।
                                              भाषण-बरसाकर बनो, वक्ता चतुर सुजान॥

जी हां, कुछ इसी अंदाज में आज गड़तंत्र दिवस की गुणगान राजनीति हलकों में होने लगी है। गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वादों की परिणीति मोहभंग में होती हैं। जिससे गुस्सा पैदा होता है और गुस्से का एक ही लक्ष्य होता है, वो जो सत्ता में हैं। जनता का गुस्सा तभी कम होगा जब सरकारें वो करेंगी जो करने के लिए उन्हें चुना गया है। बड़बोले लोग जो हमारी रक्षा सेनाओं पर शक करते हों गैरजिम्मेदार हैं और उनका सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं है। प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा चुनावों को लेकर कहा कि खिचड़ी सरकार विनाशकारी हो सकती है।

राष्ट्रपति के इस तीखे बयान पर भला आम आदमी पार्टी कहां चुप रहने वाली थी। झट से जवाब भी आगया। आप पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि राष्ट्रपति के भाषण में इसतरह की बातें उत्तर प्रदेश और गुजरात के बारे में कही गई है। राष्ट्रपति त्योहारों पर राजनीति कोई नई बात नहीं है। इससे पहले 2011 में भाजपा नेताओं को सिर्फ इसलिए हिरासत में लिया गया था, क्योंकि ये लोग श्रीनगर के लाल चैक पर तिरंगा फहराना चाहते थ। इस घटना के बाद उमर अब्दुल्ला सरकार की जमकर आलोचना हुई थी। जिसके बाद भाजपा नेता नितिन गडकरी ने कहा था कि तिरंगा फहराने पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

आज इस राष्ट्रीय पर्व पर अरविंद केजरीवाल भी राजनीति करने में आगे दिखे। केजरीवाल एक मुख्यमंत्री होते हुए भी हमेशा की तरह सादे कपड़े में मफलर बांधे राजपथ पर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में शामिल हुए। जबकी इस मौके पर एक मुख्यमंत्री को सफेद कपड़ा पहनना चाहिए। साथ ही केजरीवाल ने गणतंत्र दिवस परेड को लेकर पहले हीं अपना विरोध जताया था। केजरीवाल ने कहा था कि कुछ वीआईपी लोगों को देखने के लिए निकलने वाली झांकियों से आम आदमी को कोई सरोकार नहीं है। तो ऐसे सवाल केजरीवाल के दावे को लेकर उठता है कि अपने आप का आम अदमी बताने वाले केजरीवाल वीआईपी लोगों के समूह में क्यों शामिल हुए?

इस मौके पर एक राजनीति और देखने को मिली। कर्नाटक राज्य की झांकी में टीपू सुल्तान को हाथ में तलवार लिए दिखाया गया। ये वही टीपू सुल्तान है जिसने बारह हजार से अधिक हिन्दुओं को इ्रस्लाम से धर्मान्तरित किया। तथा लाखों कि संख्या में बन्दी बना कर वध करने का हुक्म दिया था। साथ ही 20 वर्ष से कम आयु के एक खास समुदाय को जेल में रखा और पेड़ से लटकाकर मार डाला। ऐसे में टीपू सुल्तान हमारे राष्ट्रीय पर्व का हिस्सा कैसे हो सकता है। क्या ये एक खास समुदाय को लुभाने की राजनीति नहीं है? तो सवाल खड़ा होता है राष्ट्रीय त्योहारों पर राजनीति क्यों?

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