जीवन का अधार कही जाने वाली रामायण आज हम सब से दूर होती जा रहा है। राम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश, मेरे दिल के भीतर का प्रकाश। आप के भीतर का ओज ही राम है। 1987 का एक दौर था जब हर घर में दूरदर्षन के माध्यम से रामायण की गूंज सुनाई देती थी, सदियों से हर हिन्दुस्तानी के दिलों में रमने वाले राम की काल्पनिक छाया एक राम राज की ओर लोगों को दिषा दे रही थी, और अर्यावर्त की एक नई सुबह फिर से हिन्दुस्तान को अपने सांस्कृतिक विरासत में नई जोष भर चुकी थी। मगर आज हम उस राम को भूला दिए है, स्वार्थ और भौतिकवाद इस कदर हावी हो चुकी है की आज राम का जगह रावण ले चुका है। मर्यादा पुरूशोत्तम राम की आदर्ष जीसे हर मनुश्य अपने जीवन का मूल कर्तब्य मानता है, जिसका नाम सुबह षाम हर कोई जापता है, आज उसे आधुनिकता की आंधी उड़ा कर पंष्चमी चाल चलन की मैली मिट्टी हमेषा के लिए उसे दफन कर दी है। तो ऐसे सवाल भी खड़े हो रहे है की क्या आज वाकई हम सब रामायण से दूर हो रहे है।
जिस रामायण की कहानी ने 100 मिलियन से अधिक दर्शकों को आकर्षित किया था। आज उसे कोई देखना नहीं चाहता है। रामायण भारत और विश्व टेलिविजन इतिहास में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया था। सीता को राम की सेविका और उनकी हर आज्ञा को आंख मूंदकर स्वीकार करने वाली पत्नी की आदर्ष हर औरत अपनी नैतिक कर्तब्य मानती थी। मगर आज हर नारी सीता की आदर्षो को सिर्फ एक कहानी मात्र बताकर खुद को आधुनिक दिखाने की होड़ में विष्वास करने लगी है। यही कारण है की रामायण और राम हम सब से दूर हो गये है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि, ‘यदि तुम मुझ से सब कुछ छीन लो तो मैं जी सकता हूं, लेकिन यदि तुम मुझसे राम को दूर ले जाओगे तो मैं नहीं रह सकता।
रामायण पौराणिक ग्रंथों में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब है। रामायण सिर्फ एक कथा अवतार या कालखंड ही नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का रास्ता बताने वाली सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है। रामायण हर एक रिश्तों पर लिखा गया है, हर रिश्ते की आदर्श स्थितियां, किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करें, विपरित परिस्थिति में कैसे व्यवहार करें, ऐसी सारी बातें हैं। जिसे आज हम सब को सबसे जयादा जरूरत है, मगर युवा पीढ़ी इन ग्रन्थों को पढ़ना तो दूर देखना नहीं चाहता है। उसे सिर्फ विदेषी प्रकाषकों की मनगणंत कहानीय जयादा रोजक लगती है। वही दुसरी ओर माता पिता अपने बच्चों को संस्कृत और हिन्दी पढ़ाने के बजाय उसे अंग्रेजी पढ़ाना पसंद करते है जिसके कारण धर्म और अघ्यात्म आज हमारे घर और समाज से दूर होते जा रहा है। जिसे आज हमे अपने जीवन में अपनाकर उसे बेहतर बनाने की जरूरत है। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की क्या रामायण से हम दूर हो रहे है ?
रामायण की आदर्श और हमारे जीवन में उसकी उपयोगिता !
- दशरथ ने अपनी दाढ़ी में सफेद बाल देखकर तत्काल राम को युवराज घोषितकर उन्हें राजा बनाने की घोषणा भी कर दी। हम जीवन में अपनी परिस्थिति, क्षमता और भविष्य को देखकर निर्णय लें। कई लोग अपने पद से इतने मोह में रहते हैं कि क्षमता न होने पर भी उसे छोडना नहीं चाहते।
- राजा बनने जा रहे राम ने वनवास भी सहर्ष स्वीकार किया। जीवन में जो भी मिले उसे नियति का निर्णय मानकर स्वीकार कर लें। विपरित परिस्थितियों के परे उनमें अपने विकास की संभावनाएं भी तलाशें। परिस्थितियों से घबराएं नहीं।
- सीता और लक्ष्मण राम के साथ वनवास में भी रहे, जबकि उनका जाना जरूरी नहीं था। ये हमें सिखाता है कि किसी की परिस्थितियां बदलने से हमारी उसके प्रति निष्ठा नहीं बदलनी चाहिए। हमारी निष्ठा और प्रेम ही हमें ऊंचा पद दिलाते हैं।
- भरत ने निष्कंटक राज्य भी स्वीकार नहीं किया, राम की चरण पादुकाएं लेकर राज्य किया। हमारा धर्म अडिग होना चाहिए। अधिकार उसी चीज पर जमाएं जिस पर नैतिक रूप से आपका अधिकार हो और आप उसके योग्य हों। भरत ने खुद को हमेशा राम के अधीन समझा, इसलिए जो राजा पद राम को मिलना था, उसे भरत ने स्वीकार नहीं किया।
