भारतीय समाज में प्रेम की अवधारणा जितनी पवित्र और मासूम मानी गई है आज उस
अवधारणा को उतना ही कलंकित किया जा रहा है. प्रेम को किसी समय में आत्मिक
रूप देकर उसकी पवित्रता को बनाये रखने का प्रयास किया जाता था वहीं आज
प्रेम को आत्मा से विलग करके देह के आसपास केन्द्रित कर दिया गया है. प्रेम
को लेकर जैसे ही बात की जाती है उसके निहितार्थ शरीर से, शारीरिक संबंधों
से लगाने शुरू कर दिए जाते हैं. हमारा वास्तविक समाज हो या फिर फिल्म की
काल्पनिक दुनिया, सभी में प्रेम को इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि यदि
युवा लड़के-लड़कियों ने आपस में प्रेम नहीं किया तो उनका जीवन व्यर्थ. अपने
जीवन की इसी व्यर्थता को रोकने के लिए ही युवा प्रेम संबंधों के लिए
इधर-उधर भटकते रहते हैं और कहीं न कहीं इसी भटकन में वे अपने आपको अपराधों
की तरफ ले जाते हैं. इस बात को पूर्वाग्रह मुक्त होकर देखा जाना चाहिए और समझना चाहिए कि समाज
में किस तरह से सेक्स की अवधारणा को प्रतिष्ठित किये जाने के प्रयास चल रहे
हैं. इसके साथ ही इस बात को भी समझना चाहिए कि जिस समाज में सेक्स को
सर्वोपरि रखकर युवाओं के सामने पेश किया जा रहा हो वहां प्रेम की सात्विक
अवधारणा कैसे बरकरार रह सकेगी? टीनएजर्स आज बुरी तरह से इस रोग से पीड़ित
दिखाई देते हैं. स्कूली छात्र-छात्राओं को गलबहियाँ करते हुए, आपत्तिजनक
स्थितियों में आसानी से देखा जा सकता है.
यही उन्मुक्त वातावरण और स्वछन्द
सोच ऐसे युवाओं को शारीरिक संबंधों की तरफ ले जाता है. कई बार सहमति से और
कई बार असहमति होने पर जबरन शारीरिक संबंधों की परिणति इन युवाओं के द्वारा
होती देखी जाती है. शारीरिक संबंधों को किसी भी कीमत में पाने की कोशिश
जाने-अनजाने युवाओं को प्रेम-अपराधों की तरफ मोडती है. हमारे आसपास एक-दो
नहीं कई-कई उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे युवाओं ने प्रेम संबंधों के
नाम पर गैंग रेप को, रेप को अंजाम दिया है. ऐसा नहीं है कि प्रेम के सभी मामलों में ऐसा ही होता है, ऐसा भी नहीं है कि
सभी युवा प्रेम के नाम पर अपराधों को अंजाम देते हैं पर जिस तरह का माहौल
आज बनता जा रहा है उसके चलते निरपराध प्रेम सम्बन्ध देखने को न के बराबर
मिल रहे हैं. प्रेम संबंधों के चलते होने वाले अपराधों को रोकने के लिए
समाज में सेक्स से ज्यादा सकारात्मक प्रेम संबंधों की अवधारणा को पुष्ट
करने के प्रयास किये जाने चाहिए. युवाओं में इस बात का सन्देश दिया जाना
चाहिए कि प्रेम गलत नहीं है, प्रेम की विकृति गलत है. प्रेम के नाम पर
सिर्फ और सिर्फ सेक्स-प्राप्ति की चाह रखना, उसे पोषित करना गलत है. इस तरह
की अवधारणा को रोकने से ही प्रेम-अपराधों पर रोक लग सकेगी.
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