जैसे.जैसे वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे.वैसे राजनीतिक गलियारों में होने वाली हलचलें तेज होती जा रही हैं। जाहिर सी बात है समय बहुत कम बचा है और वर्तमान हालातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि सभी पार्टियों को खुद को अन्य से बेहतर साबित करने के लिए अभी बहुत ज्यादा तैयारियां करनी हैं। यूपीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारना लगभग तय और स्वीकृत है लेकिन जब बात एनडीए की होती है तो यूं तो भाजपा की ओर से वर्ष 2014 के लिए नरेंद्र मोदी का प्रोजेक्शन किया जा रहा है और क्षेत्र विशेष से निकालकर उनकी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर भी उभारा जा रहा है लेकिन एनडीए समेत स्वयं भाजपा में से भी मोदी की उम्मीदवारी का सांकेतिक विरोध शुरू हो गया है। नीतीश कुमार और शरद यादव भी नरेंद्र मोदी की दावेदारी को खारिज करने जैसा संकेत देते हुए यह कह चुके हैं कि जल्द ही बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा की जानी चाहिए। हालांकि इस बीच जो नाम तेजी के साथ लोकप्रियता बटोर रहा है वह है महिला राजनेता सुषमा स्वराज का। एनडीए का घटक दल शिवसेना पहले ही यह साफ कर चुका है कि सुषमा स्वराज ही बाला साहेब ठाकरे की पसंद थीं। शिवसेना के अलावा ऐसे बहुत से दल और व्यक्ति विशेष हैं जो सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री पद का बेहतर उम्मीदवार बताने से नहीं हिचकते। उनका कहना है कि अगर मोदी की जगह सुषमा पर दांव लगाया गया होता तो हालात जुदा होते। इस बीच सुषमा और मोदी के नामों पर एक बहस छिड़ चुकी है क्योंकि जहां बुद्धिजीवियों का एक वर्ग सुषमा को बेहतर बता कर नरेंद्र मोदी को नकारता प्रतीत हो रहा है वहीं नरेंद्र मोदी को भारत के लिए उपयुक्त प्रधानमंत्री कहने वाले भी पीछे नहीं हैं।
नरेंद्र मोदी का पक्ष लेने वाले लोगों का कहना है कि मोदी छा जाने वाले नेता हैं। वह जहां भी जाते हैं अपने प्रशसंकों का एक गुट तैयार कर देते हैं। वह जब बोलते हैं तो सामने वाले के पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचता। उनकी भाषण शैली कमाल की है। वह विशाल व्यक्तित्व वाले नेता हैं और उन्हें आरएसएस समेत भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का समर्थन भी प्राप्त है। गुजरात को विकास का मॉडल बनाने वाले नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष का दर्जा दिया जाता है। आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करने में नरेंद्र मोदी पूरी तरह सक्षम हैं और उनका मीडिया मैनेजमेंट भी उनके लिए रामबाण का काम करता है। अब वह गुजरात तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि खुद को राष्ट्रीय स्तर का नेता भी घोषित करने की तैयारी में हैं। वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी का विरोध इस बात पर किया जाता है क्योंकि वह आज भी अपनी तानाशाह छवि से बाहर नहीं आ पाए हैं। हिंदुत्व का पुरोधा होने का ठप्पा उनका पीछा नहीं छोड़ पा रहा है जिस वजह से वह आज भी सांप्रदायिक नेता के तौर पर ही जाने जाते हैं। उन्हें ना सिर्फ एनडीए में बल्कि भाजपा में भी सर्वसम्मति वाले नेता के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों का वर्ग जो सुषमा की पैरवी करता है उसका कहना है कि सुषमा स्वराज को अगर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाता है तो जाहिर है उन्हें महिला होने का फायदा अवश्य मिलेगा। देश की अन्य सबसे बड़ी पार्टी ;कांग्रेसद्ध और बड़े गठबंधन ;यूपीएद्ध की मुखिया भी एक महिला ही है इसीलिए अगर सुषमा की छवि को उभारा जाएगा तो इसका फायदा भाजपा समेत एनडीए को अवश्य मिलेगा। दूसरी ओर सुषमा भाजपा के वरिष्ठ और सम्माननीय सदस्य लालकृष्ण आडवाणी की पसंदीदा उम्मीदवार हैं और उनका एनडीए और भाजपा दोनों में ही कोई विरोधी नहीं है। सुषमा एक प्रखर नेता और बेहतरीन वक्ता हैंए उन्हें सर्वसम्मति से स्वीकार किए जाने की संभावनाएं भी तीव्र हैं। मोदी जहां राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं वहीं सुषमा स्वराज पिछले 25 सालों से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। वह विपक्ष की नेता तो हैं ही साथ ही उन पर कभी किसी भी प्रकार का सांप्रदायिक होने जैसा भी आरोप नहीं लगा है। लेकिन सुषमा की दावेदारी को खारिज करते हुए और मोदी का पक्ष लेने वाले बुद्धिजीवियों का कहना है कि जहां मोदी को पिछले दो सालों से प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया जा रहा है वहीं इस पद के लिए सुषमा का नाम कहीं भी सुनाई नहीं दे रहाए उन्हें तरजीह दी ही नहीं जा रही तो उनके बारे में बात करने का कोई फायदा ही नहीं है।
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