मंदिर की गुंबद देखते हीं मन में एक सुविचार उत्पन्न होता है कि आखिर इसके ऊपर कलश को क्यों स्थापित किया जाता है. इसके अनेकों लाभ और खूबियां हैं. उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्था:न के निदेशक डॉ जेजे सर ने वैज्ञानिक शोध के आधार पर बताया है की इसको देखने से मन को शांति मिलती है. दुनिया की थकान जब चूर कर देती है तब हम सब भगवान के दर पर जाते है. जहाँ से फिर से जीने की एक ऊर्जा मिल जाती है. मंदिरों पर स्थापित किये गए कलश एक अदृश्य शक्ति को प्रदान करता है. मन के साथ तन को भी करोड़ों तरंगों से झंकृत करता है. देव प्रतिमाओं की विशेष स्थातपना के अलावा मंदिर के कलश और गुंबद विशेष ऊर्जा देने वाले होते हैं.
मंदिर में कलश विधि पूर्वक स्थादपना के
बाद ही लगते हैं. जब कोई मंदिर में आकर प्रतिदिन मंत्र जाप करता है या नाद का
स्विर करता है तो उस मंत्र शक्ति का लगातार घर्षण होता है. उससे कलश और गुंबद के
अंदर घूम घूमकर मंत्रशक्ति की एक ऊर्जा बनती है। जो ऊर्जा संबंधित व्यक्ति जो
मंत्र कर रहा है उस पर सीधा प्रहार करके उसका उपचार करती है. इसके आलावा जो उसके आसपास
किसी तरह की कोई नकारात्म शक्ति होती है वो कलश के द्वारा समाप्तज हो जाती है.
मंदिर के कलश में चक्र हो होते हैं जोकि सात, तीन, दो, एक चक्र होते हैं. ये चक्र अलग- अलग ऊर्जाओं के लिए होते हैं. जैसे जो कठिन मंत्र होते हैं उनके अनुसार अलग ऊर्जा मिलती है. मंदिर की स्थापना अलग अलग राज्यों में अलग अलग प्रकार की होती है. जैसे उत्तिर भारत के मंदिरों की बनावट अलग और दक्षिण के मंदिरों की अलग होती है.
हर
स्थान पर मंत्र अलग- अलग स्वर के साथ गूंजते हैं और गूंजने के बाद एक माइक्रो पावर
बनता है जोकि शरीर के आकर्षण के लिए लाभदायक होता है. माइक्रो पावर गुंबद या कलश
के चक्र में जाकर सीधा नीचे की ओर चलता है और शरीर पर सीधा अपना प्रभाव छोड़ता है. मंदिर में मंत्र के उच्चारण और कलश के चक्र से मिलने वाली ऊर्जा जाप
करने वाले व्याक्ति के साथ उसके परिवार को भी मिलती है. ये ऊर्जा जींस के द्वारा उसके
परिवार को लाभांवित करती है. परिवार में कोई भी परेशानी हो वो दूर होती है.
कलश चांदी और सोने के होते हैं. सूर्य से पृथ्वीर पर पराबैंगनी किरणों के साथ अन्यस विभिन्नश ऊर्जावान किरणें भी गिरती हैं लेकिन पृथ्वील पर सिर्फ .0 फीसद ही रुक पाती हैं. बाकि सब वापस चली जाती हैं.
लेकिन कलश के व्यूह में जब किरणें पड़ती हैं तो विद्युत ऊर्जाचक्र बनकर शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए फिर से कोमल ऊर्जा के रूप में मंदिर में प्रवेश कर जाती हैं. इस प्रवेश के कारण व्यक्ति जिस कार्य को लेकर मंत्र, आरती, प्रार्थना या प्रणाम करता हैं उसे इष्टक जल्दी स्वीकार कर लेते हैं.
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