मुंबई पुलिस की बेतूका फरमान एक बार फिर सामने आई है। जिसे सुन कर आप भी हैरान रह जाएंगें। जी हां अब मुंबई के थानों में भगवान की मूर्तियां और तस्वीरें नहीं रहेंगी। न ही थाना परिसरों में पूजापाठ होगी और न उत्सव मनाए जाएंगे। पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह ने सभी थानेदारों को मूर्तियां-तस्वीरें हटाने के निर्देश दिए थे। इस काम के लिए तय समय सीमा समाप्त हो चुकी है, लेकिन महानगर के कुल 92 थानों में से महज 20 फीसद थानों ने पुलिस आयुक्त के निर्देश का पालन किया है। पुलिस आयुक्त कार्यालय से दो अप्रैल को जारी निर्देश पत्र में कहा गया था कि किसी भी सरकारी दफ्तर, विशेष कर पुलिस विभाग में किसी धर्म विशेष से जुड़ी तस्वीरें एवं मूर्तियां नहीं लगाई जानी चाहिए। पूजापाठ व उत्सव भी नहीं मनाया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना जन्म लेती है। उन्हें यह लग सकता है कि धर्म विशेष में आस्था रखने वाला पुलिस विभाग उनके साथ न्याय नहीं कर सकता। इससे समाज में द्वेष की भावना पैदा हो सकती है।
पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह की इस आदेष से कई अहम सवाल खड़े हो रहे है, की क्या मुंबई पुलिस को पूजा पाठ करने की अजादी नहीं है। क्या इससे हिन्दु धर्म के लोगों का आक्रोष नहीं बढ़ेगा? क्या ये संविधान के अनुच्छेद 25 का उलंघन नहीं है, ये अनुछेद किसी भी धर्म को समानता का अधिकार प्रदान करता है, और अपने धर्म को प्रचार प्रसार करने कि पूर्ण अजादी प्रदान करता है, तो एैसे में आखिर मुंबई पुलिस के आयुक्त किस अधार पर भेदभाव कर रहे है, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है। मुंबई के पुलिस थानों में लगाए गए भगवान की मूर्तियां किसी धार्मिक संगठ की ओर से या किसी के दबाव में नहीं रखी गई बल्कि खुद पुलिस थानों की अधिकारीयों और कर्मचारियों की ओर से स्थापित की कई है। देष की सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुकी है की हिन्दुत्व सिर्फ एक धर्म ही नहीं बल्कि जीवन जीने की एक कला है, जो किसी भी व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने की रास्ता दिखाती है। देश में ये कोई पहला एैसा वाक्या नहीं है जब इस तरह की आदेष जारी की गई हो, एैसी घटना को बार बार इसलिए भी दोहराया जा रहा है ताकी हिन्दु धर्म को समाप्त किया जा सके।
पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह की इस आदेष से कई अहम सवाल खड़े हो रहे है, की क्या मुंबई पुलिस को पूजा पाठ करने की अजादी नहीं है। क्या इससे हिन्दु धर्म के लोगों का आक्रोष नहीं बढ़ेगा? क्या ये संविधान के अनुच्छेद 25 का उलंघन नहीं है, ये अनुछेद किसी भी धर्म को समानता का अधिकार प्रदान करता है, और अपने धर्म को प्रचार प्रसार करने कि पूर्ण अजादी प्रदान करता है, तो एैसे में आखिर मुंबई पुलिस के आयुक्त किस अधार पर भेदभाव कर रहे है, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है। मुंबई के पुलिस थानों में लगाए गए भगवान की मूर्तियां किसी धार्मिक संगठ की ओर से या किसी के दबाव में नहीं रखी गई बल्कि खुद पुलिस थानों की अधिकारीयों और कर्मचारियों की ओर से स्थापित की कई है। देष की सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुकी है की हिन्दुत्व सिर्फ एक धर्म ही नहीं बल्कि जीवन जीने की एक कला है, जो किसी भी व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने की रास्ता दिखाती है। देश में ये कोई पहला एैसा वाक्या नहीं है जब इस तरह की आदेष जारी की गई हो, एैसी घटना को बार बार इसलिए भी दोहराया जा रहा है ताकी हिन्दु धर्म को समाप्त किया जा सके।
ये सड्यंत्र देष में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में राजनीति करने वाली पार्टीयों के दबाव में भी किया जा रहा है। ताकी इसे चुनाव में मुद्दा बनाया कर अपने आप को सेकुलर साबित कर सके। भगवान की मूर्ति सिर्फ महाराश्ट्र के पुलिस थानों में ही नहीं है, इस तरह के पूरे देश भर के थानों में भगवान की मूर्ति मौजूद है, तो क्या इसका मतलब देश भर के पुलिस थानों से भगवान की मूर्ति हटाना चाहिए। मगर अब तक महाराश्ट्र के अलावे किसी और राज्य के पुलिस आयुक्त की ओर से कभी भी कोई आपती जारी नहीं की गई, तो फिर एैसा मुंबई पुलिस आयुक्त क्यों कर रहे है, इसका जावाब खुद मुंबई पुलिस आयुक्त को देना होगा।
महाराश्ट्र के साथ साथ देश भर के कई एैसे पुलिस थानें है जहा पर हिन्दु देवी देवताओं की मंदिर मौजूद है, तो क्या वहा की लागों को न्याय नहीं मिलती है। पुलिस को धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए क्या उसे हटा देना चाहिए? इतना ही नहीं देश में आज भी कई एैसे पुलिस थाना खुद देवी देवताओं के स्थान पर बने हुए है जहा पर वहा के स्थानीय लोग नियमीत रूप से पूजा पाठ करते है, क्या उनके उपर पूजा पाठ करने पर प्रतिबंध लगा देना देना चाहिए। ये तमाम एैसे सवाल है जो खुद मुंबई पुलिस आयुक्त के बेतूके फरमान पर खड़े होने लगे है। तो क्या एैसे में पुलिस थानों से भगवान के मूर्ति को हटाना सही है?
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