भारत की सनातन संस्कृति में प्रतीक
चिन्हों का सबसे ज्यादा महत्व है. प्रतीक चिन्हों में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं
ध्वज और पताका. पताका त्रिकोणाकार होती है जबकि ध्वज चतुष्कोणीय होता है. प्राचीन
काल में प्रत्येक घर के ऊपर ध्वज लगाने की परंपरा रही है, लेकिन अब यह परंपरा केवल मंदिरों तक
सिमटकर रह गई है. हमारे ऋषि मनीषियों ने कोई भी परंपरा यूं ही नहीं बनाई, उसके पीछे एक रहस्य, तर्क और विज्ञान छुपा हुआ है, ध्वजा लगाने के अपने नियम और लाभ होते
हैं.
भगवा ध्वज हिंदू परंपरा में भगवा ध्वज लगाने का महत्व है. दरअसल भगवा, केसरिया या सिंदूरी रंग ऊर्जा, शौर्य, आध्यात्मिकता, सात्विकता का प्रतीक है. इसमें सूर्य का तेज समाया हुआ है. महाभारत के युद्ध में भी अर्जुन के रथ पर भगवान कृष्ण ने केसरिया ध्वज लगवाया था, जिस पर प्रतीक के रूप में हनुमानजी का चित्र अंकित था. वेद, उपनिषद, पुराण श्रुति भी ध्वज का महत्व बताते हैं.
संतगण इसकी ओंकार, निराकार या साकार की तरह पूजा अर्चना करते हैं। यही कारण है कि देवस्थानों पर सिंदूरी रंग के ध्वज का ही प्रयोग होता है. किसी भी शुभ कार्य में ध्वज लगाने की परंपरा भी रही है. चाहे गृह प्रवेश हो, पाणिग्रहण संस्कार हो या अन्य कोई हिंदू रीति-रिवाज, पूजा पर्व, उत्सव हो घर के शिखर पर ध्वजा फहराई जाती है. ध्वजा का महत्व केवल हिंदू पूजा पद्धति में ही नहीं है, बल्कि यह वास्तु दोष दूर करके घर को नकारात्मक शक्तियों से बचाने का कार्य भी करता है.
यदि घर की छत पर केसरिया ध्वजा लगाई जाए तो बुरे ग्रहों के दोष समाप्त हो जाते हैं। विजय का प्रतीक है ध्वज ध्वजा को सकारात्मकता और विजय का प्रतीक माना गया है। इसीलिए प्राचीनकाल से युद्ध के बाद विजय पताका फहराने की परंपरा रही है। वास्तु के अनुसार ध्वजा को शुभता का प्रतीक माना गया है। घर की छत पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है.
घर बुरी नजर से बचा रहता है. घर के उत्तर-पश्चिम कोने में यदि ध्वजा लगाई जाए तो यह वास्तु की दृष्टि से अत्यंत शुभ होता है इससे उत्तर-पश्चिम दिशा से संबंधित समस्त वास्तु दोष दूर हो जाते हैं. इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता घर के भीतर उत्तर-पूर्व दिशा में केसरिया ध्वज लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है. भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है.
यही श्रीराम, श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथों पर फहराया जाता था और छत्रपति शिवाजी सहित सभी मराठों की सेनाओं का भी यही ध्वज था. यह धर्म, समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है. इन अनेक गुणों से सम्मिलित है अपना यह भगवा ध्वज.
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