- राम ने सुग्रीव से मित्रता की, सुग्रीव को उसका राज्य और पत्नी दोनों दिलवाई। आप भी जीवन में मित्रता ऐसे व्यक्ति से करें, जो आपकी परेशानी, आपके दुरूख को समझ सके।
- राम हमेशा भरत की प्रशंसा करते, उसे ही अपना सबसे प्रिय भाई बताते, जबकि राम के साथ सारे दुरूख लक्ष्मण ने झेले, इसके बावजूद भी लक्ष्मण ने कभी इसका विरोध नहीं किया। आप कोई भी काम करें तो उसे कर्तव्य भाव से करें, प्रशंसा की अपेक्षा न रखें, प्रशंसा की इच्छा हमेशा काम से विचलित करती है।
जिस रामायण की कहानी ने 100 मिलियन से अधिक दर्शकों को आकर्षित किया था। आज उसे कोई देखना नहीं चाहता है। रामायण भारत और विश्व टेलिविजन इतिहास में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया था। सीता को राम की सेविका और उनकी हर आज्ञा को आंख मूंदकर स्वीकार करने वाली पत्नी की आदर्ष हर औरत अपनी नैतिक कर्तब्य मानती थी। मगर आज हर नारी सीता की आदर्षो को सिर्फ एक कहानी मात्र बताकर खुद को आधुनिक दिखाने की होड़ में विष्वास करने लगी है। यही कारण है की रामायण और राम हम सब से दूर हो गये है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि, ‘यदि तुम मुझ से सब कुछ छीन लो तो मैं जी सकता हूं, लेकिन यदि तुम मुझसे राम को दूर ले जाओगे तो मैं नहीं रह सकता।
रामायण पौराणिक ग्रंथों में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब है। रामायण सिर्फ एक कथा अवतार या कालखंड ही नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का रास्ता बताने वाली सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है। रामायण हर एक रिश्तों पर लिखा गया है, हर रिश्ते की आदर्श स्थितियां, किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करें, विपरित परिस्थिति में कैसे व्यवहार करें, ऐसी सारी बातें हैं। जिसे आज हम सब को सबसे जयादा जरूरत है, मगर युवा पीढ़ी इन ग्रन्थों को पढ़ना तो दूर देखना नहीं चाहता है। उसे सिर्फ विदेषी प्रकाषकों की मनगणंत कहानीय जयादा रोजक लगती है। वही दुसरी ओर माता पिता अपने बच्चों को संस्कृत और हिन्दी पढ़ाने के बजाय उसे अंग्रेजी पढ़ाना पसंद करते है जिसके कारण धर्म और अघ्यात्म आज हमारे घर और समाज से दूर होते जा रहा है। जिसे आज हमे अपने जीवन में अपनाकर उसे बेहतर बनाने की जरूरत है। तो एैसे में सवाल खड़ा होता है की क्या रामायण से हम दूर हो रहे है ?
रामायण की आदर्श और हमारे जीवन में उसकी उपयोगिता !
- दशरथ ने अपनी दाढ़ी में सफेद बाल देखकर तत्काल राम को युवराज घोषितकर उन्हें राजा बनाने की घोषणा भी कर दी। हम जीवन में अपनी परिस्थिति, क्षमता और भविष्य को देखकर निर्णय लें। कई लोग अपने पद से इतने मोह में रहते हैं कि क्षमता न होने पर भी उसे छोडना नहीं चाहते।
- राजा बनने जा रहे राम ने वनवास भी सहर्ष स्वीकार किया। जीवन में जो भी मिले उसे नियति का निर्णय मानकर स्वीकार कर लें। विपरित परिस्थितियों के परे उनमें अपने विकास की संभावनाएं भी तलाशें। परिस्थितियों से घबराएं नहीं।
- सीता और लक्ष्मण राम के साथ वनवास में भी रहे, जबकि उनका जाना जरूरी नहीं था। ये हमें सिखाता है कि किसी की परिस्थितियां बदलने से हमारी उसके प्रति निष्ठा नहीं बदलनी चाहिए। हमारी निष्ठा और प्रेम ही हमें ऊंचा पद दिलाते हैं।
- भरत ने निष्कंटक राज्य भी स्वीकार नहीं किया, राम की चरण पादुकाएं लेकर राज्य किया। हमारा धर्म अडिग होना चाहिए। अधिकार उसी चीज पर जमाएं जिस पर नैतिक रूप से आपका अधिकार हो और आप उसके योग्य हों। भरत ने खुद को हमेशा राम के अधीन समझा, इसलिए जो राजा पद राम को मिलना था, उसे भरत ने स्वीकार नहीं किया।
- राम ने सुग्रीव से मित्रता की, सुग्रीव को उसका राज्य और पत्नी दोनों दिलवाई। आप भी जीवन में मित्रता ऐसे व्यक्ति से करें, जो आपकी परेशानी, आपके दुरूख को समझ सके।
- राम हमेशा भरत की प्रशंसा करते, उसे ही अपना सबसे प्रिय भाई बताते, जबकि राम के साथ सारे दुरूख लक्ष्मण ने झेले, इसके बावजूद भी लक्ष्मण ने कभी इसका विरोध नहीं किया। आप कोई भी काम करें तो उसे कर्तव्य भाव से करें, प्रशंसा की अपेक्षा न रखें, प्रशंसा की इच्छा हमेशा काम से विचलित करती है।
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