बाबासाहेब
के नज़रों में ईसाई-मुस्लिम
बाबासाहेब मानते थे कि इस्लाम में कट्टरता का बोलाबाला है और यहां भी दलित हाशिये पर हैं
इस्लाम
में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है
मुसलमान
संकीर्ण वर्ग है वो हिंदू धर्म की तरह उदार नहीं सोचता है
अंबेडकर
ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश का भाग्य तब बदलेगा जब हिंदू समाज एकजुट होगा
अंबेडकर
का कहना था कि इस्लाम धर्म के नाम पर जो राजनीति हो रही है वह हिंदू धर्म के लिए
खतरनाक है
इस्लाम
की राजनीति सिर्फ अपने स्वार्थ तक और जातियों तक सीमित है
अंबेडकर
इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंतित
डॉ.
अंबेडकर ईसाई धर्मांतरण का विरोध करते है
उनका
मानना था की सबसे अधिक धर्मांतरण के शिकार दलित समुदाय होरहा है
डॉ.
अम्बेडकर ने चाटुकारों तथा वामपंथी इतिहासकारों को फटकारते हुए लिखा है कि मुस्लिम
आक्रमणकारी केवल लूट के उद्देश्य से आए थे
डा.अम्बेडकर
ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि इनका उद्देश्य हिन्दुओं में मूर्ति पूजा तथा
बहुदेववाद की भावना को नष्ट कर भारत में इस्लाम की स्थापना करना था
डा.अम्बेडकर
कहा था कि इस्लाम विश्व को दो भागों में बांटता है, जिन्हें वे दारुल-इस्लाम तथा दारुल हरब
मानते हैं
जिस
देश में मुस्लिम शासक है वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है
इसी
भांति वे मानवमात्र के भातृत्व में विश्वास नहीं करते
उनके
अनुसार मुसलमान भारत की अपनी मातृभूमि मानने की स्वीकृति कभी नहीं देगा
अबेडकर
ने इस्लाम और इसाईयत को विदेशी मजहब माना है
अबेडकर
इसाईयत को भारत के लिए खतरा बताया है
बाबासाहेब के विचार
कानून
और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर
दी जानी चाहिए
एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह
समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है
मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए
हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि 'एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता' को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना
चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता
इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता
है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है
निहित
स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो
बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए
समानता
एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत
रूप में स्वीकार करना होगा
मनुष्य
नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं, एक विचार
को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे
कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं
पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना
चाहिए
जब
तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून
आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं
जीवन
लंबा होने की बजाए महान होना चाहिए
बाबासाहेब का सिद्धांत
डॉ. भीमराव जी एक ऐसी राजनीतिक
व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक
अवसर दें
बाबासाहेब चाहते थे कि धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए
उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक
आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी, तब
तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकेगी
बाबासाहेब कहते थे कि संवैधानिक अधिकार
देने मात्र से जनतंत्र की नींव पक्की नहीं होती
डॉ. आंबेडकर जी समानता को लेकर काफी
प्रतिबद्ध थे. उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए
प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान
अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए
अगर समाज इस दायित्व का निर्वहन नहीं
कर सके तो उसे बदल देना चाहिए
डॉ. आंबेडकर भारतीय समाज में स्त्रियों
की हीन दशा को लेकर काफी चिंतित थे
उनका मानना था कि स्त्रियों के
सम्मानपूर्वक तथा स्वतंत्र जीवन के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है
अम्बेडकर ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया
दलित मूवमेंट और वर्तमान स्थिति
बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के नाम पर राजनीति में अब रावण जैसे लोगों के अनुयायी आगए हैं.
दलित आन्दोलन का नेतृत्व विदेशी शक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गई है
आज का दलित नेतृत्व किसी भी धर्मांतरण का विरोध नहीं करता है
ऐसे में दलितों की संख्या में भारी कमी आई है
असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों के साथ दलित नेताओं को देखकर दलित समुदाय गुमराह होता है
दलित नेता बड़ा बनते हीं अपने परिवार को सिर्फ आगे बढ़ाता है और गरीब दलित भाइयों को भूल जाता है
दलित नेता जब बड़ा आदमी बनता है तब वह सिर्फ अपने ही परिवार के लोगों को उसका लाभ पहुंचाता है
बड़ा आदमी बनने के बाद दलित नेता अपने सामाज के वंचित लोगों के साथ न्याय नहीं करता है
दलित के नाम पर राजनीति करने वाले दल आज खुद अपने परिवारों तक सिमट कर रह गए हैं.
दलित नेता तो बड़े और आमिर होगए परन्तु सामान्य
दलित वर्ग आज भी गरीब है
कुछ महत्वपूर्ण सवाल
क्या दलित मूवमेंट अब बाबासाहेब के रास्ते पर होने का कोई दावा दलित नेता कर सकता है ?
बाबासाहेब ने जिस दलित-मुस्लिम गठजोड़ का जीवन भर विरोध किया उसे नज़र अन्दाज़ करने वालों को बाबासाहेब का नाम लेने का अधिकार है ?
बाबासाहेब ने जिस ईसाई धर्मांतरण का जीवनभर विरोध किया उसे गले लगाने वाले दलित नेता कैसे हो सकते हैं ?
आज जो भी दलित नेता बड़ा बन जाता है वह स्वयं दलितों का शोषण करता है, वह केवल परिवार को आगे बढ़ाना चाहता हैं, दलित समाज को क्यों नहीं ?
बाबासाहेब के मूल सिद्धांतों पर दलित मूवमेंट क्यों नहीं होता ?
समता का सिद्धांत क्या किसी दलित नेता ने आजतक स्वयं पालन किया है ?
गांधी जी और बाबासाहेब के विचार कभी मेल नहीं खाए परंतु सम्पूर्ण दलित नेतृत्व गांधी परिवार के गुलामी में क्यों लगा रहा ?
बाबासाहेब ने आरक्षण केवल हिंदू समाज के जातियों में देने का समर्थन किया था, तो फिर अन्य धर्मों के लोगों को आरक्षण कैसे मिल रहा है ?
बाबासाहेब के नाम पर राजनीति करने वाले मुस्लिम और ईसाईयों को आरक्षण का समर्थन दलित नेता कैसे कर रहे हैं ?
बाबासाहेब ने आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए दिया था, मगर दलित ने नाम पर राजनीति करने वाले उसे कब तक जारी रखेंगे ?
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