दिल्ली की रहने वाली पांच साल की मासूम बच्चीए जिसने शायद बेदर्द दुनिया को ठीक से देखा भी नहीं थाए को कुछ दरिंदों ने अपनी हैवानियत का शिकार बनाया। वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ घर के बाहर खेल रही थी और वहीं से उसे अगवा कर उसका बलात्कार किया गया। आज वह अबोध बच्ची जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही है। दूसरी घटना भी अपराधों की राजधानी बन चुकी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल की हैए जहां स्कूल कैंपस के भीतर ही महज दूसरी कक्षा की ही छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गयाए लेकिन यह घिनौनी हरकत किसने कीए इसका जवाब ढूंढ़ने में पुलिसए प्रशासन और स्कूल अधिकारी सभी नाकामयाब सिद्ध हो रहे हैं। बलात्कार की बेहद घिनौनी और अमानवीय घटनाओं की बढ़ोत्तरी पर समाज के एक वर्ग का यह साफ कहना है कि महिलाओं का छोटे.छोटे कपड़े पहननाए उनका रात के समय घर से बाहर निकलनाए अन्य पुरुषों के संपर्क में आना और आधुनिकता का जामा ओढ़ लेना ही उनके साथ हो रही ऐसी घटनाओं का कारण हैए लेकिन वे बच्चियां जो अबोधावस्था में ही हैवानों का शिकार बन जाती हैं उन पर यह मान्यता किसी भी रूप में खरी नहीं उतरती बल्कि पूरी तरह फेल हो जाती है।
महिलाओं की स्वतंत्रता की पैरवी करने वाले बुद्धिजीवियों का यह मत है कि समाज और प्रशासन का ढीला रवैया और ऐसी गंभीर घटनाओं के प्रति लचर प्रतिक्रिया से ही ऐसे वहशियों को ज्यादा शह मिलती है और वे खुले आम अपनी घिनौनी मानसिकता को अंजाम देते हैं और अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि वे मासूम बच्चियों को ही अपना निशाना बनाने लगे हैं। वे लोग जो महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों और उनके मेक.अप को उनके प्रति होते अत्याचारों का कारण बताते हैंए उन पर कड़ा निशाना साधते हुए नारीवादियों का कहना है कि पहले तो महिलाओं को अपने अनुसार जीने की पूरी आजादी है लेकिन अगर एक बार को मान भी लिया जाए कि उनकी कुछ हरकतें पुरुषों को उनके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित करती हैं तो इन मासूम बच्चियों का क्या कसूर हैं जो ना तो मेक.अप करना जानती हैं और ना ही पुरुषों को अपने प्रति आकर्षित करनाघ् इस वर्ग में शामिल लोगों का यह साफ कहना है कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने का हक है और अपराधों के वास्तविक दोषियों को नजरअंदाज कर महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराने वाला हमारा पुरुष समाज उनके इस अधिकार को बाधित करता है।
वहीं दूसरी ओर समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह कहता है कि पुरुषों के अंदर शारीरिक संबंधों को लेकर जो कुंठा पल रही होती है उसी के परिणामस्वरूप वह मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं और इस कुंठा का एकमात्र और मुख्य कारण है किशोरियों और युवतियों का चाल.चलन जो भारतीय संस्कृति के अनुसार सही नहीं ठहराया जा सकता। मासूम का यौन शोषण पुरुषों की प्राथमिकता कभी नहीं होती बल्कि वह जब अपनी शारीरिक इच्छाएं पूरी नहीं कर पाता तो वह ऐसा कुछ करने के लिए विवश हो जाता है। ऐसे लोगों का स्पष्ट कहना है कि आधुनिकता की भेंट चढ़ चुकी भारतीय नारी की शालीनता ही बच्चियों के प्रति बढ़ने वाले ऐसे यौन अपराधों के लिए दोषी है। वे पुरुष जो संबंधित महिला के साथ संबंध नहीं बना पाते वही मासूम पर अपनी हवस उतारते हैं। हालांकि पुरुषों को भी इस अनैतिक कृत्य के अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता लेकिन कहीं ना कहीं निर्दोष अबोध बच्चियों के साथ हो रहे इन कृत्यों के लिए तथाकथित समझदार महिलाएंए जो हर बात पर आजाद होने का दंभ भरती हैंए ही जिम्मेदार हैं।
महिलाओं की स्वतंत्रता की पैरवी करने वाले बुद्धिजीवियों का यह मत है कि समाज और प्रशासन का ढीला रवैया और ऐसी गंभीर घटनाओं के प्रति लचर प्रतिक्रिया से ही ऐसे वहशियों को ज्यादा शह मिलती है और वे खुले आम अपनी घिनौनी मानसिकता को अंजाम देते हैं और अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि वे मासूम बच्चियों को ही अपना निशाना बनाने लगे हैं। वे लोग जो महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों और उनके मेक.अप को उनके प्रति होते अत्याचारों का कारण बताते हैंए उन पर कड़ा निशाना साधते हुए नारीवादियों का कहना है कि पहले तो महिलाओं को अपने अनुसार जीने की पूरी आजादी है लेकिन अगर एक बार को मान भी लिया जाए कि उनकी कुछ हरकतें पुरुषों को उनके प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित करती हैं तो इन मासूम बच्चियों का क्या कसूर हैं जो ना तो मेक.अप करना जानती हैं और ना ही पुरुषों को अपने प्रति आकर्षित करनाघ् इस वर्ग में शामिल लोगों का यह साफ कहना है कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने का हक है और अपराधों के वास्तविक दोषियों को नजरअंदाज कर महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराने वाला हमारा पुरुष समाज उनके इस अधिकार को बाधित करता है।
वहीं दूसरी ओर समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह कहता है कि पुरुषों के अंदर शारीरिक संबंधों को लेकर जो कुंठा पल रही होती है उसी के परिणामस्वरूप वह मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं और इस कुंठा का एकमात्र और मुख्य कारण है किशोरियों और युवतियों का चाल.चलन जो भारतीय संस्कृति के अनुसार सही नहीं ठहराया जा सकता। मासूम का यौन शोषण पुरुषों की प्राथमिकता कभी नहीं होती बल्कि वह जब अपनी शारीरिक इच्छाएं पूरी नहीं कर पाता तो वह ऐसा कुछ करने के लिए विवश हो जाता है। ऐसे लोगों का स्पष्ट कहना है कि आधुनिकता की भेंट चढ़ चुकी भारतीय नारी की शालीनता ही बच्चियों के प्रति बढ़ने वाले ऐसे यौन अपराधों के लिए दोषी है। वे पुरुष जो संबंधित महिला के साथ संबंध नहीं बना पाते वही मासूम पर अपनी हवस उतारते हैं। हालांकि पुरुषों को भी इस अनैतिक कृत्य के अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता लेकिन कहीं ना कहीं निर्दोष अबोध बच्चियों के साथ हो रहे इन कृत्यों के लिए तथाकथित समझदार महिलाएंए जो हर बात पर आजाद होने का दंभ भरती हैंए ही जिम्मेदार हैं।
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