13 April 2021

पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा का इतिहास

बंगाल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं है. पश्चिम बंगाल का राजनीतिक हिंसा से पुराना नाता रहा है. हिंसा की ज़्यादातर मामलों में सत्ताधारी तृणमूल से लेकर लेफ्ट पार्टी और उसके कार्यकर्ता शामिल रहे हैं. अकेले बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र में पाँच नेताओं और कार्यकर्ताओं की हाल ही में हत्याएँ हो चुकी है. पूरे ज़िले में कम-से-कम 30 हत्याएँ हुई  हैं. बीजेपी ने अब तक टीएमसी के ख़िलाफ़ 1 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज करवा चुकी है. चार बार भाटपाड़ा सीट से टीएमसी के विधायक रहे अर्जुन सिंह ने 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बैरकपुर के सांसद बने. तब से लेकर अबतक उनपर अनेकों बार हमला होचुका है.


बंगाल में हिंसा की असल वजह है बंगाल की राजनीति में अब अपराधियों का दख़ल. इसमें बड़े पैमाने पर TMC, लेफ्ट और कांग्रेस जैसे दलों ने इनको राजनैतिक संरक्षण दिया है. आज यही अपराधिक छवि वाले नेता पूरे बंगाल को लहूलुहान कर रहे हैं. तृणमूल सरकार के सत्ता में आने के बाद से हिंसा इतनी बढ़ गई कि उसकी चर्चा पूरे देश दुनिया में होरही है. राजनीतिक हिंसा का अपना एक इतिहास रहा है. आज़ादी के बाद लगभग दो दशक तक राज्य में कांग्रेस का शासन रहा. मगर 60 के अंत और 70 के शुरुआती दशक में राज्य में वामपंथ का प्रभाव बढ़ने लगा. 


उस दौर में यहां उग्र वामपंथियों ने सरकार के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए. राज्य के दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी गाँव में 1967 में आदिवासी किसानों ने कम्युनिस्टों की अगुआई में हथियार उठा लिए और फिर अगले कई वर्षों तक राज्य के गाँवों से लेकर कोलकाता शहर तक में खून-ख़राबा होता रहा. नक्सल विद्रोह के बाद नक्सल और नक्सलाइट शब्द सरकार के ख़िलाफ़ बंदूक उठाने वालों के लिए इस्तेमाल होने लगा. 1972 में सिद्धार्थ शंकर रे की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी और इसके बाद हिंसा और बढ़ी. आख़िरकार 1977 में वाम मोर्चे ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और फिर अगले 34 सालों तक वो सत्ता में रहे. 2007-8 में बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार ने नंदीग्राम और सिंगुर में उद्योगों के लिए ज़मीनों के अधिग्रहण की कोशिश की जिसे लेकर विवाद भड़का. नंदीग्राम में पुलिस की गोली से 14 प्रदर्शनकारियों की जान गई.


ममता बनर्जी ने वाम सरकार के ख़िलाफ़ उपजे असंतोष को राजनीतिक आंदोलन की शक्ल दी और आख़िरकार 2011 में वाम मोर्चा की सरकार तो सत्ताविहीन होगई, मगर अब वही ममता की पार्टी अब पुराने राजनीतिक हिंसा की हथियार को अपना पॉलिटिकल पहरुआ बना लिया है. TMC ने एनसीआरबी के आँकड़ों के हवाले से राष्ट्रपति को एक दिया था, ज्ञापन में लिखा कि 2001 से 2011 के बीच वाममोर्चे के कार्यकाल में राज्य में 663 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं. मगर आज ममता बनर्जी और उनकी पार्टी TMC खुद हीं राजनीतिक हत्याओं की वर्ल्ड बना रही है.

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