अपराध की दुनिया में एक ऐसा नाम जिसने उत्तर प्रदेश का पूरा पूर्वी हिस्सा को खौफ और दहशत से भर दिया था. 1980 के दशक में पनपा माफियाराज ने गोरखपुर से वाराणसी और गाजीपुर तक फैला हुआ था. इस माफिया जगत की कहानी की शुरुआत होती है मकनू सिंह और साहिब सिंह के गैंग के बीच सरकारी ठेकों को पाने को लेकर. इन दोनों गैंग के बीच आए दिन गैंगवार जैसी घटना देखने को मिलती है थी.
2017 में जमा किए गए उनके अपने चुनावी शपथपत्रों के अनुसार उन पर फ़िलहाल देश की अलग-अलग अदालतों में हत्या, हत्या के प्रयास, हथियारबंद तरीक़े से दंगे भड़काने, आपराधिक साज़िश रचने, आपराधिक धमकियाँ देने, सम्पत्ति हड़पने के लिए धोखाधड़ी करने, सरकारी काम में व्यावधान पहुंचाने से लेकर जानबूझकर चोट पहुंचाने तक के 16 से ज्यादा केस अदालतों में चल रही हैं. मकोका यानि महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ़ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत 30 से ज़्यादा मुक़दमे मुख़्तार के नाम पहले दर्ज थे. इनमें से कुछ अहम मामलों में अदालत ने सबूतों की कमी, गवाहों के पलट जाने और सरकारी वकील की कमज़ोर पैरवी के कारण इन्हें बरी कर दिया गया. भाजपा के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत 16 गंभीर मामलों में इसपर अब भी मुक़दमे चल रहे हैं.
सिर्फ़ 8-10 प्रतिशत मुसलमान आबादी वाले ग़ाज़ीपुर में मुख़्तार अपने बाहुबल और बूथ कैप्चरिंग से चुनाव जीतता रहा. 1985 से अंसारी परिवार के पास रही गाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट 17 साल बाद 2002 के चुनाव में उनसे बीजेपी के कृष्णानंद राय जीत ली. मुख़्तार को कृष्णानंद की जीत रास नहीं आई उसने तीन साल बाद उनकी हत्या कर दी. एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे कृष्णानन्द कि तभी उनकी बुलेट प्रूफ़ टाटा सूमो गाड़ी को चारों तरफ़ से घेर कर अंधाधुंध फ़ायरिंग की गई. कृष्णानंद के साथ कुल 6 और लोग गाड़ी में थे. एके-47 से तक़रीबन 500 राउंड गोलियां चलाई गईं, सभी सातों लोग मारे गए.
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