13 April 2021

हिन्दू नववर्ष की प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही परम पिता परमात्मा ने यौवनावस्था प्राप्त मानव की प्रथम पीढ़ी को इस पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म दिया था. इस कारण यह मानव सृष्टि संवत्  भी है. इसी दिन परमात्मा ने अग्नि वायु आदित्य अंगिरा चार ऋषियों को समस्त ज्ञान विज्ञान का मूल रूप में संदेश क्रमशः ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद के रूप में दिया था. इस कारण इस वर्ष को ही वेद संवत् भी कहते हैं. आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई थी.


आज ही से कली संवत् तथा भारतीय विक्रम संवत् युधिष्ठिर संवत् प्रारंभ होता है. आज ही के शुभ दिन संसार के समस्त सनातन धर्म अनुयायियों का दैविक बल जगाने के लिए धर्मराज्यम् की स्थापना की गयी थी. इन सब कारणों से यह संवत् केवल भारतीय या किसी पंथ विशेष के मानने वालों का नहीं अपितु संपूर्ण विश्व मानवों के लिए है.


भारतवर्ष में इस समय देशी-विदेशी मूल के अनेक सम्वतों का प्रचलन है. किन्तु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की द्दष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय सम्वत यदि कोई है तो वह विक्रम सम्वत ही है. आज से 2072 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था. 


उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम सम्वत का भी आरम्भ हुआ था. प्राचीनकाल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था. 


राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया सम्वत चलाया. भारतीय कालगणना के अनुसार वसन्त ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है. वसन्त ऋतु में आने वाले वासन्तिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है.


विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर सम्वत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवन्दन करता है.

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