आज देश और दुनिया की बहस का केंद्र
बिन्दू कोरोना वायरस और ऑक्सीजन की कमी बना हुआ है. मगर आज दुनिया इसके मूल कारणों
को नहीं देख रही है. इस भौतिकवादी युग ने लोगों को पृथ्वी के प्रति इतना बेपरवाह
और लचार बना दिया है की चारों ओर त्राहिमान मचा हुआ है. ऐसे में कोरोना वायरस ने
एक और बात साबित कर दी है कि केवल भौतिक सुख-सुविधा के साथ जीवन सुखमयी नहीं हो
सकता. आप का संयम, संकल्प और संतुष्टि ही आप के जीवन को सुखी बनाती है. आज संकट की इस
घड़ी में बड़े बंगले, गाडिय़ां और कारखाने बेमतलब से लग रहे हैं. अपनी चादर से बाहर पैर
फैलाने वालों की स्थिति दयनीय होती जा रही है और जिसने चादर के अंदर ही अपने पांव
रखे थे वह आज अपने को सुखी मान रहा है
भोगवादी सुख-सुविधा आज के जीवन की प्राथमिकता जरुरत बन
चुकी है. कोरोना वायरस ने विश्व भर में पृथ्वी और पर्यावरण के महत्व को एक बार
पुन: स्थापित किया है. पृथ्वी के महत्व पर मानव को पुनर्विचार करने के लिए भी
मजबूर किया है. आज कोरोना के भय के कारण पृथ्वी के महत्व का एहसास लोगों को हो रहा
है.
कोरोना वायरस के कारण ही आज विश्व भर में भारतीय जीवनशैली, भारतीय संस्कृति का सकारात्मक पहलू सामने आ रहा है. वृक्षों, नदियों और पशु-पक्षियों के साथ तालमेल बिठाकर ही नहीं बल्कि उनकी पूजा करने के पीछे की जो सोच या भाव थे आज भारतीयों के यह भाव दुनिया को समझ आ रहे हैं. कोरोना वायरस ने साबित कर दिया है कि युगों पहले हमारे पूर्वजों ने दुनिया को जो संदेश दिया था कि ‘परमार्थ ही धर्म है और स्वार्थ अधर्म है’. कोरोना वायरस की लड़ाई पर विजय भी हिन्दू जीवन शैली के रास्ते पर चलकर संभव होसकता है.
वेदों में प्रार्थना है कि सभी निरोगी रहें, सभी सुखी रहें, सभी ओर शांति रहे आज भी, इन्हीं बातों को स्वीकार कर हमें हर ओर भले के लिए कर्म करना होगा. तभी हमारा वर्तमान और भविष्य सुरक्षित होगा, यह संदेश भी कोरोना वायरस दे रहा है. ऐसे में आइये और हिन्दू जीवन शैली को अपना कर पृथ्वी और मानव जीवन की रक्षा कीजिये.
विश्व पृथ्वी दिवस पर जानकारी
22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की
शुरूआत अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने की थी
वर्ष 1969 में सांता बारबरा कैलिफोर्निया में तेल रिसाव की भारी बर्बादी देखकर इसकी शुरुआत करने का निर्णय लिया
पृथ्वी दिवस वर्ष 1990 से अंतरराष्ट्रीय दिवस के रुप में मनाया जाने लगा
पृथ्वी के 40 प्रतिशत हिस्से पर सिर्फ छह देश हैं।
पृथ्वी पर 97 प्रतिशत पानी खारा है और मात्र 3 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है
पृथ्वी की आकृति अंडाकार है, घुमाव के कारण पृथ्वी भौगोलिक अक्ष में चिपटा हुआ और भूमध्य रेखा के आसपास उभार लिया हुआ प्रतीत होता है
पृथ्वी के वातावरण मे 77 प्रतिशत नायट्रोजन, 21 प्रतिशत आक्सीजन, और कुछ मात्रा मे आर्गन, कार्बन डाय आक्साईड और जल वाष्प है
पृथ्वी के वायुमंडल की कोई निश्चित सीमा नहीं है, यह आकाश की ओर धीरे-धीरे पतला होता जाता है और बाह्य अंतरिक्ष में लुप्त हो जाता है
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा है
पृथ्वी के 11 प्रतिशत हिस्से का उपयोग भोजन उत्पादन करने में होता है
पृथ्वी अपनी धुरी पर 1600 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से घूम रही है
पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द 29 किलोमीटर प्रति सेकिण्ड की रफ्तार से चक्कर लगा रही है
पृथ्वी पर हर स्थान पर गुरूत्वाकर्षण एक जैसा नहीं है
भारतीय जीवन शैली का महत्व
भोगवादी युग ने लोगों को पृथ्वी के
प्रति बेपरवाह बना दिया है
भौतिक सुख-सुविधाओं ने जीवन को संकट
में डाल दिया है
भोगवादी सुख-सुविधा आज के जीवन की प्राथमिकता जरुरत बन
चुकी है
कोरोना वायरस ने विश्व को पर्यावरण के प्रति
लापरवाही को उजागर किया है
पृथ्वी के महत्व पर मानव को पुनर्विचार
करने के लिए भी मजबूर किया है
कोरोना के कारण पृथ्वी के महत्व का
एहसास लोगों को हो रहा है
विश्व भर में भारतीय जीवनशैली का सकारात्मक पहलू सामने आ रहा है
वृक्षों, नदियों और पशु-पक्षियों के साथ तालमेल बिठाकर चलना हिन्दू जीवन शैली
उनकी पूजा करने के पीछे की सोच और भाव
आज दुनिया को समझ आ रहा है
कोरोना वायरस की लड़ाई पर विजय हिन्दू जीवन शैली के रास्ते हीं संभव है
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